भारतीय महिला वैज्ञानिक डॉ. सुकन्या के नेतृत्व में डार्क मैटर की खोज
Webdunia Hindi March 15, 2025 02:42 PM

हमारा ब्रह्मांड जितना दृश्यमान है, उससे कहीं अधिक अदृश्यमान यानी अंधकारमय है। माना जाता है कि ब्रह्मांड के अदृश्यमान हिस्से में श्याम ऊर्जा (डार्क एनर्जी) और श्याम पदार्थ (डार्क मैटर) व्याप्त है। दोनों के अस्तित्व का प्रभाव तो अनुभव किया जाता है, पर उन्हें निर्विवाद प्रमाणित कर सकना टेढ़ी खीर सिद्ध होता है। यही कारण है कि वैज्ञानिक ब्रह्मांड के 95% भाग के बारे में कुछ नहीं जानते।

परमाणु, जिनसे हम और हमारे आसपास की हर वस्तु बनी है, ब्रह्मांड का केवल 5 प्रतिशत ही है! विगत 80 वर्षों की खोजों से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि ब्रह्मांड का 95 प्रतिशत भाग रहस्यमय श्याम ऊर्जा और श्याम पदार्थ से बना है। श्याम पदार्थ को 1933 मे खोजा गया था। वहीं आकाशगंगाओं और उनके समूहों को एक अदृश्य गोंद के रूप मे बांधे रखे है।1998 में खोजी गई श्याम ऊर्जा, ब्रह्मांड के विस्तार की गति में त्वरण के लिए उत्तरदायी मानी जाती है। तब भी इन दोनों की वास्तविक पहचान वैज्ञानिकों के लिए अभी तक एक रहस्यमय पहेली बनी हुई है!

श्याम ऊर्जा (डार्क एनर्जी) के बाद ब्रह्मांड का दूसरा सबसे बड़ा घटक श्याम पदार्थ (डार्क मैटर) है। पदार्थ होते हुए भी इसे प्रत्यक्ष रूप से देखा नहीं जा सकता, लेकिन इसके प्रभावों को इसके द्वारा उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण द्वारा ब्रह्मांड के अन्य भागों में हुई प्रतिक्रिया के रूप में पहचाना जा सकता है। श्याम पदार्थ, प्रकाश उत्सर्जित या परावर्तित नहीं करता। किसी भी प्रकार के विकिरण का अवशोषण या उत्सर्जन भी नहीं करता।

इसीलिए चित्र लेने की वर्तमान तकनीकें उसका पता नहीं लगा सकतीं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि श्याम पदार्थ सामान्य पदार्थ कण (बैरियॉन/ Baryon) से बना होता, तो वह साधारण प्रकाश के परावर्तन से दिखाई देता, लेकिन वह दिखाई नहीं देता, इसलिए वह बैरियॉन नहीं है। भौतिकी में बैरियॉन उप-परमाणविक कणों का एक वर्ग है।

श्याम पदार्थ की उपस्थिति साधारण पदार्थ पर उसके गुरुत्व-प्रभाव से महसूस की जा सकती है। उस की उपस्थिति के लिए किए गए निरीक्षणों में प्रमुख हैं, आकाशगंगाओं की घूर्णन गति, आकाशगंगाओं के किसी समूह (क्लस्टर) में किसी आकाशगंगा की कक्षा-गति, किसी आकाशगंगा या आकाशगंगाओं के समूह में गर्म गैसों के तापमान का वितरण। यह भी कहा जाता है कि श्याम पदार्थ का प्रभाव ब्रह्मांडीय विकिरण के फैलाव और वितरण में भी रहा है।

कहने की आवश्यकता नहीं कि श्याम पदार्थ पर विभिन्न दृष्टिकोणों से शोध कार्य हो सकता है। एक विकल्प, प्रयोगशाला में ऐसी स्थितियां बनाना भी हो सकता है, जिसके तहत श्याम पदार्थ का अनुकरण किया जा सके। अमेरिका के अलाबामा विश्वविद्यालय में भारतीय मूल की डॉ. सुकन्या चक्रवर्ती के नेतृत्व में एक शोध टीम ने पल्सर कहलाने वाले तारों को अपनी शोध का आधार बनाया।

पल्सर ऐसे न्यूट्रॉन तारे हैं, जो अतिशय शक्तिशाली चुम्बकीय बलक्षेत्र वाले होते हैं और बहुत तेज़ी से घूम रहे होते हैं। डॉ. सुकन्या चक्रवर्ती के निर्देशन में उनकी शोध टीम ने हमारी आकाशगंगा में श्याम पदार्थ के उस स्थानीय घनत्व को मापा, जो बहुत तेज़ी से घूर्णन कर रहे एकल पल्सर तारों के कारण बना होगा। पल्सर तारे आम तौर पर जुड़वां तारे होते हैं, पर इस टीम ने एकल तारों के घूर्णन वाले प्रभाव को चुना।

डॉ. सुकन्या चक्रवर्ती की टीम, कुल मिलाकर एक किलोग्राम से कुछ कम डार्क मैटर का पता लगाने में सफल रही। आकाशगंगा में जिस जगह शोधकर्ताओं ने श्याम पदार्थ की खोज की, उस जगह का आकार हमारी पृथ्वी के लगभग बराबर था। इसका एक अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि किसी अबूझ पहेली जैसे, अब तक बहुत कम शोधित, किंतु ब्रह्मांड में सर्वत्र व्याप्त माने जाने वाले श्याम पदार्थ की यह मात्रा तो बहुत कम है, लेकिन यह सोचने पर कि सर्वत्र व्याप्त जो चीज़ अब तक मिल ही नहीं रही थी, अबूझ पहेली बनी हुई थी, उसका कुछ भी अता-पता मिलना 'भागते भूत की लंगोटी' मिलने के समान है।

यह खोज वैज्ञानिकों द्वारा पल्सरों के बीच की परस्पर क्रिया से बनी गुरुत्वाकर्षण तरंगों को मापने के कारण संभव हुई। मापे गए परिणामों की बार-बार जांच करके, वे अंततः श्याम पदार्थ के अस्तित्व का संकेत देने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों में विघ्न का पता लगाने में सक्षम हुए। बाकी सभी संभवनाओं के ख़त्म हो जाने के बाद प्रयोगशाला में श्याम पदार्थ की केवल 1 किलोग्राम मात्रा ही बची थी।

इस खोज में शामिल शोधकर्ताओं में से एक ने बताया कि पल्सरों के बीच के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र अविश्वसनीय रूप से प्रबल थे। यही एकमात्र तरीका था, जिससे शोधकर्ता टीम के लिए सही विश्लेषण करना और यह बताना संभव हुआ कि ब्रह्मांड में स्याम पदार्थ (डार्क मैटर) का अस्तित्व एक वास्तविकता है।

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