असम में मिला अनोखा सांप: क्या है 'डॉग-फेस स्नेक' का रहस्य?
newzfatafat March 23, 2025 12:42 PM
असम में एक अद्भुत खोज

हाल ही में असम के नलबाड़ी जिले में एक ऐसा सांप देखा गया है, जिसकी आकृति कुत्ते जैसी है। यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यह एक वैज्ञानिक खोज है जिसने न केवल आम जनता को चौंका दिया है, बल्कि विशेषज्ञों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है।


सांप की पहचान

इस सांप का नाम सेरबेरस राइनकॉप्स (Cerberus rynchops) है, जिसे आमतौर पर डॉग-फेस स्नेक कहा जाता है। यह पहली बार पूर्वोत्तर भारत में देखा गया है, जिससे पूरे क्षेत्र में हलचल मच गई है। लोग इसे देखने के लिए दूर-दूर से आ रहे हैं और इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।


समुद्र से दूर: कैसे पहुंचा यह सांप?

यह सांप समुद्र से लगभग 800 किलोमीटर दूर पाया गया है, जिससे सवाल उठता है कि एक समुद्री सांप इतनी दूर कैसे पहुंचा। विशेषज्ञों का मानना है कि हाल ही में आई बाढ़ के कारण यह सांप जंगल के अंदरूनी हिस्सों में बहकर आया होगा।


बाढ़ का प्रभाव

गारेमारा गाँव के बाढ़ के मैदानों में इसे देखा गया। यह प्रजाति पहले केवल भारत के पश्चिमी और दक्षिणी तटीय राज्यों में पाई गई थी, जैसे कि महाराष्ट्र, केरल, और तमिलनाडु।


जलवायु परिवर्तन का संकेत?

इस घटना ने वैज्ञानिकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यह जलवायु परिवर्तन का संकेत है या यह सांप किसी भी पर्यावरण में ढलने की क्षमता रखता है।


बांग्लादेश से संबंध?

जहां यह सांप मिला है, वह बांग्लादेश के चटगांव डिवीजन के करीब है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह सांप संभवतः बांग्लादेश से बहकर असम आया हो। हालांकि, इसके पीछे कोई ठोस प्रमाण नहीं है।


मुंबई में पहले भी देखा गया

यह पहली बार नहीं है जब सेरबेरस राइनकॉप्स को देखा गया है। नवंबर 2023 में मुंबई में भी ऐसा ही सांप मिला था, जिससे लोगों में डर और हैरानी दोनों का अनुभव हुआ था।


विशेषज्ञों की राय

सेरबेरस राइनकॉप्स हल्का विषैला होता है और समुद्री जल में मछलियों और केंकड़ों का शिकार करता है। इसकी शिकार करने की रणनीति बेहद दिलचस्प है, क्योंकि यह पानी में शांत बैठा रहता है और सही मौके पर तेजी से हमला करता है।


वैज्ञानिकों की खोज

इस सांप की खोज जयादित्य पुरकायस्थ और उनकी टीम ने की है। उन्होंने इसकी मौजूदगी नलबाड़ी जिले के गारेमारा गाँव में दर्ज की है। उनकी यह खोज द जर्नल ऑफ रेप्टाइल्स एंड एम्फीबियंस में प्रकाशित की गई है।


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