अजय और संध्या की पुनर्मिलन की कहानी: एक नई शुरुआत
Gyanhigyan April 06, 2025 12:42 PM
अचानक मुलाकात

अजय ट्रेन की जनरल बोगी में बर्थ सीट पर सोया हुआ था। जब गाड़ी रुकी और फिर से चली, तो उसकी नजर अचानक अपनी पूर्व पत्नी संध्या पर पड़ी। वह नहीं जानता था कि कब वह उसकी सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई।


संध्या की हालत

छह साल बाद अजय ने उसे देखा। वह काफी कमजोर लग रही थी और सस्ती साड़ी पहने हुए थी। न तो उसके माथे पर बिंदी थी और न ही गले में मंगलसूत्र। क्या उसने अब तक दूसरी शादी नहीं की? क्या वह भी अकेली है? अजय इन विचारों में खोया हुआ था कि तभी संध्या की नजर उस पर पड़ी। उनकी नजरें मिलीं, और अजय ने दूसरी तरफ देखने का फैसला किया।


सीट बदलने का निर्णय

फिर अचानक अजय ने सीट से उठकर संध्या के पास बैठे लड़के से कहा कि वह ऊपर वाली सीट पर चला जाए। लड़का मान गया और अजय संध्या के पास बैठ गया। "संध्या, तुम कैसी हो?" उसने पूछा। संध्या ने खिड़की की ओर देखते हुए कहा, "मैं ठीक हूं, और तुम?" "मैं भी ठीक हूं। त्यौहार के कारण रिजर्वेशन नहीं मिला, इसलिए जनरल बोगी में आना पड़ा। तुम कहां जा रही हो?" "मैं कानपुर जा रही हूं। मां बीमार हैं, उनसे मिलने जा रही हूं।"


चुप्पी और सवाल

कुछ समय तक दोनों चुप रहे। फिर अजय ने कहा, "क्या मैं एक सवाल पूछ सकता हूं?" संध्या ने आँखों से इशारा किया, "क्या?" अजय ने संकोच करते हुए पूछा, "तुमने अभी तक शादी क्यों नहीं की?" संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया।


कुल्फी का प्रस्ताव

तभी डिब्बे में कुल्फी बेचने वाला आया। अजय ने पूछा, "क्या तुम खाओगी?" संध्या ने मना कर दिया। अजय ने कहा, "तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी कुल्फी है, यह मुझे पता है।" संध्या हल्का सा मुस्कुराई। अजय ने देखा कि वह अपने आँसुओं को रोकने की कोशिश कर रही है।


संध्या की आत्मनिर्भरता

"एक शर्त पर खाऊंगी," संध्या ने कहा। "क्या शर्त है?" अजय ने पूछा। "पैसे मैं दूंगी," उसने कहा। संध्या ने दो कुल्फियां खरीदीं और एक अजय को देते हुए बोली, "अब मैं भी कमाने लगी हूँ। एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती हूँ।"


अतीत की यादें

कुल्फी खाते हुए अजय ने कहा, "तलाक के समय मैंने तुम्हें 30 लाख रुपये देने की पेशकश की थी। अगर तुम ले लेती, तो अपना स्कूल खोल लेतीं।" संध्या ने हंसते हुए कहा, "अगर ले लेती, तो अपनी जमीर को क्या जवाब देती?"


भावनाओं का आदान-प्रदान

अजय ने कहा, "मैंने कभी रिश्तों की कदर नहीं की। यही मेरी सजा है।" कानपुर स्टेशन आने वाला था। अजय ने पूछा, "तुम वापस कब जाओगी?" संध्या ने कहा, "कल सुबह की ट्रेन से।"


नई शुरुआत

अगले दिन अजय स्टेशन पर समय से पहुंच गया। संध्या ने कहा, "मैं सोच रही थी कि आप चले गए होंगे।" अजय ने कहा, "मैंने तुम्हारा भी टिकट ले लिया है।" ट्रेन आई और दोनों ने सफर शुरू किया। संध्या ने पूछा, "आप गुमसुम क्यों हैं?" अजय ने कहा, "मुझे तुम चाहिए… हमेशा के लिए।"


अंतिम क्षण

संध्या ने उसकी ओर देखा और कहा, "मैं जानती थी, आप यही कहेंगे। इसलिए मैंने अपनी मांग भर ली है।" अजय के आँसू छलक पड़े। संध्या ने उसके कंधे पर सिर रखकर रोना शुरू कर दिया। अब उनका नया सफर शुरू हो चुका था।


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