500 साल बाद रामलला के भव्य मंदिर में पहली बार रामनवमी: सीएम धामी बोले - सपना हुआ साकार!
UPUKLive Hindi April 07, 2025 05:42 PM

Dehradun News : रामनवमी का पावन पर्व इस बार उत्तराखंड में खास उत्साह के साथ मनाया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिथौरागढ़ के पांखू में स्थित माँ कोकिला कोठग्याड़ी मंदिर में आयोजित अखंड रामायण पाठ में शिरकत की और भक्तों को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया।

अपने संबोधन में उन्होंने प्रभु श्रीराम को मर्यादा, भक्ति और त्याग का प्रतीक बताया। साथ ही, अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर में विराजमान होने की खुशी को प्रदेशवासियों के साथ साझा किया। यह क्षण हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है, जो 500 सालों के इंतजार के बाद साकार हुआ।

रामायण: जीवन का आलोक और समाज का संदेश

मुख्यमंत्री धामी ने अपने संदेश में रामायण को केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का दर्पण बताया। उन्होंने कहा कि यह हमें कठिन परिस्थितियों में भी धर्म और मर्यादा का पालन करना सिखाती है। श्रीराम का जीवन, माता सीता की पवित्रता, लक्ष्मण की निष्ठा, भरत का त्याग और हनुमान की भक्ति—ये सभी हमें सच्चाई और अच्छाई की राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं। धामी ने जोर देकर कहा कि अखंड रामायण पाठ जैसे आयोजन न सिर्फ आत्मा को शांति देते हैं, बल्कि समाज में सकारात्मक ऊर्जा और एकता का संचार भी करते हैं।

500 साल का सपना सच हुआ: अयोध्या में रामलला का आगमन

रामनवमी के इस खास मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि यह दूसरा साल है, जब प्रभु श्रीराम अयोध्या में अपने भव्य मंदिर में विराजमान होकर भक्तों के साथ उत्सव मना रहे हैं। उन्होंने इसे ऐतिहासिक उपलब्धि करार देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अटूट संकल्प और मेहनत की सराहना की। धामी ने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में यह सपना सच हुआ, जिसे देखने के लिए पीढ़ियों ने बलिदान दिए। यह हर उत्तराखंडवासी और भारतीय के लिए गर्व का पल है।

प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं और संकल्प का आह्वान

मुख्यमंत्री ने सभी प्रदेशवासियों को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं दीं और प्रभु श्रीराम से राज्य के सुख-समृद्धि की प्रार्थना की। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे राम के आदर्शों को अपनाएं और समाज में प्रेम, ईमानदारी और सेवा भाव के साथ जीवन जिएं। इस मौके पर विधायक फकीर राम टम्टा, भाजपा जिलाध्यक्ष गिरीश जोशी, महापौर कल्पना देवलाल सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे। यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक बना।

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