सीपीआई (एम) में नेतृत्व परिवर्तन: क्या केरल की लॉबी का प्रभुत्व बढ़ रहा है?
newzfatafat April 08, 2025 02:42 AM
सीपीआई (एम) में नए नेतृत्व का आगाज़

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) हाल के समय में अपनी प्रासंगिकता को खोती जा रही है, लेकिन अब पार्टी ने अपने नेतृत्व में बदलाव की दिशा में कदम उठाए हैं। इस प्रक्रिया के तहत, पार्टी ने अपने पोलित ब्यूरो में नए सदस्यों को शामिल किया है और कुछ वरिष्ठ नेताओं को सेवानिवृत्त किया है। हाल ही में, 24वीं पार्टी कांग्रेस में केरल के एमए बेबी को नया महासचिव नियुक्त किया गया है। बेबी की नियुक्ति पार्टी के भीतर चल रहे विभाजन और केरल लॉबी के प्रभाव को दर्शाती है।


महासचिव पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया

एमए बेबी का नाम प्रकाश करात द्वारा प्रस्तावित किया गया था, और उनकी उम्मीदवारी को केरल के सीपीआई (एम) नेताओं का समर्थन प्राप्त था। हालांकि, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के नेताओं ने किसान नेता अशोक धवले का समर्थन किया। महासचिव पद के लिए चुनाव असामान्य नहीं हैं, लेकिन पार्टी की केंद्रीय समिति के लिए चुनाव बहुत ही दुर्लभ होते हैं। इस चुनाव ने यह स्पष्ट किया कि बेबी के नेतृत्व में पार्टी की केरल इकाई का प्रभुत्व है।


केरल और पश्चिम बंगाल के बीच शक्ति संतुलन

यह चुनाव पार्टी के भीतर के गहरे मतभेदों को उजागर करता है और यह दर्शाता है कि केरल और पश्चिम बंगाल की इकाइयों के बीच शक्ति संघर्ष चल रहा है। बेबी की जीत से यह संकेत मिलता है कि केरल के नेता पार्टी में एक मजबूत स्थिति बनाए हुए हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि बेबी की नियुक्ति से पार्टी का प्रभाव केवल केरल तक सीमित रह सकता है। उनका मानना है कि पश्चिम बंगाल या त्रिपुरा जैसे क्षेत्रों से कोई नेता पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत कर सकता था।


पार्टी के अंदरूनी चुनावों का महत्व

बेबी के खिलाफ धवले की उम्मीदवारी के अलावा, पार्टी के केंद्रीय समिति में भी एक अप्रत्याशित चुनाव हुआ, जब सीआईटीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डी.एल. कराड ने केंद्रीय समिति में एक सीट के लिए खुद को आगे रखा। हालांकि इस चुनाव में उन्हें केवल 31 वोट मिले, यह चुनाव पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दर्शाता है।


पिनाराई विजयन की स्थिति

एमए बेबी की नियुक्ति और पार्टी के अंदरूनी चुनाव उस समय हो रहे हैं जब सीपीआई (एम) केरल में लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है और पश्चिम बंगाल में आगामी चुनावों से पहले अपने प्रभाव को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है। 75 वर्ष की आयु सीमा के बावजूद, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को पोलित ब्यूरो में छूट दी गई है, जो उनकी बढ़ती ताकत को दर्शाता है।


भविष्य की चुनौतियाँ

सीपीआई (एम) में केरल और पश्चिम बंगाल के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद को नया नहीं कहा जा सकता। इसके बावजूद, अब केरल लॉबी का वर्चस्व साफ नजर आ रहा है। हालांकि पार्टी नए नेतृत्व को तरजीह दे रही है, यह सवाल अब भी उठता है कि क्या वह अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट कर पाएगी और आगामी चुनावों में सफलता प्राप्त कर सकेगी।


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