Himachali Khabar
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
डा. नरेंद्र ने अपने लेख में बताया कि कहते है कि ” मन चंगा तो कठौती में गंगा”। और एक और कहावत है कि” मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”। ये दोनों कहावतें या दोहे क्या कहते है मनुष्य को , युवाओं को, बच्चो को तथा किशोरो को , मन अगर अच्छा है, शुद्ध है या स्ट्रांग है तो कठौती में भी गंगा माई आ सकती है, लेकिन मन कैसे चंगा बने , इस पर कसरत करने की जरूरत है। हमारे बच्चे, किशोर व युवा, शरीर की कसरत तो थोड़ी बहुत कर लेते है परंतु मन को साधने का प्रयत्न ही नही करते है। दूसरी कहावत है मन के हारे हार है, और मन के जीते जीत यानी कि मन कितना प्रभावशाली है अगर तुम ने अपने मन को किसी भी परिस्थिति में जीतने के लिए तैयार नही किया तो आप जीत नही पयोगे , भले ही आप मेहनत करते हो। मन को जीतने के लिए , मन को ख़ुशी के लिए , मन को हार के लिए भी, और मन को दुख को सहन करने के लिए भी तैयार करना पड़ता है, लेकिन हमारे परिवारों में घरों में कभी भी ये सिखाया ही नही जाता है कि जीवन में कितने भी उतार चढ़ाव आवे, तुम्हे सहज रहना है। हम कभी भी अपने बच्चों को आध्यात्मिकता की तरफ लेकर नही जाना चाहते है, क्योंकि हमारे पास खुद के पास भी ये अभ्यास नही है, न ही हमारे पास कोई आध्यात्मिक गुरु है, और न कोई हमारे मन और कैरियर को साधने वाले मेंटर है। हमारे यहां मेंटर बनाने का कोई रिवाज ही नही है। स्वामी विवेकानंद जी ने कठोउपनिसद का एक सुत्र बताया है उन्हौने युवाओं , बच्चो , किशोरो के लिए कहा है कि ” उठिष्टत! जाग्रत , प्राप्य वरान्निबोधत”। स्वामी जी ने कहा कि उठो! जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रुको” । इस सूत्र का अर्थ ये ही है कि हर उस युवा को उठना चाहिए, जागना चाहिए और तब तक परिश्रम करना है जब तक सफलता न मिल जाये, जब तक लक्ष्य ना मिल जाए। सफलता का मतलब ये नही है कि कोई एग्जाम पास कर लेना ही नही है, कहीं एडमिशन ही हो जाना नही है, इसका मतलब है कि जीवन मे आनंद मिल जाये , वो ही सफलता मानो, मन खुश हो जाये , उसे ही मुकाम हांसिल करना मानना चाहिए। ये सब मेहनत से ही मिल सकता है , मेहनत कैसे होगी , कर्म को महत्व देने से होगी, कर्म की ओर कैसे रुख होगा, ये थोड़ा कठिन कार्य है। ये किसी दबाव या किसी तनाव के वश में नही होना चाहिए बल्कि ये मन या स्वभाव से होनी चाहिए, तभी तो कार्य मे , मेहनत में मन लगता है, तभी तो ये हमारा स्वभाव बनता है, और ये आदत ही परिश्रम को उत्सव की तरह सेलिब्रेट करती है, ये स्वभाव ही परिश्रम को खेल समझता है, यही तो हॉबी है जिसमे न तकलीफ होती है, न दुख होता है, न खुशी और न गम के रास्ते से गुजरते है, क्यों कि ये तो हमने अपना स्वभाव ही बना लिया है और ऐसा लगता है कि मेहनत नही की तो जैसे कुछ किया ही नही है। प्रिय विद्यार्थियो, ये गर्मियों की छुट्टियां आ रही है, क्या आपने इन छुट्टियों के लिए कोई टास्क तय किया है कोई सब्जेक्ट से सम्बंधित नही , कोई कोचिंग सेंटर में जाने की प्लान नही, कोई जबरदस्ती वाली कक्षा में नही , इनसे कोई फायदा होने वाला नही है क्यों कि वो ही बोरिंग पढ़ाई जिससे बच्चे बचते है। उन्हें मोबाइल, खेलना, फ़ास्ट फ़ूड खाना, मटरगस्ती करना क्यों अच्छा लगता है, इसका कारण शायद किसी भी मातपिता ने खोजने की कौशिश नही की। क्या है ऐसा मोबाइल में जो कोई भी बच्चा उससे चिपक जाता है। इसका कारण मन की कमजोरी है , मन का अनियंत्रण है, मन की मनमानी है , जो हमारे काबू में नही रहता और वो जो चाहता है उसी तरफ बच्चो को , विद्यार्थियों को लेकर जाता है। हमारे मातापिता , कभी नही समंझ पाते कि वो क्या करे, जिससे उनके विद्यार्थी बच्चे, मन के चंगुल से निकल पाए। आप सब जानते है मन से ज्यादा शक्तिशाली कुछ नही है। अगर कोई विद्यार्थी मन से दोस्ती कर ले तो मन उसे, जो चाहे वो बना सकता है। तो चलो ये जानते है कि मन से दोस्ती कैसे की जाए। प्रिय विद्यार्थियों , मन से दोस्ती करने का सबसे बढ़िया वा ताकतवर तरीका है, आध्यत्मिकता, यही वो राह है जिस पर चल कर हमारे बच्चे मन को अपना दोस्त बना सकते है। एक बार मन काबू आ गया तो ये जीवन तो आनंद से भर जाएगा। अब हम जानते है अध्यात्म क्या है? प्रिय साथियों , कठोउपनिसद में कहा गया कि” शूरस्य धारा निशिता दुरत्यया, दुर्गम पतस्या कवियों वदन्ति” अर्थात अध्यात्म छुरे की धार पर चलने के समान है, ऐसा बड़े बड़े महापुरुषों ने कहा है। है तो बहूत मुश्किल परन्तु, है बड़े काम का। अगर किसी भी विद्यार्थी को , किसी भी व्यक्ति को , किसी भी बालक को और किसी भी युवा को अपना मन दोस्त बनाना है तो आध्यात्मिकता का रास्ता तो लेना ही पड़ेगा इसके अलावा कोई रास्ता है नही। भले ही लोग कितना भी उल्टा सीधा कहे, भले ही लोग इसे कठिन मार्ग बताए , भले ही लोग इसे बुजुर्गों का रास्ता बताए, भले ही हमारे बड़े, मातपिता इसे वृद्धावस्था का कार्य बताए लेकिन रास्ता ये ही है और मैं यहां ये कहना चाहता हूँ कि जो अभ्यास हमे जीवन के पहले पड़ाव में करना चाहिए, वो हम आखिरी पड़ाव में करे , ये कहां का उच्च विचार है। जीवन तो बाल्यावस्था से शुरू होता है और फिर ये आध्यात्मिकता का अभ्यास जीवन ढलने पर क्यों ? ये अभ्यास निश्चित तौर पर बाल्यवस्था से ही शुरू करना पड़ेगा, मन को साधने के उचित समय भी तो यही है। दोस्तो आपकी गर्मियों की छुट्टियां शुरू होने वाली है आप अब सिर्फ अपने मन की फिटनेस पर काम करो , बाकी सब चीजो को छोड़ दो। प्रिय विद्यार्थियों ,आपके सामने बहुत समस्याएं है आप के सामने कही ज्यादा कठिनाई है। हमारे सामने या मै कहूं कि आज से तीस चालीस वर्ष पहले ऐसी समस्याएं नही थी जो आपके सामने है, दोस्तो हमारे सामने मोबाइल नही थे, टी वी नही थे, नशा नही था, फैशन नही था, संगत के लिए नेगेटिव दोस्त नही थे, मातपिता की बहुत बड़ी बड़ी अपेक्षाएं नही थी, समाज के ताने व कटाक्ष नही थे, प्रतिस्पर्धा ज्यादा नही थी, ये टयूशन की दुकानों नही थी,बिजनेस करने वाले तथा व्यवसाय से कमाने वाले शिक्षक नही थे, लेकिन ये सारी कठिनाइयां आपके सामने है बल्कि और ज्यादा ही है। आप तन से कमजोर हो, आपके मन पर ज्यादा दबाव है, आपके सामने फ़ास्ट फ़ूड से बचना भी एक चुनौती है। दोस्तो आप कहीं ज्यादा परेशानियों से घिरे हुए हो, इन सब से पार पाने के लिए आप को निश्चित रूप में आध्यात्मिकता का सहारा लेना ही पड़ेगा। मैं यहां सभी बच्चो, युवाओं और मातापिताओं से निवेदन करता हूँ कि अपने विद्यार्थी रूपी बच्चो को इस छुट्टियों में सब चीजो से अलग कर केवल मन की फिटनेस पर ही कार्य करने दे , अगर बच्चा मन से स्ट्रांग हो गया तो उसकी सारी समस्याओं का निदान हो जाएगा ये गारंटी है। अब मैं आपको उन सात बातों की तरफ ले जा रहा हूँ जो आप सभी को करनी है।
1. सुबह 5 बजे बिस्तर छोड़ो।
2. प्रात: उठते ही 1 से 4 गिलास गुनगुने पानी का सेवन करो।
3. फ्रेश होकर 1 से 5 किलो मीटर की रनिंग करो।
4. प्राणायाम के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन शरीर मे भरो
5. तीन समय आधे से एक घण्टे का ध्यान करे, प्रार्थना करे। प्रात: प्राणायाम के बाद, दोपहर के खाने से पहले तथा शाम को 6 से 7 या फिर 7 से 8 बजे । ध्यान करते वक्त सांसों को देखें।
6. मोबाइल फ़ोन को 30 दिन के लिए ताले में बंद कर दे, स्वामी विवेकानंद की किताबें पढ़े।
7. सुबह खाने में एक मुठी अंकुरित चने, मूंग,एक कटोरी दही तथा हर तीसरे दिन एक चम्मच ईसबगोल दही में मिलकर जरूर ले ताकि आपके शरीर व मन स्ट्रांग बने।
बस ये ही सात बाते ध्यान में रहे और रोज इन्हें करे, चाहे कुछ भी हो जाये। फिर आप अगर 30 दिन में अपने मन को दोस्त न बना पाए तो मैं आपकी सेवा करूंगा और न फायदा हो तो मुझे पकड़ लेना। एक और बात, आप जो बनना चाहोगे वो बनोगे, खुश रहोगे, फ्रस्ट्रेशन दूर होगा तथा टॉलरेंस पावर बढ़ेगी।
जय हिंद, वंदे मातरम