दुनिया भर में भगवान के बगीचे के रूप में जाना जाता है ये गांव, जानें क्या है इसकी वजह
Samachar Nama Hindi April 11, 2025 03:42 AM

जब हम गांव की बात करते हैं, तो ज़हन में मिट्टी के घर, कच्चे रास्ते और हरियाली की कल्पना आती है। लेकिन अगर हम कहें कि भारत में एक ऐसा गांव है, जिसे "भगवान का बगीचा" कहा जाता है, और जिसे दुनिया का सबसे स्वच्छ गांव कहा जा चुका है, तो शायद यकीन करना थोड़ा मुश्किल लगे। लेकिन यह सौ फीसदी सच है।

यह अद्भुत गांव है मावल्यान्नॉग (Mawlynnong), जो पूर्वोत्तर भारत के मेघालय राज्य में स्थित है। यह गांव न सिर्फ अपनी प्राकृतिक खूबसूरती बल्कि सफाई, साक्षरता और सामाजिक जिम्मेदारी के लिए भी पूरी दुनिया में मिसाल बन चुका है।

बांग्लादेश सीमा के पास बसा यह स्वर्ग

मावल्यान्नॉग गांव, मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गांव बांग्लादेश की सीमा के बिल्कुल पास बसा हुआ है। यहां पहुंचने पर ऐसा लगता है मानो किसी कल्पनालोक में आ गए हों — चारों ओर हरियाली, साफ-सुथरी पगडंडियां, सजे हुए बगीचे, बांस की बनी हुई सड़कें और सुंदर झरने।

सफाई में विश्व में नंबर वन

मावल्यान्नॉग को 2003 में एशिया का सबसे साफ गांव और 2005 में भारत का सबसे साफ गांव घोषित किया गया था। यह खिताब सिर्फ किसी अभियान या सरकारी प्रयास से नहीं मिला, बल्कि यहां के स्थानीय लोगों की सोच और मेहनत का परिणाम है। यहां के लोग सफाई को सिर्फ आदत नहीं बल्कि अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं।

गांव में हर जगह बांस की बनी डस्टबिन दिखाई देती हैं, जहां लोग कचरा डालते हैं। यहां प्लास्टिक और धुएं वाले वाहन प्रतिबंधित हैं। सड़कें तक बिल्कुल झाड़ू से साफ की जाती हैं, और कचरा जैविक खाद में बदल दिया जाता है।

100 प्रतिशत साक्षरता

साफ-सफाई के साथ-साथ मावल्यान्नॉग गांव 100% साक्षरता दर वाला गांव है। यहां के लोग शिक्षा के महत्व को भली-भांति समझते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को भी पढ़ाई के लिए प्रेरित किया जाता है और महिलाएं भी शिक्षित हैं। यह गांव बताता है कि शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाती है।

महिलाएं और बच्चे निभाते हैं अहम भूमिका

इस गांव की खास बात यह है कि यहां सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं, बल्कि महिलाएं और बच्चे भी सफाई और सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। बच्चों को बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि सफाई सिर्फ घर की नहीं, पूरे समाज की ज़िम्मेदारी है। यही वजह है कि यहां का वातावरण न केवल स्वच्छ, बल्कि अनुशासित भी है।

स्वयं सेवी मॉडल: सरकार नहीं, लोग खुद संभालते हैं जिम्मेदारी

इस गांव की सबसे बड़ी ताकत है इसकी स्वायत्तता। यहां के लोग सरकार या प्रशासन पर निर्भर नहीं रहते। गांव के हर काम – चाहे वह सड़क की मरम्मत हो, जल व्यवस्था हो या शिक्षा – सबकुछ गांव वाले मिल-जुलकर खुद करते हैं।

गांव की साफ-सफाई, स्कूल की देखभाल, खेती-बाड़ी या सामाजिक आयोजन – हर कार्य में लोग सक्रिय भागीदारी निभाते हैं। यह एक आदर्श ग्राम स्वराज की जीवंत मिसाल है।

सुपारी की खेती से होती है आजीविका

मावल्यान्नॉग के अधिकांश ग्रामीण सुपारी की खेती करते हैं। यह उनकी मुख्य आजीविका है। इसके अलावा कुछ लोग बांस के शिल्प कार्य, हस्तशिल्प और पर्यटन से भी आय अर्जित करते हैं।

चूंकि यह गांव पर्यटकों के बीच अब एक लोकप्रिय स्थल बन चुका है, इसलिए यहां होमस्टे और लोकल गाइडिंग जैसी सेवाएं भी शुरू हो चुकी हैं, जिससे गांव को आर्थिक मजबूती मिली है।

जीवित जड़ों के पुल और झरने बनाते हैं स्वर्ग समान

यह गांव अपनी प्राकृतिक रचना के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के जंगलों में पाए जाने वाले रबड़ के पेड़ों की जड़ों से बने “लिविंग रूट ब्रिज” (Living Root Bridges) दुनियाभर में अनोखे माने जाते हैं। ये पुल किसी इंजीनियरिंग के चमत्कार से कम नहीं हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी प्राकृतिक रूप से बढ़कर बनते हैं।

इसके अलावा गांव के आसपास कई प्राकृतिक झरने हैं, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। यहां का वातावरण इतना शांत और ताजगीभरा होता है कि मनुष्य प्रकृति के बिल्कुल करीब महसूस करता है।

पर्यटन से बदल रही है तस्वीर

पिछले कुछ वर्षों में मावल्यान्नॉग की ख्याति बढ़ी है और यहां देश-विदेश से पर्यटक आने लगे हैं। गांव के लोगों ने पर्यटन को सहेजने का जिम्मा भी खुद उठाया है। यहां होमस्टे व्यवस्था शुरू की गई है, जिससे बाहर से आए लोग गांव की संस्कृति को करीब से देख और समझ सकें।

पर्यटक यहां आकर सिर्फ एक खूबसूरत जगह नहीं देखते, बल्कि जीवन का एक आदर्श तरीका सीखकर जाते हैं — कैसे समाज, पर्यावरण और संस्कृति के बीच संतुलन बना सकते हैं।

निष्कर्ष: क्या भारत के बाकी गांव सीख लेंगे मावल्यान्नॉग से?

मावल्यान्नॉग गांव न केवल भारत बल्कि दुनिया के लिए एक प्रेरणा है। यह गांव बताता है कि बिना किसी बड़े संसाधन के भी सामूहिक प्रयास और इच्छाशक्ति से कैसे एक स्थान को आदर्श बनाया जा सकता है।

भारत के अन्य गांव अगर मावल्यान्नॉग से सीख लें तो देश का चेहरा बदल सकता है — स्वच्छता, साक्षरता और आत्मनिर्भरता के दम पर।

© Copyright @2025 LIDEA. All Rights Reserved.