एक तरफ AI से बदलाव की बात, दूसरी ओर लोकतंत्र पर खतरे की चेतावनी: स्टेट प्रेस क्लब पत्रकारिता महोत्सव में भार्गव और दिग्विजय
Webdunia Hindi April 15, 2025 03:42 AM

इंदौर में स्टेट प्रेस क्लब मध्य प्रदेश द्वारा आयोजित भारतीय पत्रकारिता महोत्सव के अंतिम दिन मंच पर दो अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आए। एक ओर इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव थे, जो तकनीक और लोकतंत्र में सकारात्मक बदलाव की बात कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह लोकतंत्र के मौजूदा हालात पर चिंता जाहिर कर रहे थे।

महापौर भार्गव ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर बोलते हुए कहा कि इससे डरने की जरूरत नहीं है। "हमें AI का उपयोग करना चाहिए और अपने विचारों को इसके माध्यम से प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि जो आर्टिफिशियल होगा वो AI के साथ ही रहेगा, लेकिन जो स्वाभाविक (नेचुरल) है उसे इससे कोई खतरा नहीं है।

ईवीएम को लेकर उठ रहे सवालों पर उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग कई बार स्पष्ट कर चुका है कि मतदान की मशीनें किसी सर्वर से नहीं जुड़ी होतीं। सवाल उठाना ठीक है, लेकिन हमें अपने लोकतांत्रिक संस्थानों और कार्यकर्ताओं पर भरोसा रखना चाहिए।

उन्होंने वन नेशन, वन इलेक्शन पर बोलते हुए कहा कि यदि देश में एक साथ चुनाव होते हैं तो न केवल लोकतंत्र मजबूत होगा, बल्कि देश का पैसा भी बचेगा। "2019 से 2024 के बीच हुए चुनावों पर 6.5 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए। यदि ये चुनाव एक साथ होते तो यह खर्च सिर्फ 1.5 लाख करोड़ होता और बाकी 5 लाख करोड़ शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च किया जा सकता था।"

वहीं दिग्विजय सिंह का स्वर पूरी तरह विरोध में था। उन्होंने कहा कि आज देश में लोकतंत्र पर कब्जा करने की कोशिशें हो रही हैं और चुनाव आयोग भी इसमें शामिल हो गया है। "चुनाव आयोग आज विपक्षी दलों को मिलने का समय नहीं देता, मतदाता सूची नहीं देता और सवालों के जवाब नहीं देता।"

उन्होंने ईवीएम पर भरोसा न जताते हुए कहा कि जब तक मतदाता को VVPAT स्लिप नहीं दी जाती और उसकी गिनती नहीं होती, तब तक चुनाव पारदर्शी नहीं माने जा सकते। "दुनिया के कई देशों में यह स्पष्ट किया गया है कि कौन-से सॉफ्टवेयर का उपयोग EVM में होता है, लेकिन भारत में यह जानकारी आज तक नहीं दी गई।"

दिग्विजय सिंह ने सरकार से सवाल पूछा कि जब दूसरे धर्मस्थलों की व्यवस्थाओं में बाहरी धर्म के लोग नहीं हो सकते, तो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम कैसे हो सकता है? उन्होंने वक्फ संशोधन अधिनियम को भेदभावपूर्ण बताया और यह भी कहा कि "आज अगर 2047 की बात हो रही है तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि तब तक देश में लोकतंत्र बचेगा या नहीं।"

इस सत्र ने AI के माध्यम से भविष्य की ओर देखने और लोकतंत्र की रक्षा के लिए चिंताओं को एक साथ मंच पर लाकर रख दिया। जहां एक ओर टेक्नोलॉजी के ज़रिये सशक्तिकरण की बात हुई, वहीं दूसरी ओर संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर गहरे सवाल उठे।

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