सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी फैसला सामने आया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान साफ कहा है कि किसी सरकारी कर्मचारी को किसी भी आपराधिक मामले में सजा होने के बावजूद बिना विभागीय जांच के पद से हटाया नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 311(2) के आधार पर सुनाया है।
क्या है मामला?याचिकाकर्ता मनोज कटियार, कानपुर देहात के एक सरकारी प्राथमिक स्कूल में सहायक शिक्षक के पद पर कार्यरत थे
उनकी नियुक्ति 1999 में हुई थी और 2017 में प्रमोशन भी मिला
लेकिन एक दहेज हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा मिलने पर उन्हें बिना विभागीय जांच के पद से बर्खास्त कर दिया गया
अनुच्छेद 311(2) के अनुसार, किसी भी सरकारी कर्मचारी को बिना सुनवाई का अवसर दिए
बर्खास्त,
निलंबित या
रैंक घटाने जैसी सजा नहीं दी जा सकती
कोर्ट ने शिक्षक की बर्खास्तगी को गैरकानूनी बताते हुए रद्द कर दिया
साथ ही आदेश दिया कि दो महीने के भीतर नया आदेश जारी किया जाए
याचिकाकर्ता की पुनर्बहाली नए आदेश पर निर्भर करेगी
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों और दिशा-निर्देशों का भी हवाला दिया, जिनमें कहा गया है कि:
सरकारी नौकरी किसी भी व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है
सजा मिलने पर भी यदि विभागीय प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तो पद से हटाना अवैध माना जाएगा
सरकारी विभागों को अब किसी भी कर्मचारी को सजा मिलने पर सीधे बर्खास्त करने से पहले विभागीय जांच प्रक्रिया अपनानी होगी
यह फैसला खासतौर पर उन मामलों में अहम है, जहां आपराधिक सजा के बाद भी न्याय की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई होती
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