नई टैक्स रिजीम में बदलाव: जानें कैसे करें सही चुनाव
newzfatafat April 25, 2025 05:42 PM
पुरानी टैक्स व्यवस्था से नई में बदलाव की प्रक्रिया

यदि आपने इस वर्ष की शुरुआत में अपने नियोक्ता को पुरानी टैक्स व्यवस्था के आधार पर TDS कटवाने के लिए कहा था, लेकिन अब आपको लगता है कि नई टैक्स व्यवस्था आपके लिए अधिक लाभकारी है, तो चिंता की कोई बात नहीं है। वर्तमान आयकर कानून आपको एक बार फिर से विचार करने और अपने निर्णय को बदलने की अनुमति देता है।


ITR भरते समय टैक्स रिजीम बदलने का विकल्प

आयकर विभाग ने कर्मचारियों को यह सुविधा दी है कि वे ITR (आयकर रिटर्न) भरते समय अपनी टैक्स व्यवस्था को बदल सकते हैं। इसका मतलब है कि भले ही आपने साल की शुरुआत में पुरानी व्यवस्था को चुना हो, लेकिन साल के अंत में ITR दाखिल करते समय आप नई व्यवस्था का चयन कर सकते हैं।


यदि आपने अपने नियोक्ता को कोई विकल्प नहीं बताया है, तो स्वचालित रूप से आपका TDS नई टैक्स व्यवस्था के अनुसार काटा जाएगा। इसलिए यह जानना आवश्यक है कि कौन सी व्यवस्था आपके लिए अधिक फायदेमंद है।


धारा 115BAC का महत्व

धारा 115BAC आयकर अधिनियम की वह धारा है जो नई टैक्स व्यवस्था को परिभाषित करती है। इस व्यवस्था में कम टैक्स स्लैब हैं, लेकिन इसके लिए आपको कई महत्वपूर्ण टैक्स छूटों और कटौतियों को छोड़ना पड़ता है, जैसे:



  • धारा 80C के तहत निवेश की छूट


  • HRA (हाउस रेंट अलाउंस)


  • LTA (लीव ट्रैवल अलाउंस)



इसलिए नई टैक्स व्यवस्था को चुनने से पहले यह सुनिश्चित करें कि आपके पास इतनी टैक्स छूटें हैं जो पुरानी व्यवस्था को आपके लिए फायदेमंद बनाती हैं। यदि नहीं, तो नई व्यवस्था आपके लिए बेहतर हो सकती है।


पुरानी टैक्स व्यवस्था में न लौटने की स्थिति

यदि आप समय पर अपना ITR दाखिल करते हैं (यानी ड्यू डेट से पहले), तो आप पुरानी या नई किसी भी टैक्स व्यवस्था को चुन सकते हैं। लेकिन यदि आप लेट रिटर्न (Belated Return) दाखिल करते हैं, तो आपको केवल नई टैक्स व्यवस्था का विकल्प मिलेगा।


आयकर पोर्टल लेट रिटर्न दाखिल करने वालों को पुरानी व्यवस्था चुनने का विकल्प नहीं देता है। ऐसे में यदि आपने पुरानी व्यवस्था में टैक्स कटवाया था लेकिन अब लेट रिटर्न दाखिल कर रहे हैं, तो आपकी गणना नई व्यवस्था के अनुसार होगी, भले ही आपको अधिक टैक्स देना पड़े।


महत्वपूर्ण तारीखें

आयकर विभाग ने विभिन्न श्रेणियों के टैक्सपेयर्स के लिए अलग-अलग अंतिम तिथियाँ निर्धारित की हैं:



  • वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए ITR की अंतिम तिथि – 31 जुलाई


  • ऑडिट करवाने वाले व्यवसाय और प्रोफेशनल्स – 31 अक्टूबर


  • ट्रांसफर प्राइसिंग के तहत आने वाली संस्थाएं – 30 नवंबर


  • विलंबित या संशोधित रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तारीख – 31 दिसंबर


  • Assessment Year खत्म होने के 4 साल बाद तक – अंतिम मौका 31 मार्च



यदि आप इन निर्धारित तारीखों से पहले अपना ITR दाखिल करते हैं, तो आप अपनी पसंद की टैक्स व्यवस्था चुन सकते हैं और TDS की गड़बड़ियों को भी ठीक कर सकते हैं।


समाधान के उपाय
  • अपनी आय और कटौतियों का तुलनात्मक विश्लेषण करें। देखें कि कौन-सी टैक्स व्यवस्था आपके लिए अधिक लाभकारी है।


  • यदि आपको नई टैक्स व्यवस्था बेहतर लगती है, तो ITR भरते समय उसे चुनें, भले ही आपका TDS पुरानी व्यवस्था के अनुसार कटा हो।


  • सही समय पर ITR फाइल करें। ड्यू डेट से पहले रिटर्न फाइल करने से आपको अपनी पसंद की टैक्स व्यवस्था चुनने का पूरा अधिकार मिलता है।


  • यदि कोई संदेह हो तो किसी टैक्स विशेषज्ञ से सलाह लें, ताकि किसी भी गलती से बचा जा सके।



  • निष्कर्ष

    यदि आपने वर्ष की शुरुआत में पुरानी टैक्स व्यवस्था चुनी थी, लेकिन अब नई व्यवस्था अधिक लाभकारी लग रही है, तो आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। ITR भरते समय आपको एक और अवसर मिलता है अपनी टैक्स व्यवस्था को बदलने का। बस ध्यान रखें कि रिटर्न समय पर भरा जाए और सही गणना के साथ निर्णय लिया जाए। टैक्स योजना में समझदारी ही सबसे बड़ा लाभ देती है।


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