अकबर: भारत में महान, पाकिस्तान में नफरत का प्रतीक क्यों?
Stressbuster Hindi April 29, 2025 04:42 AM
अकबर का ऐतिहासिक दृष्टिकोण

Pakistan People Hate Akbar (Image Credit-Social Media)    

Pakistan People Hate Akbar (Image Credit-Social Media)    

अकबर के प्रति पाकिस्तान का दृष्टिकोण: भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में अकबर का नाम गर्व और उदारता का प्रतीक माना जाता है। भारत में उन्हें धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समरसता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन पाकिस्तान में, वे एक नायक नहीं, बल्कि आलोचना का विषय बन गए हैं। यह जानना दिलचस्प है कि जो सम्राट भारत में 'महान' कहलाता है, पाकिस्तान में नफरत का पात्र क्यों है। क्या यह सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टिकोण का अंतर है या इसके पीछे कोई गहरा कारण है? आइए, इस रहस्य को समझते हैं।


भारत में अकबर की छवि

भारत में अकबर का धर्मनिरपेक्ष सम्राट के रूप में चित्रण

भारतीय इतिहास में अकबर को एक ऐसे शासक के रूप में दर्शाया गया है जिसने "सुलह-ए-कुल" की नीति अपनाई। उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया और विभिन्न धर्मों के विद्वानों को अपने दरबार में स्थान दिया। अकबर ने दीन-ए-इलाही जैसे धार्मिक आंदोलन की शुरुआत की, जो सभी धर्मों की अच्छाइयों को समेटने का प्रयास था। उनके द्वारा किए गए कार्यों जैसे रामायण और महाभारत का फारसी में अनुवाद, जजिया कर का समाप्ति और गाय हत्या पर प्रतिबंध ने उन्हें भारतीय जनमानस में 'महान' बना दिया।


पाकिस्तान में अकबर की नकारात्मक छवि

Mughal Emperor Akbar (Image Credit-Social Media)

पाकिस्तान में अकबर की छवि एक धर्मविरोधी शासक के रूप में

पाकिस्तान में अकबर को एक ऐसे शासक के रूप में देखा जाता है जिसने इस्लाम के सिद्धांतों से समझौता किया। वहां की पाठ्यपुस्तकों में उन्हें धर्मनिरपेक्षता फैलाने वाला और इस्लाम को कमजोर करने वाला बताया जाता है। मुबारक अली जैसे इतिहासकारों का मानना है कि पाकिस्तान की शिक्षा प्रणाली अकबर की निंदा करती है क्योंकि उन्होंने इस्लामिक कानूनों का पालन करने के बजाय अन्य धर्मों को समानता दी।


पाकिस्तान में अकबर के प्रति नफरत के कारण पाकिस्तान में अकबर के प्रति नफरत के मुख्य कारण 1. सुलह-ए-कुल की नीति:

पाकिस्तान की विचारधारा इस्लामिक राष्ट्र की अवधारणा पर आधारित है। अकबर की 'सभी धर्म समान' की नीति इस्लामी सर्वोच्चता के विचार से टकराती है।

2. दीन-ए-इलाही का निर्माण:

अकबर ने एक नया धार्मिक आंदोलन शुरू किया जो इस्लाम से अलग था। पाकिस्तान में इसे धर्म के साथ गद्दारी माना जाता है।

Mughal Emperor Akbar (Image Credit-Social Media)

3. हिंदू संस्कृति का सम्मान:

अकबर ने हिन्दू त्योहारों में हिस्सा लिया और हिन्दू परंपराओं का आदर किया। पाकिस्तान में इसे इस्लामी कानूनों से विचलन के रूप में देखा जाता है।

4. गाय हत्या पर प्रतिबंध:

अकबर ने गायों की हत्या पर रोक लगाई, जो हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने के लिए किया गया था। पाकिस्तान के दृष्टिकोण से यह इस्लामिक परंपराओं के विरुद्ध था।

5. रामायण और महाभारत का अनुवाद:

भारतीय महाकाव्यों का फारसी में अनुवाद करवाना, पाकिस्तान की नजर में अकबर का गैर-इस्लामी रुझान दर्शाता है।

Mughal Emperor Akbar (Image Credit-Social Media)

6. शिया मुसलमानों को सम्मान:

अकबर ने शिया समुदाय को दरबार में विशेष स्थान दिया और उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता दी। पाकिस्तान के मुख्यधारा सुन्नी इस्लामवादी इस निर्णय की आलोचना करते हैं।


औरंगजेब का आदर्शीकरण पाकिस्तान में औरंगजेब का आदर्शीकरण

जहां अकबर पाकिस्तान में विवादास्पद हैं, वहीं औरंगजेब को आदर्श मुसलमान बादशाह के रूप में देखा जाता है। औरंगजेब ने इस्लामी कानून को सख्ती से लागू किया और मंदिरों को तुड़वाया। पाकिस्तान में उन्हें इस्लामी पहचान की रक्षा करने वाला माना जाता है।

जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' में औरंगजेब को कट्टरपंथी बताया था, लेकिन पाकिस्तान की पाठ्यपुस्तकों में उन्हें एक धार्मिक योद्धा के रूप में महिमामंडित किया गया है।

Mughal Emperor Akbar (Image Credit-Social Media)


इतिहास का राजनीतिकरण पाकिस्तान में इतिहास का राजनीतिकरण

पाकिस्तान में शिक्षा प्रणाली को 1947 के बाद से इस्लामी पहचान के आधार पर गढ़ा गया है। वहां के इतिहास को इस तरह से लिखा गया है कि मुस्लिम श्रेष्ठता को बढ़ावा दिया जाए। अकबर की नीतियां मुस्लिम श्रेष्ठता के बजाय धार्मिक एकता को बढ़ावा देती थीं, इसलिए उन्हें खलनायक बना दिया गया। वहीं, औरंगजेब जैसे शासक जो इस्लामी पहचान के रक्षक माने जाते हैं, उन्हें आदर्श बना दिया गया।

इतिहास केवल घटनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि इसे देखने का नजरिया भी होता है। अकबर की छवि भारत में एक ऐसे राजा की है जिसने विविधता में एकता को महत्व दिया, जबकि पाकिस्तान में उन्हें इस्लामी मूल्यों से समझौता करने वाला माना जाता है।

Mughal Emperor Akbar (Image Credit-Social Media)

ये दृष्टिकोण केवल ऐतिहासिक घटनाओं के नहीं, बल्कि आज के राजनीतिक और वैचारिक हालातों के भी प्रतिबिंब हैं। जब हम इतिहास को पढ़ते हैं, तो यह जरूरी है कि हम यह समझें कि उसे किस मकसद से और किस चश्मे से लिखा गया है।


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