भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक फैसले में डिजिटल एक्सेस को मौलिक अधिकार घोषित किया है। अदालत ने कहा कि राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी नागरिकों, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों को डिजिटल सेवाओं तक समान पहुंच मिले। इस आदेश का पालन करते हुए सरकार को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर व्यापक पहुंच को सुनिश्चित करना होगा।
यह महत्वपूर्ण फैसला जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने दो जनहित याचिकाओं के तहत सुनाया, जिसमें से एक याचिका एक एसिड अटैक पीड़िता ने दायर की थी। इस पीड़िता ने बैंक में ‘नॉर योर कस्टमर’ (KYC) प्रक्रिया के दौरान जो समस्याएं महसूस कीं, उन्हें अदालत के सामने रखा।
कोर्ट ने क्या कहा?सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि डिजिटल सेवाएं आज की तारीख में समान नागरिक अधिकार का हिस्सा बन चुकी हैं। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि डिजिटल सुविधाओं तक पहुंच न होना, समाज के कमजोर वर्गों के लिए भेदभाव जैसा हो सकता है, और यह एक गंभीर मुद्दा है जिसे सरकार को हल करना होगा।
एसिड अटैक पीड़िता का योगदानयाचिकाकर्ता एसिड अटैक पीड़िता ने अदालत को बताया कि KYC प्रक्रिया के दौरान उसे कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उसकी पहचान और अन्य जरूरी दस्तावेज़ सही ढंग से डिजिटल रूप से अपडेट नहीं थे। इसके बाद अदालत ने फैसला लिया कि डिजिटल समावेशन को प्राथमिकता दी जाए और इसे एक मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया जाए।
यह आदेश न केवल भारत में डिजिटल सेवाओं के महत्व को मान्यता देता है, बल्कि यह उन लाखों लोगों के लिए आशा की किरण बन सकता है, जो आज भी डिजिटल युग से बाहर हैं। डिजिटल समावेशन की दिशा में यह एक बड़ा कदम है, जो भविष्य में भारतीय समाज में समानता और समृद्धि की ओर एक अहम बढ़त साबित हो सकता है।