हमारे देश में वर्ष 2014 के बाद से बहुत सारे मुद्दे विलुप्त हो चुके हैं या फिर विलुप्तिकरण की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। इन सभी मुद्दों में से अभिव्यक्ति की आजादी, सरकार से प्रश्न करने की आजादी एक ऐसा मुद्दा है जो देश से सबसे तेजी से गायब हुआ। यहां सत्ता के शीर्ष नेताओं का तथ्यहीन अनर्गल प्रलाप ही अभिव्यक्ति की परिभाषा है, शेष सभी आवाजें खामोश कर दी जाती हैं। सत्ता के झूठ पर ही यहां का मेनस्ट्रीम मीडिया पनप रहा है, अब तो यह मीडिया भी नहीं है, जनता तक झूठ और नफरत फैलाने की एक फैक्ट्री है– जिसमें नफरती समाचारों का बेतहाशा उत्पादन किया जाता है।
दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर सरकार और पूंजीपतियों के वर्चस्व के कारण अफवाहों का बोलबाला है। वर्ष 2014 के बाद से देश में बस एक ही अपराध माना जाता है– सत्ता से प्रश्न पूछना। अब पुलिस अपराधों पर एफआईआर दर्ज नहीं करती बल्कि सत्ता से प्रश्न पूछने वालों पर मिनटों में एफआईआर दर्ज करती है, नेहा राठौर और माद्री काकोटी का मामला सबके सामने है। सत्ता से प्रश्न पूछने वालों को सत्ता, समर्थक, पुलिस और मीडिया सभी देशद्रोही करार देते हैं और ऐसे मामले न्यायालय को भी नजर नहीं आते। दिल्ली में मंत्री कपिल मिश्रा के हिंसक बयान पर अदालतें खामोश रहती हैं जबकि मेधा पाटेकर को जमानत भी नहीं मिलती है।
अभिव्यक्ति की आजादी के संदर्भ में हम कहां खड़े हैं, इसका जवाब पेन अमेरिका नामक संस्था द्वारा तैयार किए जाने वाले लेखकों पर खतरे से संबंधित डेटाबेस से मिलता है। इसके अनुसार दुनिया के 83 देशों में 975 लेखक अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति के कारण जेल/हत्या/हमले जैसे खतरे में हैं। इन 83 देशों में से सबसे अधिक लेखकों पर खतरे के संदर्भ में 61 लेखकों के साथ हमारा देश सऊदी अरब के साथ संयुक्त तौर पर चौथे स्थान पर है। इस सूची में सबसे आगे 138 लेखकों के साथ ईरान, दूसरे स्थान पर 107 लेखकों के साथ चीन, तीसरे स्थान पर 106 लेखकों के साथ तुर्किए और 54 लेखकों के साथ म्यांमार पांचवें स्थान पर है।
लेखकों, बुद्धिजीवियों और कलाकारों के अभिव्यक्ति की आवाज पर नजर रखने वाली संस्था, पेन अमेरिका (PEN America), पिछले 6 वर्षों से लिखने की आजादी इंडेक्स, यानि फ्रीडम टू राइट इंडेक्स, प्रकाशित करती है और इस इंडेक्स के हरेक संस्करण में इस सन्दर्भ में सबसे खराब देशों में भारत शामिल रहता है। इस इंडेक्स का आधार हरेक देश में अपने काम या अपने लेखन या कला के लिए विशुद्ध राजनैतिक कारणों से गिरफ्तार किये गए लेखकों, बुद्धिजीवियों या कलाकारों की संख्या होती है। इस इंडेक्स का नया संस्करण अप्रैल 2025 में प्रकाशित किया गया है, जिसका आधार वर्ष 2024 के आंकड़े हैं, और हमारा देश इस इंडेक्स में 15वें स्थान पर है।
वर्ष 2024 में दुनिया के 40 देशों में कुल 375 लेखक/बुद्धिजीवी जेल में बंद थे। यह संख्या पिछले 6 वर्षों में, जबसे इस इंडेक्स को प्रकाशित किया जा रहा है, सर्वाधिक है। वर्ष 2019 के पहले संस्करण में यह संख्या 238 और वर्ष 2023 में यह संख्या देशों में 339 थी। यह संख्या वर्ष 2023 की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक है। पहले स्थान पर हमेशा की तरह चीन है, जहां कैद किये गए लेखकों की संख्या कुल संख्या का लगभग एक-तिहाई यानि 118 है। पहली बार वर्ष 2023 में चीन में यह संख्या 100 से भी अधिक, 107 तक पहुँच गयी थी।
दूसरे स्थान पर 43 ऐसे कैदियों के साथ ईरान है और तीसरे स्थान पर 23 कैदियों के साथ सऊदी अरब है। चौथे स्थान पर विएतनाम (23), पांचवें पर इजरायल (21), छठे पर रूस (18), सातवें पर तुर्किये (18), आठवें पर बेलारूस (15), नौवें स्थान पर 10-10 कैद के साथ संयुक्त तौर पर मिस्र और म्यांमार है। दसवें स्थान पर प्रत्येक में 7 लेखकों के कैद के साथ क्यूबा, एरिट्रिया और मोरक्को हैं। ग्यारहवें स्थान पर 5 लेखकों को कैद कर अल्जेरिया और कजाखस्तान हैं। इसके बाद 4 लेखकों को जेल में डालकर संयुक्त तौर पर पाकिस्तान, संयुक्त अरब एमीरात और ताजिकिस्तान है। तेरहवें स्थान पर जोर्डन और आज़रबाइजान हैं– दोनों देशों में 3-3 लेखक कैद हैं।
इस क्रम में चौदहवें स्थान पर भारत समेत अफगानिस्तान, बहरीन, जॉर्जिया, कुवैत, निकारागुआ और सेनेगल हैं, इन सभी देशों में 2-2 लेखक कैद हैं। सबसे अंत में 1 लेखक के कैद के साथ संयुक्त तौर पर कॉम्बोडिया, कैमरुन, कांगो, जर्मनी, इराक, किर्गिस्तान, माली, सोमालिया, सीरिया, थायलैंड, ट्यूनीशिया, यूनाइटेड किंगडम और उज्बेकिस्तान हैं।
वर्ष 2024 में जेल में बंद रहे या मुचलके पर बाहर रहे भारतीय लेखकों के नाम हैं– प्रबीर पुरकायस्थ और हनी बाबू। न्यूज़क्लिक के संस्थापक और सम्पादक प्रबीर पुरकायस्थ अक्टूबर 2023 से आतंकवाद-निरोधक क़ानून के तहत जेल में बंद हैं। भीमा-कोरेगांव मामले में लेखक हैनीबाबू को जेल में रखा गया है। जाहिर है, ये सभी मानवाधिकार कार्यकर्ता और लेखक किसी आपराधिक कारणों से नहीं बल्कि केवल सत्ता के विरोध जैसे राजनैतिक कारणों से ही जेल में ठूंसे गए हैं। भारत शुरू से इस इंडेक्स में पहले दस देशों में शामिल रहता था, पर इजरायल और रूस के युद्ध के कारण वहां अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने में तेजी आ गई है, इसलिए भारत दसवें स्थान से आगे चला गया है।
कैद किये गए लेखकों की पूरी संख्या में 16 प्रतिशत, यानि 59 महिलाएं भी हैं, यह संख्या वर्ष 2023 की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक है। कुल 16 देश ऐसे हैं जहां महिला लेखिकाओं/कलाकारों को सत्ता के विरोध के कारण कैद किया गया है। राजनैतिक कारणों से लेखकों को जेल में डालने की घटनाएं साल-दर-साल बढ़ती जा रही हैं। वर्ष 2024 में 375, वर्ष 2023 में 339, वर्ष 2021 के लिए यह संख्या 277 है, वर्ष 2020 में संख्या 273 थी और वर्ष 2019 में यह संख्या 238 थी। सबसे अधिक महिलाएं-13, ईरान में कैद हैं, इसके बाद 10 महिला लेखिकाओं को कैद कर चीन दूसरे स्थान पर है। तीसरे स्थान पर इजराइल है, जहां 7 महिला लेखिकाएं कैद हैं।
भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार एशिया-प्रशांत क्षेत्र लेखकों के लिए सबसे खतरनाक है– इस क्षेत्र में 161 लेखक जेल में हैं और 432 लेखक खतरे में हैं। मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 123 लेखक जेल में और 367 लेखक खतरे में हैं। यूरोप और मध्य एशिया में यह संख्या क्रमशः 69 और 272 है, सहारा-अफ्रीका में क्रमशः 13 और 78 जबकि उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में क्रमशः 9 और 110 है। वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर 51 लेखकों की हत्या की गई, 14 को जबरन गायब कर दिया गया और 143 लेखकों को सत्ता के विरोध के बाद अपना देश छोड़ना पड़ा।
इस इंडेक्स के अनुसार दुनिया भर में बंद 375 लेखकों में से सबसे अधिक 203 ऑनलाइन कमेंटेटर, 127 पत्रकार/संपादक, 115 साहित्यिक लेखक हैं, 92 एक्टिविस्ट, 68 बुद्धिजीवी हैं, 67 कवि हैं, 37 कलाकार, 35 गायक या गीतकार हैं, 14 अनुवादक हैं, 12 सम्पादक, 11 प्रकाशक और 4 रंगकर्मी हैं। हरेक वर्ष कवियों और अनुवादकों की सख्या बढ़ती जा रही है, जाहिर है फिर से कवितायें विद्रोह की आवाज बन रही हैं और ऐसा म्यांमार और चीन के कवियों ने स्पष्ट तौर पर दिखाया है। अनुवादक भी दूसरे देशों और भाषाओं के विद्रोह के स्वर को आम जनता तक पहुंचा रहे हैं।
हम इतिहास के उस दौर में खड़े हैं जहां मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में हम पाकिस्तान, रूस, चीन, बेलारूस, तुर्की, हंगरी, इजराइल को आदर्श मान कर उनकी नक़ल कर रहे हैं और स्वघोषित विश्वगुरु का डंका पीट रहे हैं। यह दरअसल देश के मेनस्ट्रीम मीडिया की जीत है, क्योंकि यह मीडिया ऐसा ही देश चाहता है और देश में ऐसी ही निरंकुश सत्ता चाहता है जिसके तलवे चाटना ही उसे समाचार नजर आता है।