National : ब्रह्मोस की गरज से दहला पाकिस्तान, जब भारत ने दागीं क्रूज मिसाइलें, जानें BrahMos क्यों है इतना खास – अभी पढ़ें
sabkuchgyan May 12, 2025 06:25 PM

ब्राह्मण मिसाइल प्रणाली: भारत ने पाकिस्तान को सीमा पर चल रहे तनाव के दौरान करारा जवाब दिया है। जिससे उसके सैन्य गलियारों में खलबली मच गई। ब्रह्मोस( BrahMos) क्रूज मिसाइल से नूर खान (चकलाला) एयरबेस समेत पाकिस्तान के कई अहम सैन्य ठिकानों को टारगेट कर जबरदस्त तबाही मचाई।

सूत्रों के मुताबिक भारत ने ये स्ट्राइक उस वक्त की जब पाकिस्तान ने ‘फतह 11’ बैलिस्टिक मिसाइलें लॉन्च की। इन बैलिस्टिक मिसाइलों से उसने नई दिल्ली को निशाना बनाने की कोशिश की थी। लेकिन हरियाणा के सिरसा में तैनात S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने वो मिसाइलें हवा में ही खत्म कर दीं। इसके बाद भारत ने कोई वक्त गंवाए बिना ब्रह्मोस का जवाबी इस्तेमाल किया।

BrahMos क्रूज मिसाइल से पाकिस्तान पर कहर

इस स्ट्राइक का मकसद सिर्फ जवाब देना नहीं था। बल्कि रणनीतिक तौर पर पाकिस्तान की ‘परमाणु छवि’ को भी झटका देना था। भारत ने दिखा दिया कि वो सिर्फ डिफेंस नहीं। जरूरत पड़ी तो ऑफेंस में भी उतना ही सटीक और घातक है।

इस हमले के बाद पाकिस्तान की टॉप मिलिट्री लीडरशिप खुद आर्मी चीफ असीम मुनीर को बैकफुट पर आना पड़ा। एक दिन पहले ही भारत ने लाहौर में पाकिस्तान की एयर डिफेंस सिस्टम को टारगेट किया था। जिससे ये साफ हो गया कि भारत की मिसाइलें अब दुश्मन की गहराई तक पहुंचकर सीधे दिल पर वार कर सकती हैं।

इन जगहों पर हुआ हमला

ब्रह्मोस की जबरदस्त सटीकता के साथ रफीकी, मुरीदके, नूर खान, रहीम यार खान, सुक्कुर, चुनियन, स्कार्दू, भोलारी और जैकबाबाद जैसे इलाकों में भारी नुकसान हुआ है।

अब समझिए ब्रह्मोस क्यों है इतना खास ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली

अब समझते है ब्रह्मोस इतना खास क्यों है। दरअसल ‘फायर एंड फॉरगेट’ यानी दागो और भूल जाओ के कान्सेप्ट से ब्रह्मोस बनी है। और यही इसकी ताकत भी है। एक बार लॉन्च करने के बाद इसे किसी गाइडेंस की जरूरत नहीं होती।

ये मिसाइल दो-चरणीय सिस्टम पर काम करती है। ये मिसाइल भारत और रूस की साझेदारी का प्रतिक है। रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) और रूस के एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया ने इसे संयुक्त रूप से बनाया है।

पहले सॉलिड बूस्टर इसे लॉन्च करता है। फिर रैमजेट इंजन इसे मैक 3 की रफ्तार से आगे बढ़ाता है। इसका नाम भी काफी खास है। भारत की ‘ब्रह्मपुत्र’ और रूस की ‘मॉस्कवा’ नदी को जोड़कर इसे ‘ब्रह्मोस’ कहा गया।

10 मीटर नीचे उड़कर भी दुश्मनों का खात्मा

ब्रह्मोस 10 मीटर तक नीचे उड़कर भी दुश्मन को निशाना बना सकती है। जिससे इसे ट्रैक करना और रोकना बेहद मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि ये दुश्मन की आंखों से ओझल रहते हुए भी सटीक वार कर सकती है।

  • रेंज की बात करें तो इसकी बेसिक मारक क्षमता 290 किमी है।
  • अपग्रेडेड वर्जन 450 से 800 किमी तक टारगेट कर सकते हैं।
  • अब 1,500 किमी तक की रेंज वाला वेरिएंट भी टेस्टिंग में है।

24 साल पहले हुआ था परीक्षण

ब्रह्मोस का पहला सफल परीक्षण 12 जून 2001 को हुआ था। 2005 में इसे नौसेना ने INS राजपूत पर शामिल किया।तो वहीं साल 2007 में सेना की रेजिमेंट में। बाद में एयरफोर्स ने भी इसे सुखोई-30 MKI के ज़रिए हवा से लॉन्च करना शुरू किया। आज 2025 तक भारत के पास ब्रह्मोस के कई वर्जन मौजूद हैं। हर वर्जन दुश्मन के लिए एक खौफ का नाम है।

© Copyright @2025 LIDEA. All Rights Reserved.