शरीर का एक भी अंग अगर सही से काम न करे तो पूरी बॉडी का सिस्टम हिल जाता है. ऐसे में जरूरी है कि शरीर के सभी हिस्से सही से काम करें. कई बार कुछ अंगों के खराब होने पर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है.
क्या है ट्रांसप्लांट?
ट्रांसप्लांट (Transplant)” का मतलब होता है किसी एक व्यक्ति के शरीर से कोई अंग (organ) निकालकर उसे दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित (implant) करना. यह आमतौर पर तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति का कोई महत्वपूर्ण अंग (जैसे कि किडनी, लीवर, दिल आदि) काम करना बंद कर देता है और उसकी जान बचाने के लिए उसे नया अंग चाहिए होता है.
हार्ट, लिवर, किडनी, आंख, स्किन और हाथ-पैर जैसे कई अंगों का ट्रांसप्लांट संभव हो गया है. लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि किसी का दिमाग यानी ब्रेन ट्रांसप्लांट हुआ हो? शायद नहीं. डॉ. आदित्य गुप्ता ( डायरेक्टर- न्यूरोसर्जरी और साइबरनाइफ, आर्टेमिस हॉस्पिटल गुरुग्राम) ने बताया कि इसका कारण यह है कि ब्रेन ट्रांसप्लांट अब तक संभव नहीं हो पाया है.
क्यों ट्रांसप्लांट नहीं होता है ब्रेन?
डॉ. आदित्य गुप्ता ने बताया कि ब्रेन हमारे पूरे शरीर का कंट्रोल सेंटर होता है.हम जो भी सोचते, समझते, महसूस करते या करते हैं, सब कुछ ब्रेन के जरिए ही होता है. शरीर की सारी नसें ब्रेन से जुड़ी होती हैं और हर अंग को संकेत भेजती हैं कि क्या करना है और कैसे करना है. ऐसे में अगर किसी और का ब्रेन किसी व्यक्ति में ट्रांसप्लांट किया जाए, तो उसका मतलब होगा उस इंसान की पूरी पहचान बदल देना, क्योंकि हमारी यादें, सोच और व्यवहार सभी ब्रेन में होते हैं.
ब्रेन को शरीर के बाकी अंगों से जोड़ने के लिए लाखों नर्व फाइबर्स होती हैं. उन्हें दोबारा जोड़ना आज की तकनीक के लिए बहुत मुश्किल काम है. इतना सटल और काम्प्लेक्स नेटवर्क जोड़ना लगभग असंभव है. यदि किसी और का ब्रेन किसी व्यक्ति के शरीर में लगाया भी जाए, तो वह नया शरीर उस ब्रेन को पहचान नहीं पाएगा और उसे रिजेक्ट कर सकता है.
हालांकि मेडिकल साइंस तेजी से आगे बढ़ रही है और भविष्य में हो सकता है कि तकनीक इतनी विकसित हो जाए कि ब्रेन ट्रांसप्लांट मुमकिन हो, लेकिन तब भी इसके नैतिक और कानूनी पहलुओं को समझना और सुलझाना जरूरी होगा. हर अंग का ट्रांसप्लांट करना आज संभव है, लेकिन ब्रेन ट्रांसप्लांट बेहद जटिल, तकनीकी और नैतिक कारणों से अब तक संभव नहीं हो पाया है.