महज सात वर्ष की उम्र से ही पंकज उधास गाना गाने लगे। उनके इस शौक को उनके बड़े भाई मनहर उधास ने पहचान लिया और उन्हें इस राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। मनहर उधास अक्सर संगीत से जुड़े कार्यक्रम में हिस्सा लिया करते थे। उन्होंने पंकज उधास को भी अपने साथ शामिल कर लिया।
एक बार पकंज को एक संगीत कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिला जहां उन्होंने 'ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी' गीत गाया। इस गीत को सुनकर श्रोता भाव-विभोर हो उठे। उनमें से एक ने पंकज उधास को खुश होकर 51 रुपए दिए। इस बीच पंकज उधास राजकोट की संगीत नाट्य अकादमी से जुड़ गये और तबला बजाना सीखने लगे।
कुछ वर्ष के बाद पंकज उधास का परिवार बेहतर जिंदगी की तलाश में मुंबई आ गया। पंकज उधास ने अपनी स्नातक की पढ़ाई मुंबई के मशहूर सैंट जेवियर्स कॉलेज से हासिल की। इसके बाद उन्होंने स्नाकोत्तर पढ़ाई करने के लिये दाखिला ले लिया लेकिन बाद में उनकी रूचि संगीत की ओर हो गई और उन्होंने उस्ताद नवरंग जी से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी।
उन्हीं दिनों अपने दोस्त के जन्मदिन के समारोह में पंकज उधास को गाने का अवसर मिला। उसी समारोह में टोरंटो रेडियो में हिंदी के कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले एक सज्जन भी मौजूद थे उन्होंने पंकज उधास की प्रतिभा को पहचान लिया और उन्हें टोरंटो रेडियो और दूरदर्शन में गाने का मौका दे दिया। लगभग दस महीने तक टोरंटो रेडियो और दूरदर्शन में गाने के बाद पंकज उधास का मन इस काम से उब गया।
इस बीच कैसेट कंपनी के मालिक मीरचंदानी से उनकी मुलाकात हुई और उन्हें अपनी नई एलबम आहट में पार्श्वगायन का अवसर दिया। यह अलबम श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। वर्ष 1986 में प्रदर्शित फिल्म 'नाम' पंकज उधास के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है। यूं तो इस फिल्म के लगभग सभी गीत सुपरहिट साबित हुए लेकिन पंकज उधास की मखमली आवाज में 'चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है' गीत आज भी श्रोताओ की आंखो को नम कर देता है।
इसके बाद उन्हें कई फिल्मों में गाना गाने का मौका मिला। इन फिल्मों में गंगा जमुना सरस्वती, बहार आने तक, थानेदार, साजन, दिल आशना है, फिर तेरी कहानी याद आई, ये दिल्लगी, मोहरा, मै खिलाड़ी तू अनाड़ी, मंझधार, घात, और ये है जलवा, प्रमुख है। पंकज उधास के गाए गीतों की संवदेनशीलता उनकी निजी जिन्दगी में भी दिखाई देती थी। वह एक सरल हृदय के संवदेशनशील इंसान भी है जो दूसरों के दुख-दर्द को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास करते है। दूसरों के प्रति हमदर्दी और संवेदनशीलता की इस भावना को प्रदर्शित करने वाला एक वाकया है।
एक बार मुंबई के नानावती अस्पताल से एक डॉक्टर ने पंकज उधास को फोन किया कि एक व्यक्ति के गले के कैंसर का ऑपरेशन हुआ है और उसकी उनसे मिलने की तमन्ना है। इस बात को सुनकर पंकज उधास तुरंत उस शख्स से मिलने अस्पताल गए और न सिर्फ उसे गाना गाकर सुनाया बल्कि अपने गाए गाने का कैसेट भी दिया। बाद में पंकज उधास को जब इस बात का पता चला कि उसके गले का ऑपेरशन कामयाब रहा है और उसकी बीमारी धीरे-धीरे ठीक हो रही है तो पंकज उधास काफी खुश हुए।
पंकज उधास को अपने करियर में मान सम्मान भी खूब मिला। इनमें सर्वश्रेष्ठ गजल गायक .के.एल. सहगल अवार्ड, रेडियो लोटस अवार्ड, इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी अवार्ड, दादाभाई नौरोजी मिलेनियम अवार्ड और कलाकार अवार्ड जैसे कई पुरस्कार शामिल है। साथ ही गायकी के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये उन्हें 2006 में पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
पंकज उधास ने कई एलबम के लिए पार्श्वगायन किया, इनमें नशा, हसरत, महक, घूंघट, नशा 2, अफसाना, आफरीन, नशीला, हमसफर, खूशबू और टुगेदर, प्रमुख है। गजल गायिकी को नया आयाम देने वाले पंकज उधास का 26 फरवरी 2024 को निधन हो गया।