झारखंड मुक्ति मोर्चा: बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार एक नया मोड़ देखने को मिल सकता है। झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) अब खुद की ताकत पर बिहार की सीमावर्ती 12 से 15 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। महागठबंधन की बैठकों में लगातार नजरअंदाज किए जाने और समन्वय समिति में स्थान न मिलने के कारण, हेमंत सोरेन की पार्टी ने अब अकेले चुनावी मैदान में उतरने का संकेत दिया है.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बिहार चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ गठबंधन की उम्मीद जताई थी। लेकिन महागठबंधन की अब तक की बैठकों में झामुमो को उचित महत्व नहीं मिला। जबकि झारखंड विधानसभा चुनाव में झामुमो ने उदारता दिखाते हुए RJD को छह सीटें दी थीं और सरकार बनने के बाद एक मंत्री पद भी दिया गया था.
JMM का क्या है मिशन?
अप्रैल में आयोजित झामुमो के महाधिवेशन में पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने का प्रस्ताव पारित किया। इसके तहत बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया जा रहा है। बिहार में JMM का प्रभाव सीमावर्ती जिलों में विशेष रूप से देखा जा रहा है.
चकाई की याद: जहां JMM ने दिखाया था दम
हालांकि 2010 में JMM को बिहार विधानसभा में केवल एक सीट (चकाई) पर जीत मिली थी, लेकिन पार्टी का मानना है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में उसका जनाधार अब भी मजबूत है। उस समय सुमित कुमार सिंह ने झामुमो के टिकट पर जीत हासिल की थी। वे वर्तमान में निर्दलीय विधायक हैं और बिहार सरकार में मंत्री भी हैं.
'सम्मान नहीं मिला, तो हम तैयार हैं अकेले चलने को' – झामुमो
पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता विनोद कुमार पांडेय ने कहा, 'झामुमो महागठबंधन में समन्वय बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन यदि सम्मान नहीं मिला तो पार्टी बिहार में अपने दम पर चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है.'