हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ की पूजा का बहुत महत्व है। सनातन में बरगद के पेड़ को पूजनीय कहा गया है, लेकिन वट सावित्री व्रत के दिन इसकी पूजा इतनी खास क्यों मानी जाती है? इन सभी प्रश्नों के उत्तर हिंदू पौराणिक कथाओं में मिलते हैं। कहा जाता है कि बड़ के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। बरगद के पेड़ की जड़ें ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं, तना विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है, और शाखाएं शिव का प्रतिनिधित्व करती हैं।
वट सावित्री पूजा ज्येष्ठ माह की अमावस्या को की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य और समृद्धि लाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री या बड़ी अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
यह दिन क्यों महत्वपूर्ण है?
इस दिन के महत्व को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं हैं, जिनमें से एक यह है कि इस दिन सावित्री ने अपने तप से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लिए थे। तभी से यह व्रत शुरू हुआ। महिलाएं सावित्री की तरह अपने पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। मान्यता है कि सावित्री की तरह इस व्रत को करने से उन्हें सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है।
पूजा कैसी होती है
सावित्री व्रत में विवाहित महिलाएं स्नान कर श्रृंगार करती हैं और बिना अन्न-जल ग्रहण किए ग्रीष्म ऋतु में बड़ के वृक्ष की पूजा करती हैं। सावित्री व्रत में कच्चे सूत का धागा बरगद के पेड़ के तने के चारों ओर 7 बार बांधने की परंपरा है, जिसका पालन सभी महिलाएं पूरी आस्था के साथ करती हैं।
लेकिन आखिर क्यों 7 बार ही पेड़ से बांधा जाता है इसका कारण जानते हैं। दरअसल, मान्यता है कि बरगद के पेड़ में सात बार कच्चा सूत लपेटने से पति-पत्नी का रिश्ता सात जन्मों तक एक-दूसरे से बंध जाता है। साथ ही उसके पति पर आने वाली विपत्तियां टल जाती हैं। यह व्रत सत्यवान सावित्री की कथा से जुड़ा है।
वट सावित्री की कथा
सदियों से चली आ रही सावित्री की कथा में उल्लेख है कि इसी दिन यमराज ने सावित्री को उसके पति सत्यवान के प्राण लौटाए थे। यमराज ने इस जीवन को बरगद के पेड़ पर लौटा दिया और उसे 100 पुत्रों का वरदान दिया। तभी से वट वृक्ष की लटकती शाखाओं को सावित्री स्वरूप माना जाता है और वट सावित्री व्रत एवं वट वृक्ष की पूजा की जाती है।