कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक की हार्ट लैम्प ने जीता बुकर पुरस्कार, कभी झेलनी पड़ी थी सामाजिक बहिष्कार की वेदना
Webdunia Hindi May 22, 2025 10:42 PM


banu mushtaq heart lamp wins booker prize 2025: कन्नड़ साहित्य जगत में एक नया अध्याय लिखा गया है, जब प्रतिष्ठित लेखिका बानू मुश्ताक ने अपने लघु कहानी संग्रह 'हार्ट लैंप' के लिए इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2025 जीतकर इतिहास रच दिया है। यह न केवल कन्नड़ साहित्य, बल्कि भारतीय साहित्य के लिए भी एक गर्व का क्षण है। दीपा भस्ती द्वारा बेहतरीन ढंग से अनुवादित, यह संग्रह सामाजिक मुद्दों पर अपनी गहरी पकड़ और संवेदनशीलता के लिए सराहा गया है। यह पहली बार है जब किसी लघु कहानी संग्रह को यह प्रतिष्ठित सम्मान मिला है, जो बानू मुश्ताक की लेखन कला और 'हार्ट लैंप' की ताकत को दर्शाता है।

कौन हैं बानू मुश्ताक ?
बानू मुश्ताक सिर्फ एक लेखिका नहीं, बल्कि एक बहुमुखी प्रतिभा की धनी महिला हैं, जिन्होंने अपनी कलम और अपने जीवन दोनों से समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया है। पेशे से वह एक वकील और पत्रकार हैं। इसके साथ ही, वह एक कवयित्री, उपन्यासकार और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। उनका लेखन समाज के उन अनछुए पहलुओं को उजागर करता है, जिन पर अक्सर बात नहीं होती। उन्होंने थोड़े समय के लिए बेंगलुरु में ऑल इंडिया रेडियो में भी काम किया। बानू मुश्ताक 1980 के दशक से कर्नाटक में कट्टरपंथ और सामाजिक अन्याय के खिलाफ कार्यकर्ता आंदोलनों का भी सक्रीय हिस्सा रही हैं।

मुस्लिम परिवार में जन्म , किया प्रेम विवाह:
बानू मुश्ताक का जन्म 1948 में कर्नाटक के हसन में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था।। उनकी जिंदगी संघर्षों से भरी रही है, खासकर सामाजिक रूढ़ियों और पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ उनकी लड़ाई। उन्होंने प्रेम विवाह किया, जिसके लिए उन्हें अपने परिवार और समाज दोनों से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए भी उन्हें अथक संघर्ष करना पड़ा।

' हार्ट लैंप ' और लेखन की गहराई
'हार्ट लैंप' लघु कहानी संग्रह बानू मुश्ताक के लेखन की गहराई और सामाजिक मुद्दों के प्रति उनकी संवेदनशीलता का प्रमाण है। उनके लेखन में महिलाओं के अनुभव, प्रजनन अधिकार, आस्था, जाति, शक्ति संरचना और उत्पीड़न जैसे विषय प्रमुखता से सामने आते हैं। बानू उन मुद्दों की आवाज हैं जो समाज में नैतिकता के नाम पर अक्सर दबा दिए जाते हैं। वे समाज को उन सच्चाइयों का आइना दिखाने का काम करती हैं जिन्हें अक्सर नजरंदाज कर दिया जाता है। बुकर पुरस्कारों के निर्णायक मंडल के अध्यक्ष मैक्स पोर्टर ने 'हार्ट लैंप' की तारीफ करते हुए कहा कि यह अंग्रेजी पाठकों के लिए 'कुछ नया' है।

सामाजिक बहिष्कार के बाद भी नहीं टूटा साहस
बानू मुश्ताक को अपनी जिंदगी में सामाजिक बहिष्कार की वेदना झेलनी पड़ी। 2000 के दशक में उन्होंने मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश की बात उठाई। यह एक ऐसा मुद्दा था जिस पर समाज में बहुत प्रतिरोध था, और इसके चलते उन्हें कट्टरपंथियों और रूढ़िवादी सोच रखने वाले लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी। उन्हें अपने समुदाय के भीतर से ही भारी विरोध और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा। लेकिन बानू मुश्ताक ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी विचारधारा और अपने विश्वासों पर अडिग रहते हुए, अपनी कलम को अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाया। 'हार्ट लैंप' जैसी कृतियों के माध्यम से उन्होंने न केवल साहित्यिक ऊंचाइयों को छुआ, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के लिए अपनी लड़ाई भी जारी रखी।

बानू मुश्ताक की कहानी हमें सिखाती है कि सपने देखने और उन्हें हकीकत में बदलने का माद्दा हो तो कोई भी सामाजिक बाधा या रूढ़िवादिता हमें रोक नहीं सकती। उनका इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीतना उन सभी के लिए एक बड़ी प्रेरणा है जो समाज में बदलाव लाना चाहते हैं और अपनी आवाज उठाना चाहते हैं।

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