Spying Scandal (Image Credit-Social Media)
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कूमर नारायण जासूसी कांड: यह कांड, जिसे 'कुमार नारायण जासूसी कांड' भी कहा जाता है, भारत के इतिहास में सबसे बड़े जासूसी मामलों में से एक है। यह घटना 1985 में उजागर हुई और इसमें कई उच्च सरकारी अधिकारियों की भागीदारी सामने आई, जिससे उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार को गंभीर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।
कूमर नारायण का जन्म 1925 में केरल के पलक्कड़ जिले के वेडकनचेरी में हुआ था। उन्होंने भारतीय सेना की डाक सेवा में हवलदार के रूप में कार्य किया और बाद में दिल्ली में एसएलएम मानेकलाल समूह में काम किया, जो रक्षा अनुबंधों में संलग्न था। नारायण ने सरकारी अधिकारियों से गोपनीय दस्तावेज प्राप्त कर उन्हें विदेशी एजेंटों को बेचा।
दिल्ली में स्वतंत्रता के बाद की स्थिति में कूमर नारायण ने एक नई शुरुआत की। वह 1949 में भारत सरकार में स्टेनोग्राफर के रूप में नियुक्त हुए और दिल्ली के स्थायी निवासी बन गए।
कूमर नारायण का असली नाम चित्तूर वेंकट नारायणन था। यह तथ्य तब सामने आया जब दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा के शिव देव सिंह ने पुरानी फाइलों की जांच की।
16 जनवरी 1985 को, इंटेलिजेंस ब्यूरो ने कूमर नारायण और उनके संपर्क पूकाट गोपालन को गिरफ्तार किया। जांच में पता चला कि नारायण ने 1977 से 1985 के बीच कई गोपनीय दस्तावेज विदेशी एजेंटों को बेचे।
इस कांड ने राजीव गांधी सरकार को हिला दिया। प्रधानमंत्री ने संसद में इसकी घोषणा की, जिससे देशभर में हड़कंप मच गया। कुल 18 लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए।
कूमर नारायण का नेटवर्क चुपचाप लेकिन प्रभावी था। उसने रिश्वत के लिए महंगी स्कॉच और विदेश यात्रा के टिकटों का उपयोग किया।
कूमर नारायण की कहानी ने यह साबित कर दिया कि जासूसी केवल सीमाओं पर नहीं होती, बल्कि कभी-कभी यह हमारे अपने घरों के भीतर भी होती है।