महाराणा प्रताप के इतिहास से जुड़े झूठ उजागर, राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने खोले कई चौंकाने वाले राज़
aapkarajasthan May 29, 2025 08:42 PM

राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने कहा कि महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज देशभक्ति के पर्याय हैं। दोनों के जन्म में 90 वर्ष का अंतर है। यदि दोनों समकालीन होते तो देश की तस्वीर कुछ और होती। वीरता और देशभक्ति के मामले में दोनों को एक ही नजरिए से देखा जाता है। यहां तक कि शिवाजी महाराज का भोंसले वंश भी खुद को मेवाड़ के सिसोदिया वंश से जोड़ता है। महाराणा प्रताप की वीरता के सम्मान में संभाजी नगर में प्रताप की अश्वारोही प्रतिमा स्थापित की गई है। राज्यपाल बागड़े बुधवार शाम उदयपुर जिले के प्रताप गौरव केंद्र राष्ट्रीय तीर्थ स्थित कुंभा सभागार में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। 

उन्होंने कहा कि बप्पा रावल से लेकर महाराणा प्रताप और उनके बाद के शासकों ने विदेशी आक्रमणकारियों को खदेड़कर देश की रक्षा की। महाराणा प्रताप का संपूर्ण जीवन स्वाभिमान के लिए संघर्ष की प्रेरणा देता है। देश की अस्मिता की रक्षा के लिए उनके योगदान को युगों-युगों तक याद किया जाएगा। राज्यपाल ने कहा कि प्रारंभिक काल में भारत का इतिहास विदेशियों द्वारा लिखा गया। इसमें कई झूठे तथ्य बताए गए। उन्होंने आमेर की राजकुमारी और अकबर के विवाह को भी झूठ बताया। उन्होंने कहा कि अकबर की आत्मकथा अकबरनामा में इसका कोई उल्लेख नहीं है। इसके अलावा महाराणा प्रताप द्वारा अकबर को संधि पत्र लिखने का तथ्य भी पूरी तरह से भ्रामक है। प्रताप ने कभी भी अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। इतिहास में अकबर के बारे में ज्यादा और महाराणा प्रताप के बारे में कम पढ़ाया जाता है। हालांकि अब स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अपनी संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को संरक्षित करते हुए नई पीढ़ी को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।

भारत की आजादी की लड़ाई के अग्रदूत थे महाराणा प्रताप
मुख्य वक्ता ऑर्गनाइजर अखबार के प्रधान संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि महाराणा प्रताप भारत की स्वराज यानी स्वशासन और स्वाभिमान की लड़ाई के अग्रदूत थे। यह लड़ाई 1857 की क्रांति का मूल है। वीर सावरकर ने देश के स्वाभिमान के संघर्ष पर छह पेज लिखे, जिसमें से एक पेज मेवाड़ के संघर्ष के बारे में है। उन्होंने कहा कि स्वाभिमान के संघर्ष को जीवित रखने के लिए प्रताप गौरव केंद्र जैसे स्थानों की स्थापना की जरूरत महसूस की गई, संघर्ष को जीवित रखने के लिए महाराणा प्रताप की जयंती मनाना जरूरी है।

अगर हल्दीघाटी के युद्ध के काल के बारे में कुछ बेतुका कहा जाता है, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है
केतकर ने कहा कि मेवाड़ के स्वाभिमान की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप द्वारा किए गए संघर्ष के बारे में कई भ्रामक बातें फैलाई जाती हैं। जब आधुनिक तकनीक के युग में ऑपरेशन सिंदूर के वीडियो तक दिखाए गए, इसके बावजूद देश में कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं, तो हल्दीघाटी युद्ध के काल के बारे में कुछ बेबुनियाद कहा जाए तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। उस काल में भी प्रताप को अपने ही लोगों से संघर्ष करना पड़ा था और आज भी वही हो रहा है।

संघर्षों के बीच भी कुशल प्रशासक थे महाराणा प्रताप
केतकर ने कहा कि महाराणा प्रताप ने न केवल युद्ध के मैदान में अपनी वीरता से मेवाड़ का मान बढ़ाया, बल्कि संघर्षों के बीच भी कुशल प्रशासक के रूप में मेवाड़ की कला-संस्कृति और साहित्य का संरक्षण और संवर्धन किया। उन्होंने मेवाड़ की कला और संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुगल स्थापत्य कला के नाम पर आज बहुत कुछ बेचा जा रहा है, जबकि मेवाड़ की स्थापत्य कला को पढ़ाया जाना चाहिए। चावंड के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई जानी चाहिए, ताकि नई पीढ़ी हमारी गौरवशाली विरासत के महत्व को समझ सके।

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