क्या था मामला?
यह केस बिहार सरकार के एक रिटायर्ड कर्मचारी से जुड़ा है, जिन्होंने करीब 35 साल सेवा दी और साल 2001 में रिटायर हो गए। लेकिन 2009 में सरकार ने नोटिस भेजकर कहा कि सैलरी तय करते समय गलती हो गई थी और उन्होंने तय से ज्यादा वेतन पाया। अब उनसे ₹63,765 की वसूली की जाएगी।
हाईकोर्ट से झटका, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से मिला न्याय
कर्मचारी ने पहले पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन वहां से राहत नहीं मिली। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और साफ शब्दों में कहा कि अगर सैलरी एक बार तय हो चुकी है तो उसमें बाद में कटौती नहीं की जा सकती।
कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा:
-
सरकार की गलती का बोझ कर्मचारी पर नहीं डाला जा सकता।
-
सैलरी में कटौती एक प्रकार की सजा है, जो पूरी तरह गलत है।
-
रिटायरमेंट के बाद वसूली करना अनुचित और अमानवीय है।
कोर्ट ने राज्य सरकार का नोटिस रद्द कर दिया और कहा कि कर्मचारी को मानसिक प्रताड़ना देना गलत है।
प्रमोशन के बावजूद पद घटाया गया
इस केस में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई। कर्मचारी को पहले प्रमोशन मिला, लेकिन बाद में उसका पद घटा दिया गया और इसी के आधार पर वेतन घटाकर वसूली की गई। सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी नाजायज माना।
क्यों बना यह फैसला मिसाल?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अब पूरे देश के सरकारी कर्मचारियों के लिए एक मिसाल बन गया है। अब अगर:
-
आपकी सैलरी तय होने के बाद वसूली हो रही है,
-
आपका प्रमोशन होने के बावजूद पद कम कर दिया गया,
-
आपकी सैलरी में अचानक कटौती कर दी गई,
तो आप इस फैसले का हवाला देकर कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।
कानून अब आपके साथ है
अब यह पूरी तरह साफ हो चुका है कि यदि कोई कर्मचारी बिना किसी फर्जीवाड़े के वेतन पा रहा था और गलती सरकार की ओर से हुई थी, तो सरकार उससे पैसे वापस नहीं मांग सकती। और अगर मांगे, तो कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है – जहां न्याय कर्मचारी के पक्ष में खड़ा होगा।
यह फैसला सरकारी कर्मचारियों की गरिमा, आत्म-सम्मान और अधिकारों की रक्षा करता है। यह सरकार को भी संदेश देता है कि वेतन तय करते वक्त लापरवाही की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।