पिता की प्रॉपर्टी में बेटे-बेटी का कितना हक़? जानिए कानून क्या कहता है Property Rights
sabkuchgyan May 31, 2025 09:25 AM

घर की प्रॉपर्टी को लेकर परिवार में झगड़े होना कोई नई बात नहीं है। आजकल हर रोज कोर्ट-कचहरी में ऐसे केस सामने आते हैं जहां भाई-बहन एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं, वजह—पिता की संपत्ति में हिस्सा। असली दिक्कत ये है कि बहुत से लोगों को पता ही नहीं होता कि उनका कानूनी अधिकार क्या है। खासतौर पर बेटियों के मामले में तो समाज अब भी पुराने सोच में अटका हुआ है।

दो तरह की संपत्ति—पैतृक और स्वयं अर्जित

भारत के कानून में संपत्ति को दो हिस्सों में बांटा गया है—पैतृक संपत्ति और स्वयं अर्जित संपत्ति। पैतृक संपत्ति वो होती है जो दादा-परदादा से मिलती आई है और तीन पीढ़ियों से ऊपर की होनी चाहिए। वहीं, स्वयं अर्जित संपत्ति वह होती है जो व्यक्ति ने खुद की कमाई, मेहनत, गिफ्ट, दान या वसीयत से पाई हो। अब इन दोनों में अधिकारों के नियम अलग-अलग हैं।

स्वयं अर्जित संपत्ति में पिता का फुल कंट्रोल

अगर बात खुद की कमाई से अर्जित की गई संपत्ति की करें तो इस पर पिता का पूरा हक होता है। वो चाहे तो इसे बेच दे, दान कर दे या किसी को भी दे दे। अगर उन्होंने वसीयत बनाई है और किसी एक बच्चे को पूरी संपत्ति देना चाहा, तो वो भी वैध है—बशर्ते वसीयत कानूनी रूप से सही तरीके से बनी हो। इस मामले में बेटे या बेटी चाहें तो कोर्ट जा सकते हैं, लेकिन अगर वसीयत ठीक बनी है, तो फैसला पिता के हक में ही जाएगा।

अगर वसीयत नहीं बनी तो सभी बच्चों का बराबर का हक

लेकिन अगर पिता बिना वसीयत के ही गुजर गए, तो कहानी बदल जाती है। ऐसी स्थिति में उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति कानून के अनुसार बंटती है—और बेटा-बेटी दोनों को बराबर का हिस्सा मिलता है। इसलिए सलाह दी जाती है कि समय रहते वसीयत बना लेना ही सही होता है, ताकि बाद में कोई झगड़ा न हो।

धर्म के अनुसार अलग-अलग नियम

हमारे देश में संपत्ति के नियम धर्म के अनुसार भी बदलते हैं। हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 के अनुसार, हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों में बेटा-बेटी दोनों को बराबर का अधिकार है। वहीं, मुस्लिम कानून में बेटियों को बेटों के मुकाबले कम हिस्सा मिलता है—लगभग आधा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट और कई जज अब बराबरी की बात कर रहे हैं, जिससे बदलाव की उम्मीद है।

पैतृक संपत्ति में जन्म से ही हक

पैतृक संपत्ति की बात करें तो ये वो हिस्सा है जिसमें बेटा और बेटी दोनों का जन्म से ही अधिकार होता है। इसमें पिता चाहें तो भी किसी को वंचित नहीं कर सकते, क्योंकि यह संपत्ति पूरी फैमिली की मानी जाती है। 2005 में जो संशोधन हुआ उसके बाद बेटियों को भी बेटों के बराबर का हक मिल गया। पहले उन्हें सीमित हक मिलता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

रियल लाइफ में क्यों नहीं मिलते हक?

कई बार बेटियों को उनका हक इसलिए नहीं मिल पाता क्योंकि उन्हें सही जानकारी नहीं होती, समाज का दबाव होता है, या फिर परिवार ही उन्हें अंधेरे में रखता है। डॉक्युमेंट्स छुपा लिए जाते हैं या बेटियों को झूठ बोलकर बहला दिया जाता है। इसीलिए आज जरूरत है जानकारी और जागरूकता की। परिवार में ओपन बातचीत होनी चाहिए और सभी दस्तावेज सबके साथ शेयर किए जाने चाहिए।

समझदारी और पारदर्शिता से बच सकते हैं झगड़े

अगर हर कोई शुरू से ही पारदर्शिता रखे, वसीयत समय पर बनाए और सभी को बराबरी का हक दे, तो न कोर्ट के चक्कर लगेंगे न रिश्ते बिगड़ेंगे। संपत्ति को लेकर विवाद तभी होते हैं जब जानकारी की कमी और संवाद की कमी होती है। बेटा हो या बेटी—अब दोनों बराबर हैं, और कानून भी यही कहता है।

Disclaimer:

यह लेख केवल सामान्य जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। संपत्ति से जुड़े हर मामले में नियम परिस्थिति के अनुसार बदल सकते हैं। इसलिए किसी भी कानूनी कदम से पहले योग्य वकील या कानूनी सलाहकार से ज़रूर राय लें। धर्म विशेष के पर्सनल लॉ अलग हो सकते हैं।

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