नई दिल्ली, 31 मई . ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने एक सामान्य आनुवंशिक प्रकार की पहचान की है, जो पुरुषों में डिमेंशिया के जोखिम को दोगुना कर देता है.
कर्टिन विश्वविद्यालय की टीम ने कहा कि तीन में से एक व्यक्ति में इस वैरिएंट की एक कॉपी होती है, जिसे एच63डी के नाम से जाना जाता है, जबकि 36 में से एक व्यक्ति में इसकी दो कॉपी होती हैं.
न्यूरोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित शोध में पाया गया कि जिन पुरुषों में डबल एच63डी वैरिएंट होता है, उनमें महिलाओं की तुलना में अपने जीवनकाल में डिमेंशिया विकसित होने की संभावना दोगुनी होती है.
यह रिसर्च ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के 19,114 स्वस्थ बुजुर्गों पर की गई थी. इसमें यह जांचा गया कि क्या ‘हेमोक्रोमैटोसिस (एचएफई)’ जीन में बदलाव वाले लोगों को डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है. यह जीन शरीर में आयरन (लोहे) के स्तर को नियंत्रित करने के लिए बहुत जरूरी है.
कर्टिन मेडिकल स्कूल के प्रोफेसर जॉन ओलिनिक ने कहा, “इस जीन के बदलाव की सिर्फ एक कॉपी होने से किसी के स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता या डिमेंशिया का खतरा नहीं बढ़ता. हालांकि, इसकी दो कॉपी होने से पुरुषों में डिमेंशिया का खतरा दोगुना से भी ज्यादा हो जाता है, लेकिन महिलाओं में ऐसा नहीं होता.”
ओलिनिक ने कहा, “हालांकि आनुवंशिक भिन्नता को बदला नहीं जा सकता, लेकिन मस्तिष्क के जिन मार्गों को यह प्रभावित करता है, जिससे क्षति होती है और डिमेंशिया होता है, यदि हम इसके बारे में अधिक समझ लें, तो इसका उपचार किया जा सकता है.”
प्रोफेसर ओलिनिक ने कहा कि इस बात की जांच के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है कि क्यों इस आनुवंशिक भिन्नता से पुरुषों में डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है, जबकि महिलाओं में नहीं.
ओलिनिक ने आगे कहा, “ऑस्ट्रेलिया सहित अधिकांश पश्चिमी देशों में, लोगों में हेमोक्रोमैटोसिस (एक विकार जिसमें शरीर बहुत अधिक मात्रा में आयरन को अवशोषित कर लेता है) का आकलन करते समय एचएफई जीन का नियमित परीक्षण किया जाता है. हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि शायद यह परीक्षण पुरुषों के लिए अधिक व्यापक रूप से किया जा सकता है.”
जबकि एचएफई जीन शरीर में आयरन के स्तर को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन टीम को प्रभावित पुरुषों में रक्त में लौह के स्तर और डिमेंशिया के बढ़ते जोखिम के बीच कोई सीधा संबंध नहीं मिला.
ओलिनिक ने कहा, “यह अन्य तंत्रों की ओर संकेत करता है, जिनमें संभवतः शरीर में सूजन और कोशिका क्षति के कारण मस्तिष्क की चोट का जोखिम बढ़ जाता है.”
इन खोजों से डिमेंशिया के खतरे वाले लोगों के लिए बेहतर नतीजे मिल सकते हैं और खास तौर पर ‘एच63डी’ बदलाव की दो कॉपी वाले पुरुषों के लिए रोकथाम और इलाज के ज्यादा व्यक्तिगत तरीकों का रास्ता खुल सकता है.
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एएसएच/एएस
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