पहले के समय में डायबिटीज को बड़ों से जोड़कर देखा जाता था. पहले ये सिर्फ बड़ों को अपनी गिरफ्त में लेती थी, लेकिन अब डायबिटीज केवल बड़ों की बीमारी नहीं रही. यह बच्चों को भी तेजी से प्रभावित कर रही है. डॉ. ऐश्वर्या कृष्णमूर्ति (वरिष्ठ कंसल्टेंट – एंडोक्राइनोलॉजी, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वैशाली) ने बताया कि बच्चों में मुख्यतः टाइप-1 डायबिटीज देखी जाती है, लेकिन कुछ मामलों में टाइप-2 डायबिटीज भी पाई जा रही है, खासकर मोटापे से ग्रस्त बच्चों में.
बच्चों में डायबिटीज होने के कारण-
यह एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अग्न्याशय (पैंक्रियास) की इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला कर देती है. इसका कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारणों का मिश्रण हो सकता है.
यह अधिकतर मोटापे, खराब जीवनशैली, शारीरिक गतिविधियों की कमी और परिवार में डायबिटीज के इतिहास की वजह से होती है. पहले यह टाइप-2 केवल वयस्कों में होती थी, लेकिन अब यह किशोरों और यहां तक कि छोटे बच्चों में भी देखी जा रही है.
क्या यह बिना दवा के ठीक हो सकती है?
टाइप-1 डायबिटीज पूरी तरह से इंसुलिन पर निर्भर होती है. इसे बिना दवा या इंसुलिन के नियंत्रित नहीं किया जा सकता. जीवनभर इंसुलिन थेरेपी जरूरी होती है.
टाइप-2 डायबिटीज को शुरुआती चरण में जीवनशैली में सुधार (जैसे संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और वजन नियंत्रित रखना) से नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन यदि शुगर लेवल बहुत अधिक हो, तो डॉक्टर द्वारा दी गई दवाएं जरूरी होती हैं.
माता-पिता को क्या ध्यान रखना चाहिए?
बच्चों में डायबिटीज गंभीर जरूर है, लेकिन सही इलाज और देखभाल से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. टाइप-1 डायबिटीज बिना दवा के ठीक नहीं हो सकती, जबकि टाइप-2 डायबिटीज को जीवनशैली सुधार से काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है.