जब भी मैं अपने जीवन में कोई नया काम शुरू करती हूँ, तो आसपास के कुछ लोग मुझे हतोत्साहित करने लगते हैं। इसका असर मेरे उत्साह पर पड़ता है। प्रेमानंद जी समझाते हैं कि हमें किसी के समर्थन या विरोध से प्रभावित नहीं होना चाहिए। सच्चा कर्मयोगी वही है जो भगवान में आस्था रखता है और अपने लक्ष्य पर डटा रहता है।
मेरे असली सहयोगी भगवान हैं। अगर कोई मेरी प्रशंसा करता है, तो वह उसकी समझ है। अगर कोई निंदा करता है, तो वह भी उसकी सोच है।हमें दूसरों की सोच पर नहीं, बल्कि अपनी सोच पर भरोसा करना चाहिए और हमारी बुद्धि को भगवान का मार्गदर्शन मिल रहा है। अगर हम इस भाव से काम करें, तो हमारे भीतर उत्साह बना रहेगा। इस दुनिया में उत्साह बढ़ाने वाले कम होते हैं लेकिन उत्साह कम करने वाले बहुत मिलते हैं। इसलिए हमें भीतर से मजबूत बनना होगा।