राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि जहां न्याय में देरी अन्याय है, वहीं जल्दबाजी में न्याय करना भी अन्याय हो सकता है। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने किरायेदारी विवाद में प्रतिवादी को पांच हजार रुपए कॉस्ट जमा करवाकर साक्ष्य प्रस्तुत करने का अंतिम अवसर प्रदान किया।
जस्टिस अरुण मोंगा की एकलपीठ में सिरोही के वरदा गांव में स्थित एक दुकान को लेकर सिविल वाद से संबंधित मामले की सुनवाई हुई। दुकान मालिक कुंदनमल ने महिपाल सिंह पर किराया न देने और दुकान खाली न करने का आरोप लगाते हुए वाद दायर किया था। वहीं महिपाल ने कुंदनमल के मालिकाना हक को नकारते हुए कहा कि दुकान उसने बनाई है और वह पिछले 12 साल से उसमें काबिज है।
कोर्ट ने देरी का हवाला दिया
वाद के दौरान प्रतिवादी ने गवाही के लिए पंचायत अधिकारी को बुलाना चाहा। लेकिन कोर्ट ने देरी का हवाला देते हुए साक्ष्य प्रस्तुत करने पर रोक लगा दी। पीठ ने माना कि अवसर देने से कार्रवाई में देरी होती, लेकिन कॉस्ट लगाकर इसे संतुलित किया जा सकता था। कोर्ट ने कहा कि यदि पर्याप्त साक्ष्य नहीं जुटाए गए तो सही निर्णय देना मुश्किल हो सकता है।