हम कई बार सोचते हैं कि सिर्फ प्रार्थना से सफलता मिल जाएगी लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में साफ कहा है- अभ्यास ही विजय का मार्ग है। कोई भी व्यक्ति अगर किसी क्षेत्र में सफलता पाता है, तो उसके पीछे उसका निरंतर अभ्यास और मेहनत होती है। यह जरूरी नहीं कि हर सत्कर्म का फल तुरंत मिले, जैसे किसी अपराध की सजा भी तुरंत नहीं मिलती, वैसे ही पुण्य का फल भी समय लेता है। जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हम पूरे मन से प्रयास करते हैं, लेकिन फिर भी असफल हो जाते हैं। तब हमें ईश्वर पर से श्रद्धा नहीं खोनी चाहिए, बल्कि अभ्यास और धैर्य बनाए रखना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि मन को संयमित करने के लिए वैराग्य और अभ्यास दो मुख्य साधन हैं। मन को भटकने से रोककर लक्ष्य की ओर टिकाए रखना ही असली साधना है। संसार में सफलता की पूजा होती है, लेकिन असफलता में साथ देने वाले बहुत कम होते हैं। यदि कोई पराजित हो जाए तो उसका उपहास करने के बजाय उसका मनोबल बढ़ाना चाहिए। माता-पिता हों या शिक्षक, मित्र हों या गुरु- सबको मिलकर असफल व्यक्ति को फिर से उठने का साहस देना चाहिए। जो व्यक्ति पूरी मेहनत के बाद भी असफल होता है, वो पूजनीय होता है, क्योंकि उसने ईमानदारी से प्रयास किया। असफलता को देखकर निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे एक सीढ़ी समझकर और भी ज्यादा उत्साह से आगे बढ़ना चाहिए। भगवान का आश्रय और अभ्यास – यही दो चीजें जीवन को हर संकट से उबारती हैं। असफलता से घबराने के बजाय, अभ्यास में लग जाएं। एक दिन वही अभ्यास सफलता को आपके चरणों में लाकर रख देगा। जीवन में निराशा से बड़ा कोई शत्रु नहीं। जो साधक निरंतर अभ्यास करता है और भगवान पर श्रद्धा रखता है, उसे कोई भी असफलता नहीं रोक सकती। बस जरूरत है- धैर्य, अभ्यास और अटूट आस्था की।
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