“कालसर्प योग वो ग्रहयोग है, जो राजा को रंक बना सकता है और अच्छे भले इंसान को संघर्ष की आग में झोंक सकता है। लेकिन यदि सही उपाय किए जाएं और भगवान शिव की कृपा मिल जाए, तो यही योग भाग्योदय का द्वार भी बन सकता है।”
कालसर्प योग तब बनता है जब व्यक्ति की कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं। यह स्थिति व्यक्ति के जीवन में अचानक संकट, धोखा, भय, रोग, आर्थिक हानि और मानसिक तनाव का कारण बन सकती है।
बार-बार विफलता, चाहे कितनी भी मेहनत क्यों न करें।
सपनों में सांप दिखना, या सांपों का डर बार-बार महसूस होना।
अचानक नुकसान – जैसे बिजनेस में घाटा, धन हानि, नौकरी से निकाला जाना।
परिवारिक कलह, रिश्तों में गलतफहमियाँ।
कर्ज में फँसना, और उससे छुटकारा न मिलना।
अचानक रोग या ऑपरेशन की नौबत आना, खासकर सिर या रीढ़ की हड्डी से जुड़ा रोग।
कालसर्प योग 12 प्रकार के होते हैं जैसे अनन्त, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कार्कोटक आदि। हर योग का असर अलग होता है – कुछ जीवन के शुरूआती वर्षों में कष्ट देते हैं, तो कुछ बीच उम्र या बुढ़ापे में भी असर डालते हैं।
मिथुन
कन्या
धनु
मीन
इन राशियों के जातकों को अक्सर कालसर्प योग या उससे मिलते-जुलते प्रभावों से जूझना पड़ता है।
महादेव की आराधना करें – रोज़ “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें।
राहु-केतु शांति यज्ञ कराएं – विशेष रूप से त्र्यंबकेश्वर (नासिक), उज्जैन, या ताम्रगौर तीर्थ पर।
श्रावण मास में रुद्राभिषेक कराएं – जल, दूध, बेलपत्र से।
नाग पंचमी के दिन पूजा करें, चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा बहते जल में प्रवाहित करें।
शनिवार को काले तिल, उड़द और लोहे का दान करें।
हनुमान चालीसा और शनि चालीसा का नियमित पाठ करें।
घर में शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें – “ॐ नमः शिवाय”