ईरान का कड़ा संदेश: “ट्रम्प को दिखाया ठेंगा”, अमेरिका और इजरायल के ठिकानों पर करेगा 1,000 मिसाइलों की बौछार
Rajasthankhabre Hindi June 21, 2025 04:42 PM

हाल ही में इजरायल और अमेरिका के सैन्य ठिकानों के लिए 1,000 मिसाइल दागने की तैयारी का ऐलान करके ईरान ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी तरह की धमकियों से नहीं डरेगा। इस कदम ने अमेरिका और इजरायल के बीच बढ़ती सैन्य-राजनीतिक तनातनी को और भड़का दिया है।

मिसाइल हमलों की चेतावनी

ईरानी सेना के वरिष्ठ सूत्रों ने कहा है कि इजरायल के साथ-साथ अमेरिकी सैन्य अड्डों को भी निशाना बनाया जाएगा यदि तनाव की स्थिति नहीं सुधरी। इन ठिकानों में इराक और फारस की खाड़ी क्षेत्र में स्थित अमरिकी बेस भी शामिल हैं ।

इजरायल–ईरान संघर्ष का ताजा मोड़

इजरायल ने 13 जून से पहले ही ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमला शुरू कर दिया था। इसके जवाब में ईरान ने इजरायल पर 150 से ऊपर बैलिस्टिक मिसाइलें और 100+ ड्रोन छोड़कर कड़ा प्रत्युत्तर दिया ।

चेतावनी का मंजर: अस्पतालों तक निशाना

रॉयटर्स और एपी की रिपोर्टों के अनुसार, ईरानी मिसाइल हमलों में क्लस्टर बम का इस्तेमाल हुआ, जिससे नागरिक इलाकों और एक अस्पताल को भी भारी नुकसान पहुंचा ।

अमेरिका कैसे प्रतिक्रिया देगा?

प्रतिरोध के बीच, व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प अगले दो हफ्तों में अमेरिका के संभावित हस्तक्षेप पर निर्णय लेंगे reuters.com+2reuters.com+2reuters.com+2। फिलहाल अमेरिका ने कूटनीतिक द्वार भी बनाए रखे हैं।

वैश्विक चिंता और कूटनीति

ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय संघ ने दोनों पक्षों को परमाणु बातचीत बहाल करने की सलाह दी है, लेकिन ईरान का कहना है कि जब तक इजरायल के हमले नहीं बंद होंगे, धैर्य से बातचीत असंभव है ।

तेल बाजार पर असर

इस पूरे तनाव ने तेल की कीमतों को भी प्रभावित किया, जिससे ब्रेंट क्रूड लगभग $2 गिरकर $76.96 प्रति बैरल पर आ गया reuters.com।

ईरान द्वारा 1,000 मिसाइलों की धमकी ने मध्य-पूर्व की स्थिति को अत्यधिक अस्थिर कर दिया है।

  • इराक और खाड़ी में अमेरिकी ठिकानों को ध्यान में रखकर सुरक्षा सतर्कता बढ़ा दी गई है।
  • इजरायल-ईरान संघर्ष पहले ही नागरिक इलाकों तक पहुंच गया है।
  • अमेरिका की प्रतिक्रिया अगले दो हफ्तों में सामने आएगी।
  • यूरोप परमाणु वार्ता के पक्ष में है, लेकिन ईरान सकारात्मक नहीं दिख रहा।

यह संघर्ष सिर्फ क्षेत्रीय नहीं रहा — यह अब वैश्विक राजनीति, ऊर्जा बाजार और सुरक्षा रणनीतियों का मुद्दा बन चुका है।

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