डिजिटल जनगणना: नागरिकों की गिनती या डेटा संग्रह
Navjivan Hindi June 22, 2025 04:42 AM

भारत जैसे दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और सबसे ज्यादा बहुलता वाले देश में जनगणना कभी आसान कवायद नहीं हो सकती। इसके बावजूद इसकी कठिनाइयों और जटिलताओं से निपटते हुए जनगणना को अंजाम देने का देश का अनुभव भी पुराना है। इसलिए अभी तक न तो इसे लेकर जनता में कभी उलझन रही और न ही सरकारें कभी अतिरिक्त तौर पर परेशान ही हुईं। लेकिन सात साल की देरी से हो रही भारत की अगली जनगणना में स्थिति बदलती दिख रही है। 

अगली जनगणना के बारे में जैसे-तैसे कुछ जो जानकारियां सामने आ रही हैं, उनसे उलझने ही बढ़ रही हैं। कुछ जानकारियां तो नए खतरों की ओर इशारा कर रही हैं। पहलगाम के आतंकवादी हमले के बाद मई के अंत में हुई पहली कैबिनेट बैठक के बाद बताया गया कि अगली जनगणना में जातियों की गणना भी की जाएगी। यह कैसे होगा, इसके बारे में कुछ नहीं बताया गया। चार जून को जारी गृह मंत्रालय की प्रेस रिलीज में सिर्फ जनगणना की तारीखें ही बताई गईं। फिर 16 जून को महारजिस्ट्रार और जनगणना आयुक्त की ओर से सरकारी गजट में नोटिफिकेशन प्रकाशित किया गया जिसमें तारीखों के अलावा कोई और ब्योरा नहीं था। 

इसके एक दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की थी। बैठक पर जारी सरकारी रिलीज में कुछ तकनीकी जानकारियां भर थीं। कितने लोग जनगणना करने में लगेंगे, कितने सुपरवाइजर होंगे वगैरह। यह भी बताया गया कि इस बार की जनगणना डिजिटल होगी। इसे मोबाइल एप्लीकेशन के जरिये दर्ज किया जाएगा। लोगों को यह सुविधा दी जाएगी कि वे अपनी जानकारियां खुद ही दर्ज करा सकें। डिजिटल जनगणना के खतरों को लेकर इसमें कुछ नहीं कहा गया। 

ये खतरे बहुत बड़े हैं। इन खतरों की बात से पहले जो नहीं कहा गया, उसकी चर्चा जरूरी है। मई के बाद सरकार की ओर से जाति जनगणना पर एक शब्द भी नहीं बोला गया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पूछा कि क्या सरकार ने अपना विचार बदल दिया है? तेलंगाना में हुए जाति सर्वे की प्रक्रिया में शामिल रहे ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष प्रवीन चक्रवर्ती ने नेशनल हेराल्ड को बताया कि जाति जनगणना के बारे में हम अभी कुछ कहने की हालत में नहीं हैं। हमें पता नहीं है कि सरकार क्या करने जा रही है। आधिकारिक रूप से इसका कोई ब्योरा अभी तक जारी नहीं हुआ है।

डिजिटल सेंसस की सामने आ रही रूपरेखा भी चिंता का बड़ा कारण बन गई है। इस तरह से डेटा संग्रह करने के हमारे पुराने अनुभव कोई बहुत अच्छे नहीं रहे और सरकार ने ऐसा कोई आश्वासन देने की कोशिश भी नहीं की है कि लोगों का डेटा सुरक्षित रहेगा। 

पहले देखते हैं कि डिजिटल जनगणना का क्या अर्थ है। साइबर कानून एक्सपर्ट पवन दुग्गल बताते हैं कि इस बार लोगों की गणना पहले की तरह कागज-कलम के बजाय मोबाइल, टेबलेट वगैरह़ के जरिये होगी। आपके घर में कितने लोग हैं? घर कच्चा है या पक्का? रसोई गैस का कनेक्शन है या नहीं? ऐसे तमाम सवालों के जवाब तो दर्ज किए ही जाएंगे, लोगों की जीपीएस टैगिंग और जियो फेंसिग भी दर्ज हो जाएगी। 

ऐसा हुआ, तो जनगणना का अर्थ सिर्फ गणना भर ही नहीं रह जाएगा। इसका अर्थ है कि लोगों की सिर्फ वही जानकारियां ही नहीं दर्ज होंगी, जो वे खुद देंगे, बल्कि उनकी बहुत सी वे अहम निजी जानकारियां भी दर्ज हो जाएंगी जिनके लिए उनकी अनुमति भी नहीं ली जाएगी। 

आधुनिक कारेाबार की दुनिया में ऐसा डेटा सबसे महंगा और सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है जिसमें लोगों की तमाम जानकारियों के अलावा उनकी जीपीएस लोकेशन भी दर्ज हो। ऐसे डेटा के इस्तेमाल और दुरुपयोग की ढेर सारी संभावनाएं होती हैं। दुग्गल स्वीकार करते हैं कि इस डेटा की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती होगी क्योंकि न सिर्फ कारोबारी दुनिया के लिए, बल्कि चुनाव के लिहाज से भी इस डेटा का दुरुपयोग किया जा सकता है। वह कहते हैं, 'जब हमारे पास साइबर सुरक्षा का स्पष्ट कानून ही नहीं है, तो हम कैसे उम्मीद करें कि डिजिटल जनगणना साइबर सुरक्षा को महत्व देगी।'

एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म्स के प्रोफेसर जगदीप सिंह छोकड़ इसमें आगे जोड़ते हैं, 'एक आधार तो इनसे संभल नहीं रहा, आधार का डेटा बाजार में खरीदा और बेचा जा रहा है। यह उम्मीद कैसे की जाए कि डिजिटल सेंसस का डेटा बचा रह जाएगा।' अगर सरकार के ऐप बेस्ड सिस्टम की बात करें, तो कोविड से लेकर डिजी-लाॅकर तक जितने भी तरह के ऐप सरकार की ओर से लांच किए गए, उन्होंने लोगों को सुविधा देने से ज्यादा परेशान ही किया है। 

जगदीप छोकड़ साइबर सुरक्षा से जुड़ी एक और बात की ओर इशारा करते हैं। वह कहते हैं कि ज्यादा बड़ा सवाल व्यवस्था की विश्वसनीयता का है, और इसी से शक बनता है कि इस डेटा का दुरुपयोग हो सकता है। पिछले दिनों अर्थशास्त्री जयति घोष ने एक बातचीत में यही बात दूसरे ढंग से कही थी। उनका कहना था, 'कई बार लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार को आंकड़ों से डर लगता है। दूसरी तरह से कहें, तो उसे यह तो लगता है कि लोगों के आंकड़े उन्हें मिल जाएं, लेकिन हकीकत क्या है, इसके आंकड़े लोगों तक न पहुंचें।'

डिजिटल सेंसस में इस बात का पूरा खतरा है कि कहीं लोगों की निजता बाजार के हवाले न हो जाए? इससे भी बड़ा खतरा यह है कि लोगों की निजता सोशल मीडिया के जरिये चुनावी नैरेटिव बनाने वालों को उपलब्ध न हो जाए। पिछले कुछ चुनावों की ऐसी बहुत सी रिपोर्ट बताती हैं कि सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों का विस्तृत डेटा सत्ताधारी दल के पास पहुंच गया और इसी से खेल हो गया। यानी डिजिटल जनगणना में यह पूरा खतरा है कि इस कवायद में जमा की गई जानकारियां सिर्फ बाजार का ही नहीं, राजनीतिक मंशाओं का पेट भरने के काम भी आ सकती हैं।

सरकार की प्रेस विज्ञप्ति बताती है कि घर-घर जाकर जनगणना करने के लिए 31 लाख जनगणनाकर्मी और सुपरवाइजर्स की जरूरत पड़ेगी। कुछ खबरों में बताया गया है कि 4,600 लोग तो सिर्फ इन्हें प्रशिक्षण देने के लिए ही रखे जाएंगे। प्रोफेसर छोकड़ कहते हैं कि जो कंप्यूटर, टेबलेट और मोबाइल फोन वगैरह चलाना जानते हैं, वे डेटा इंट्री का काम भी आसानी से कर लेंगे, यह मानने का कोई कारण नहीं है क्योंकि डेटा एंट्री एक अलग कौशल है। उनका कहना है कि तर्क भले ही यह दिया जा रहा हो कि डिजिटल सेंसस से गलतियां कम हो जाएंगी, नतीजा उलटा भी हो सकता है। पहले डेटा एंट्री का काम उन लोगों के हवाले रहता था, जो इसके एक्सपर्ट हैं। कोई समस्या आने पर कागज पर लिखे को वापस देखा जा सकता था। अब यह विकल्प खत्म हो जाएगा। दुग्गल इसी बात को दूसरे ढंग से कहते हैं, 'डर यह है कि डिजिटल सेंसस को कहीं डिजिटल डिवाइड की मार न खानी पड़ जाए।'

डिजिटल सेंसस से एक उम्मीद यह बांधी जा सकती है कि इससे गणना का काम बहुत जल्दी हो सकता है। लेकिन ऐसा दिख नहीं रहा। चार जून की प्रेस रिलीज में बताया गया था कि 2021 की जनगणना का आधारभूत काम कोविड से पहले पूरा किया जा चुका था। यह पहले ही हो चुका था, तो इसमें बहुत समय नहीं लगना चाहिए। फिर इसे शुरू करने के लिए दो साल का समय क्यों लग रहा है? 

ठीक यहीं पर तेलंगाना में हुए जाति सर्वे को देखना महत्वपूर्ण होगा। 7 दिसबंर 2023 को रेवंथ रेड्डी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 4 फरवरी को कैबिनेट ने जाति सर्वे कराने का फैसला कर लिया। विधानसभा में प्रस्ताव पास कराने से लेकर स्टेक होल्डर्स और विशेषज्ञों से सलाह से साथ ही सर्वे का खाका बनाने और प्रश्नावली तैयार करने जैसे काम अगले कुछ महीनों में पूरे कर लिए गए। 2011 की राष्ट्रीय जनगणना में लोगों से तीस सवाल पूछने का प्रावधान था, जबकि तेलंगाना के इस सर्वे में लोगों से कुल 75 सवाल पूछे गए। रेड्डी सरकार अपनी पहली वर्षगांठ मनाती, इसके पहले ही सर्वे पूरा भी कर लिया गया। 

सूचना तकनीक के दौर में यह सब पहले जितना कठिन नहीं रहा। लेकिन केंद्र सरकार उस गति से काम कर रही है, जो आमतौर पर 2011 के पहले की जनगणनाओं में मजबूरी हुआ करती थी। प्रवीण चक्रवर्ती कहते हैं, 'आज जो तकनीक उपलब्ध है, उसमें इतना समय नहीं लगना चाहिए, जितना केंद्र सरकार ले रही है।'

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