होर्मुज जलडमरूमध्य : वैश्विक अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा
होर्मुज जलडमरूमध्य, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ता है, तेल और गैस के वैश्विक व्यापार का एक महत्वपूर्ण गलियारा है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, भारत अपनी 80% से अधिक ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है और इसका अधिकांश कच्चा तेल और एलएनजी इसी जलमार्ग से आता है। ईरान की संसद ने इस मार्ग को बंद करने का प्रस्ताव पारित किया है, जिसे अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने 'आर्थिक आत्महत्या' करार दिया। यदि ईरान इस धमकी को अमल में लाता है, तो ब्रेंट क्रूड की कीमतें, जो पहले ही 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी हैं, 100 डॉलर से ऊपर जा सकती हैं। इससे वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ेगी और भारत जैसे आयात-निर्भर देशों के लिए गंभीर आर्थिक संकट खड़ा होगा।
उज्जवला योजना पर मंडराता खतरा : प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, जिसने 2016 से अब तक 10 करोड़ से अधिक गरीब परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए हैं, भारत की सामाजिक कल्याण नीतियों का आधार है। यह योजना न केवल स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देती है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य और सशक्तिकरण में भी योगदान देती है। हालांकि, एलपीजी की कीमतें कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों से सीधे जुड़ी हैं। ईरान-इजराइल युद्ध और होर्मुज जलडमरूमध्य के संभावित बंद होने से तेल की कीमतों में उछाल आएगा, जिसका सीधा असर एलपीजी की सब्सिडी लागत पर पड़ेगा।
वर्तमान में, भारत सरकार एलपीजी सिलेंडरों पर भारी सब्सिडी देती है, जिससे उज्जवला लाभार्थियों को 14.2 किलोग्राम का सिलेंडर 500-600 रुपए तक में मिलता है। यदि कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाता है, तो सरकार को सब्सिडी का बोझ बढ़ाने या कीमतें बढ़ाने का कठिन निर्णय लेना पड़ सकता है। दोनों ही विकल्प राजनीतिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील हैं। कीमतों में वृद्धि से गरीब परिवारों पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा, जबकि सब्सिडी बढ़ाने से सरकारी खजाने पर दबाव पड़ेगा, जो पहले ही कोविड-19 और यूक्रेन युद्ध के आर्थिक प्रभावों से जूझ रहा है।
वैश्विक भू-राजनीति में भारत की स्थिति : भारत ने इस संकट में संतुलित कूटनीतिक रुख अपनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन से बातचीत कर तनाव कम करने और कूटनीति के माध्यम से समाधान निकालने की अपील की। भारत के लिए यह संकट इसलिए जटिल है क्योंकि उसके इजराइल और ईरान दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। इजराइल भारत का प्रमुख रक्षा और प्रौद्योगिकी साझेदार है, जबकि ईरान का चाबहार बंदरगाह भारत के लिए मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुंच का रणनीतिक मार्ग है।
इस बीच, पाकिस्तान का ईरान के समर्थन में खुलकर सामने आना और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की आक्रामक बयानबाजी क्षेत्रीय ध्रुवीकरण को और गहरा कर रही है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने ईरान के समर्थन में बयान दिए, जबकि कराची में प्रदर्शनकारियों ने भारत के खिलाफ नारेबाजी की। यह भारत के लिए एक अतिरिक्त चुनौती है, क्योंकि दक्षिण एशिया में पहले से ही तनावपूर्ण भारत-पाक संबंध इस संकट से और प्रभावित हो सकते हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारत के विकल्प : होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने से न केवल तेल की कीमतें बढ़ेंगी, बल्कि वैश्विक व्यापार मार्ग भी बाधित होंगे। लाल सागर में हूती विद्रोहियों के हमलों के कारण पहले ही भारतीय निर्यात प्रभावित हो रहा है और अब होर्मुज का संकट भारत के 3.6 लाख करोड़ रुपए के व्यापार को खतरे में डाल सकता है। भारत सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए वैकल्पिक तेल स्रोतों, जैसे पश्चिम अफ्रीका और रूस, की ओर रुख करने की योजना बनाई है। यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से तेल आयात बढ़ाया है, जिससे आपूर्ति की कमी की आशंका कम हुई है।
हालांकि, रूस से आयात बढ़ाने के बावजूद, लंबी शिपिंग दूरी और युद्ध जोखिम बीमा की बढ़ती लागत भारत के व्यापार घाटे को बढ़ा सकती है। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर बढ़ती महंगाई भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव डालेगी। मई 2025 में भारत की खुदरा महंगाई दर 2.8% थी, जो छह साल में सबसे कम थी, लेकिन तेल कीमतों में उछाल इसे फिर से बढ़ा सकता है।
अमेरिका और चीन की भूमिका : अमेरिका का ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला और राष्ट्रपति ट्रम्प का आक्रामक रुख इस संकट को और जटिल बना रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने चीन से हस्तक्षेप की अपील की, क्योंकि चीन होर्मुज जलडमरूमध्य से तेल आयात पर भारी निर्भर है। हालांकि, चीन ने अब तक तटस्थ रुख अपनाया है और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के माध्यम से इजराइली हमलों की निंदा की है, जिसमें भारत ने हिस्सा नहीं लिया। यह भारत की कूटनीतिक स्थिति को और पेचीदा बनाता है, क्योंकि वह SCO का सदस्य है, लेकिन इजराइल के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को भी संतुलित करना चाहता है।
ईरान-इजराइल युद्ध और होर्मुज जलडमरूमध्य के संभावित बंद होने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता, और सामाजिक कल्याण योजनाएं—विशेष रूप से उज्जवला योजना—खतरे में हैं। भारत को इस संकट से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। पहला, वैकल्पिक तेल स्रोतों और आपूर्ति मार्गों की तलाश तेज करनी होगी। दूसरा, एलपीजी सब्सिडी को बनाए रखने के लिए राजकोषीय प्रबंधन को मजबूत करना होगा। तीसरा, कूटनीतिक स्तर पर भारत को तनाव कम करने में सक्रिय भूमिका निभानी होगी, जैसा कि पीएम मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति से बातचीत कर दिखाया।
वैश्विक भू-राजनीति में यह संकट एक बार फिर साबित करता है कि मध्य पूर्व की अस्थिरता का असर दूर-दराज के देशों तक पहुंचता है। भारत के लिए यह न केवल आर्थिक चुनौती है, बल्कि एक अवसर भी है कि वह वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार और संतुलित शक्ति के रूप में उभरे। लेकिन, यदि होर्मुज जलडमरूमध्य बंद होता है, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारत की उज्जवला योजना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं भी भारी दबाव में आ सकती हैं। समय की मांग है कि भारत अपनी ऊर्जा रणनीति और कूटनीति को और मजबूत कर इस संकट का सामना करे।