आपातकाल: 25 जून 1975 को भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी, जिसके तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन किया गया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया गया और लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचला गया। इस दौरान इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाने वाले नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। बिहार के कई नायकों ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इस आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और कई छात्र नेताओं के पास इस समय की कई यादें हैं। उदयकांत मिश्र की पुस्तक ‘दोस्तों की नजर में नीतीश कुमार’ में नीतीश कुमार ने आपातकाल के बाद के माहौल का वर्णन किया है। उन्होंने 26 जून 1975 की घटनाओं का उल्लेख किया है, जिसमें कई महत्वपूर्ण खुलासे किए गए हैं।
नीतीश कुमार ने पुस्तक में बताया कि 1975 में जुलाई के बाद बिहार में बाढ़ आई थी। पुलिस से बचने के लिए हम गांव-गांव छिपते रहे। गया में फल्गु नदी के किनारे जेपी ने खादी ग्राम उद्योग संघ की स्थापना की थी। वहां एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया था, जिसमें नीतीश कुमार भाषण दे रहे थे। लेकिन पुलिस को इसकी जानकारी मिल गई और छापेमारी कर दी गई। सभा में भाग ले रहे कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। नीतीश और लालू जी समेत 12-13 लोग वहां से भागने की कोशिश कर रहे थे।
नीतीश कुमार ने आगे कहा कि उस समय उनकी और लालू जी की उम्र लगभग 25 वर्ष थी, जबकि अन्य बड़े नेता भी वहां मौजूद थे। सभी को गिरफ्तारी से बचने के लिए भागना पड़ा। काफी देर तक भागने के बाद लालू जी थककर गिर पड़े।
नीतीश कुमार ने बताया कि इस भागदौड़ में उनकी मूंगा जड़ित सोने की अंगूठी, जो दादी के झुमकों से बनी थी, फल्गु नदी में गिरकर खो गई। इसके बाद भी वे कई जगहों पर भागते रहे। हालांकि, अंततः उन्हें आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया और वे 9 महीने जेल में रहे।