आज आषाढ़ी अमावस्या है। यह आषाढ़ की पितृ कार्य और देव कार्य अमावस्या है। मृगशिरा नक्षत्र का संयोग सर्वार्थ सिद्धि योग बना रहा है। जिसका महत्व और भी बढ़ जाता है। आज (25 जून) मृगशिरा नक्षत्र में मोतीडूंगर गणेशजी, नहर के गणेशजी, परकोटा गणेशजी की पूजा-अर्चना की जाएगी। श्वेत सिद्धि विनायक मंदिर में सुबह 5 बजे भगवान गणपति का दुग्धाभिषेक शुरू हो गया। यह 8 घंटे तक चलेगा। दोपहर 1 बजे तक चलेगा दुग्धाभिषेक जयपुर के सूरजपोल बाजार में श्वेत सिद्धि विनायक विराजमान हैं। आज आषाढ़ी अमावस्या पर सुबह 5 बजे दुग्धाभिषेक शुरू हो गया, जो दोपहर 1 बजे तक चलेगा। इसके बाद व्यक्ति को स्नान कराकर नए वस्त्र पहनाए जाएंगे। शाम को भजन संध्या होगी। जयपुर शहर का यह एकमात्र मंदिर है, जहां श्वेत सिद्धि विनायक के साथ ऋद्धि-सिद्धि मूषक देव विराजमान हैं।
200 साल पहले हुई थी मंदिर की स्थापना
इस मंदिर की स्थापना करीब 200 साल पहले हुई थी। यहां सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता। दूध और जल से अभिषेक किया जाता है। कहा जाता है कि जयपुर के महाराजा राम सिंह का नियम था कि वे स्नान करने के लिए गलता तीर्थ जाते थे। लौटते समय वे श्वेत सिद्धि विनायक का दुग्धाभिषेक करते थे। इसके बाद वे राजगद्दी पर बैठते थे और राजकीय कार्य शुरू करते थे। इस मंदिर की स्थापना पुष्य नक्षत्र में बसंत पंचमी के दिन की गई थी। यह पूर्वमुखी गणेश मंदिर है।
वे नाग का पवित्र धागा पहने हुए हैं
सूर्य की पहली किरण भगवान गणेश के चरणों में अभिषेक करती है। मूर्ति की स्थापना तांत्रिक अनुष्ठानों से की गई थी। गणेश जी पांच नागों से बंधे हुए हैं। चारों भुजाओं पर नाग के आकार का मणिबंध और पैरों में पायल है। गणेश जी ने नाग का पवित्र धागा पहना हुआ है। यहां राहु-केतु का प्रयोग किया जाता है।
गणेश की मूर्ति एक तांत्रिक मूर्ति है
भगवान गणेश और ऋद्धि-सिद्धि के हाथों में स्वर्ण कलश है। यह गणेश प्रतिमा एक तांत्रिक प्रतिमा है। इसका मतलब है तत्काल फल देने वाली प्रतिमा। मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान गणेश भक्तों की मनोकामनाएं तुरंत पूरी करते हैं। यह राज्य का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान गणेश का दुग्धाभिषेक किया जाता है। मान्यता है कि यहां सात बुधवार आने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।