Muharram 2025: मुहर्रम में शिया मुस्लिम मातम क्यों करते हैं? यहां जानें इसके पीछे की वजह
TV9 Bharatvarsh June 30, 2025 07:42 AM

इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना यानी मुहर्रम का महीना शुरू हो चुका है. यह महीना इस्लाम के 4 सबसे पाक महीनों में से एक है. इस महीने से इस्लामिक न्यू ईयर की शुरुआत होती है. मुहर्रम का 10वां दिन दुनियाभर के मुसलमानों के लिए सबसे खास होता है. हालांकि, इस दिन को सभी मुसलमान अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं. मुहर्रम के मौके पर आइए जानते हैं कि इस महीने में शिया मुसलमान मातम क्यों करते हैं.

दुनियाभर के मुसलमा मुहर्रम की दसवीं तारीख यानी आशूरा के दिन का एहतिमाम करेंगे. यौम-ए-आशूरा का दिन मुसलमानों के लिए मातम का दिन होता है, खासतौर पर शिया मुस्लिमों के लिए. मुहर्रम के शुरुआती 9 दिनों में रोजाना मजलिस की जाती है और फिर इस महीने के दसवें दिन जुलूस निकाला जाता है, जिसमें शिया मुसलमान खुद को चोट पहुंचाते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर शिया मुसलमान ऐसा क्यों करते हैं, तो इसके पीछे की वजह से कर्बला की जंग.

मोहर्रम क्यों मनाते हैं मुसलमान?

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, सन् 61 हिजरी में मुहर्रम की 10 तारीख यानी, यौम-ए-आशूरा के दिन कर्बला नाम की जगह पर एक जंग हुई. इस जंग में इस्लाम के आखिरी पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन ने अपने 72 वफादारों और परिवार के साथ अपनी जान कुर्बान कर दी. इमाम हुसैन की ये जंग थी यजीद नाम के एक जालिम बादशाह से, जिसने कर्बला में मासूम बच्चों की जान भी नहीं बख्शी थी.

शिया मुहर्रम में मजलिस क्यों करते हैं?

कर्बला की उसी जुल्म की दास्तान को याद करते हुए मुहर्रम के महीने में दुनिया भर के मुसलमान अलग-अलग तरीकों से अपने गम का इजहार करते हैं और मातम मनाते हैं. आशूरा के दिन शिया मुसलमान खुद को जख्मी कर अपना लहू बहाते हैं, धधकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं और ताजि़ये भी निकालते हैं. साथ ही, मजलिस कर उस जुल्म की दास्तान का जिक्र करते हैं.

मोहर्रम में शिया मुस्लिम मातम क्यों करते हैं?

ऐसा कहते हैं कि कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनके घर की औरतों और बच्चों को एक जेल में कैद कर दिया गया, जहां वे सबएक साल तक बंद रहे. सन् 62 हिजरी में जब उन्हें कैद से रिहा किया गया तो इमाम हुसैन की बहन हजरत जैनब ने यजीद से अपने भाई की शहादत का मातम मनाने के लिए कहा. इस तरह कैदखाने में पहली बार मातम हुआ.

तभी से शिया समुदाय मातम मनाता चला आ रहा है. यहीं से आशूरा के दिन मातम मनाने का सिलसिला शुरू हुआ था. कर्बला की इसी दास्तान को याद करते हुए शिया मुसलमान मजलिस करते हैं और मजलिस में उस जुल्म को याद कर मातम मनाते हैं और अपना सीना पीटते हैं.

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