Saffron clothing : क्यों नहीं जलाया जाता नाथ संप्रदाय में शव जानें ‘जीवित समाधि’ का गहरा रहस्य –
sabkuchgyan July 01, 2025 10:25 AM

जब भी हम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देखते हैं, तो उनके भगवा वस्त्र और एक अलग तेज हमारे मन में कई सवाल पैदा करता है। वह जिस नाथ संप्रदाय से आते हैं, उसकी परंपराएं बहुत गहरी और रहस्यमयी हैं। इन्हीं में से एक सबसे अनोखी और हैरान करने वाली परंपरा है- अंतिम संस्कार की। क्या आप जानते हैं कि नाथ संप्रदाय में शवों को जलाया नहीं जाता, बल्कि उन्हें जमीन में समाधि दी जाती है? आइए, इस अनोखी परंपरा के पीछे का गहरा आध्यात्मिक राज जानते हैं।

क्यों नहीं होता दाह संस्कार?

हिंदू धर्म में, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसके शरीर को अग्नि को समर्पित किया जाता है। माना जाता है कि अग्नि शरीर को शुद्ध करके पंचतत्वों में विलीन कर देती है, जिससे आत्मा की आगे की यात्रा आसान हो जाती है।

लेकिन नाथ संप्रदाय की मान्यता इससे बिल्कुल अलग है।

उनके अनुसार, एक नाथ योगी अपने जीवन में कठोर हठ योग और ध्यान-साधना से अपने शरीर को इतना साध लेता है कि उसका शरीर एक साधारण शरीर नहीं रहता, बल्कि एक ‘सिद्ध देह’ बन जाता है। यह शरीर योग की अग्नि में पहले ही तपकर शुद्ध हो चुका होता है। इसलिए, उसे दोबारा अग्नि से शुद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं होती।

‘मृत्यु’ नहीं है, ‘लिविंग समाधि’

नाथ संप्रदाय यह भी मानता है कि एक सिद्ध योगी वास्तव में मरता नहीं है। वह अपनी साधना के शिखर पर पहुंचकर ‘जीवित समाधि’ ले लेता है, यानी वह अपने शरीर को छोड़कर एक गहरी ध्यान की अवस्था में चला जाता है। उनका शरीर एक पवित्र मंदिर की तरह हो जाता है।

कैसे दी जाती है समाधि?

इसीलिए, जब कोई नाथ योगी अपना शरीर छोड़ता है, तो उसे जलाया नहीं जाता। इसके बजाय, उसे सम्मानपूर्वक ‘भू-समाधि’ दी जाती है। योगी के शरीर को ध्यान की मुद्रा, यानी पद्मासन या सिद्धासन में बैठाकर जमीन के अंदर समाधिस्थ किया जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि योगी अपनी अंतिम यात्रा पर भी ध्यान और साधना की अवस्था में हैं।

नाथ संप्रदाय की कुछ और अनोखी पहचान

  • कान में बड़े कुंडल: नाथ योगी अपने कानों में बड़े-बड़े कुंडल पहनते हैं, जिन्हें ‘दर्शनी कुंडल’ कहा जाता है। यह उनके दीक्षा का प्रतीक है।

  • “आदेश” कहकर अभिवादन: वे एक-दूसरे को ‘नमस्ते’ या ‘प्रणाम’ नहीं कहते, बल्कि “आदेश” कहकर अभिवादन करते हैं।

यह परंपराएं हमें दिखाती हैं कि नाथ संप्रदाय जीवन और मृत्यु को एक अलग ही नजरिए से देखता है, जहां शरीर साधना का एक पवित्र मंदिर है और मृत्यु केवल एक अवस्था का परिवर्तन है, अंत नहीं।

© Copyright @2025 LIDEA. All Rights Reserved.