बहुप्रतीक्षित कैलाश मानसरोवर यात्रा 30 जून, 2025 को शुरू हुई है और अगस्त 2025 में समाप्त होगी। चूंकि यह यात्रा 6 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद शुरू हुई है, इसलिए श्रद्धालुओं में अपार उत्साह है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा न केवल हिंदुओं बल्कि जैन, बौद्ध और सिखों के लिए भी एक पूजनीय तीर्थ स्थल है और इस वर्ष इस तीर्थयात्रा के लिए 750 श्रद्धालुओं को अनुमति दी गई है। भारत से इस तीर्थयात्रा का मार्ग सिक्किम से होकर गुजरता है।
तीर्थयात्रा का पहला मार्ग लिपुलेख से होकर जाता है और दूसरा मार्ग सिक्किम के नाथूला दर्रे से होकर जाता है। सिक्किम से जाने वाले श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर भवन से बस द्वारा दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचते हैं और वहां से गंगटोक पहुंचकर उनकी आगे की यात्रा शुरू होती है। वहीं, लिपुलेख मार्ग से जाने वाले श्रद्धालु बस द्वारा उत्तराखंड पहुंचते हैं और वहां से उनकी यात्रा शुरू होती है।
समुद्र तल से करीब 6,638 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कैलाश पर्वत के कुछ रहस्यों का पता अभी तक नहीं चल पाया है। इस साल श्रद्धालु इस रहस्यमयी और उतने ही पवित्र पर्वत के बेहद करीब पहुंचने के अविस्मरणीय अनुभव के लिए इस तीर्थयात्रा मार्ग पर यात्रा करेंगे।
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए शारीरिक फिटनेस बहुत ज़रूरी है और तीर्थयात्रियों को 4 से 5 दिन तक कैलाश मानसरोवर भवन में रहना पड़ता है। यहाँ से उन्हें दिल्ली के हार्ट एंड लंग्स इंस्टीट्यूट ले जाया जाता है। जो लोग फिट पाए जाते हैं, उन्हें ही यात्रा करने की अनुमति दी जाती है। तीर्थयात्रियों को बेहद ठंडे मौसम और लगभग 19,500 फ़ीट की ऊँचाई पर ट्रेक करने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से फिट होना पड़ता है।
अगर खर्च के मामले पर गौर करें तो प्रति व्यक्ति औसत खर्च करीब 2 से 3 लाख रुपये आता है। इसमें शारीरिक जांच, चीनी वीजा, इमिग्रेशन फीस, घोड़े का किराया, खाना, सामान ले जाने की क्षमता, कैलाश मानसरोवर मंदिर में प्रवेश शुल्क, तिब्बत में रहने की जगह शामिल है। इसके अलावा तिब्बत में भोजन, कपड़े, खाद्य भंडार, समूह गतिविधियां और अन्य खर्च भी शामिल हैं।
विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया पासपोर्ट, फोटो और इसी तरह की अन्य जानकारी पर रुक जाती है।
इस तीर्थयात्रा को पूरा करने में 22 दिन लगते हैं। जिसमें से 14 दिन भारत में और 8 दिन तिब्बत में बिताए जाते हैं। इस तीर्थयात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों की पूरी सुरक्षा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की जिम्मेदारी होती है।