साल 2002 की बात है. गुजरात तब भी देश में सबसे अधिक सुर्खियां हासिल करने वाला राज्य था. ग्लैमरस शेफाली जरीवाला की सनसनी इसी साल की उपज थी. उसका ताल्लुक भी गुजरात से था, अहमदाबाद में जन्मी थीं. कांटा लगा… रीमिक्स वीडियो अलबम भी उसी साल आया, जब गुजरात चर्चा में था. देश भर की युवा पीढ़ी के दिलो दिमाग पर इस अलबम ने नशा का असर किया. हालांकि तब कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने इस रीमिक्स को अश्लीलता फैलाने वाला बताया था, नाराजगी भी जताई. क्योंकि जिन्होंने इस गाने के ओरिजिनल वर्जन में देखा-सुना था, उनके लिए शेफाली की प्रस्तुति में एक बड़ा सांस्कृतिक झटका था. युवाओं की पसंद को पतन से जोड़ा गया था.
अनोखा संयोग देखिए कि कांटा लगा… ओरिजिनल गाना अपने जमाने की प्रसिद्ध अभिनेत्री आशा पारेख पर फिल्माया गया था, जिनका ताल्लुक भी गुजरात से था. बाद में उनका परिवार मुंबई में बस गया. लेकिन फिलहाल हम बात गुजरात की नहीं कर रहे- यह चर्चा संयोगवश ही है. आपको लेकर चलते हैं सत्तर के दशक में, जब आशा पारेख पर फिल्माया गया यह गाना आया था. आशा पारेख तब भी अपने अनेक पॉपुलर गानों की वजह से शोहरत हासिल रहने वाली अभिनेत्री रही हैं, इस गाने ने उनकी लोकप्रियता की झोली में एक और नगीना जड़ दिया.
पहले इसे कांटा लगा… गाना नहीं कहा जाता थाप्रकाश मेहरा की इस फिल्म के समय आशा पारेख टॉप पर आ गई थीं. इस गाने पर उनकी दिलकश अदाएं जिन्होंने देखी, लोग उसे आज भी नहीं भूले. वास्तव में जिसे हम कांटा लगा… गाना कहते हैं, सत्तर के दशक में तब इसकी यह पहचान नहीं थी. उस दौर में इसे बंगले के पीछे, तेरी बेरी के नीचे… बोला जाता था. एल.पी. रिकॉर्ड या फिर कैसेट्स के दौर में भी इसे कांटा लगा के तौर पर उल्लेख नहीं किया जाता था. गानों की सूची में पंक्ति बंगले के पीछे, तेरी बेरी के नीचे.. ही लिखा होता था.
कांटा शब्द से कई और गाने भी थे. मसलन मेरी बेरी के बेर मत तोड़ो, कोई कांटा चुभ जाएगा… आशा भोंसले का गाया यह गाना सन् 1968 की फिल्म अनोखी रात का था. इत्तेफाक देखिए कि इंदीवर के लिखे उस गाने का भी रीमिक्स किया गया था और उसकी पेशकश पर भी अश्लीलता के गंभीर आरोप लगे थे. वैचारिक विरोध हुए. रीमिक्स कल्चर ने ना केवल गीत-संगीत बल्कि नई पीढ़ी में कला बोध को भी नुकसान पहुंचाया.
रीमिक्स अलबम के दौर ने बदला सबकुछआपको बताएं कि साल 2002 के आस-पास आज की तरह सोशल मीडिया नहीं था. यूट्यूब तो 2005 में कैलिफोर्निया (यूएसए) में लॉन्च हुआ. भारत में उसे विस्तार लेने में कुछ और साल लगे. इस वक्त निजी टीवी चैनलों और एफएम रेडियो पर ये रीमिक्स गाने बजाए जाते थे और इसके प्राइवेट अलबम बिका करते थे. शेफाली जरीवाला और सनोबर कबीर, संभावना सेठ या राखी सावंत जैसी कलाकारों ने अपनी-अपनी मादक अदाओं के साथ इस दौरान अपने अलबम खूब बेचे.
इनकी तरह कुछ और कलाकार महानगरीय युवा पीढ़ी के बीच मनोरंजन की नई लहर बनकर छाईं. इसी दौर में इस गाने को कांटा लगा … नाम दिया गया और अलबम में इस पर भड़कदार तरीके से भाव भंगिमा दिखाने वाली शेफाली जरीवाला को कांटा गर्ल कहा गया. उस अलबम में शेफाली की हर अदा में अश्लीलता पिरोई थी. लेकिन बाद में लोगों को तब बहुत आश्चर्य हुआ जब शेफाली ने खुद को परंपरावादी परिवार की बेटी बताकर ग्लैमर की दुनिया को अलविदा कह दिया.
याद आई आशा पारेख की मनभावन प्रस्तुतिउधर कला और क्लासिकी की मौलिकता को पसंद करने वाले पारखी और रसिक इस तरह की प्रस्तुतियों को नापसंद करते और इसे आर्ट के मूल के साथ छेड़छाड़ मानते. उनकी नजरों में आशा पारेख ने सन् 1972 की फिल्म समाधि में बंगले के पीछे, तेरी बेरी के नीचे … गाने पर जिस तरह की मनभावन प्रस्तुति दी, वह कलात्मक और कालजयी है. उस कला और सौंदर्य को शेफाली जरीवाला या कि उस वीडियो की मादक पेशकश ने काफी नुकसान पहुंचाया. तब भी माना गया था कि शेफाली की प्रस्तुति महज सनसनी साबित होगी. आशा पारेख की प्रस्तुति ही यादगार रह जाएगी. आज करीब दो दशक बाद वह बात सच ही साबित हुई.
आशा के कांटा लगा… गाने में था देशज सौंदर्यबोधआपको बताएं कि कांटा लगा… गाना फिल्म समाधि से लिया गया था. इस गाने को लिखा था- मजरूह सुल्तानपुरी ने और संगीत दिया था- आरडी बर्मन ने. गायिका थीं- लता मंगेशकर. यह गाना अपनी शब्दावली, संगीत और स्वर के साथ-साथ आशा पारेख की साफ-सुथरी अदायगी और परिवेश को लेकर तब भी काफी लोकप्रिय हुआ था, उसमें आज भी वही आकर्षण, ताजगी और ठहराव है. गाने के बैकग्राउंड में ग्रामीण पृष्ठभूमि इसकी पूरी कहानी बयां करती है. गांव की नायिका की पुकार और दर्द इसमें पिरोये थे. गाने के बोल की एक-एक पंक्ति देशज संस्कृति की मिठास, सौंदर्य बोध और हास्य पुट लिये हुए है. समाधि फिल्म में धर्मेंद्र मुख्य अभिनेता थे, जिनका डबल रोल था. साथ में जया बच्चन (तब भादुड़ी) भी थीं.
टॉम बॉय, जुबली गर्ल, ओ हसीना जुल्फों वालीये वो दौर था जब आशा पारेख अपनी फिल्मों में किरदार और अभिनय से कहीं ज्यादा अपने गानों और नृत्य के चलते काफी लोकप्रिय थीं. उनकी फिल्मों के सारे गाने सुपरहिट साबित हुए. और उन गानों के आधार पर उनके कई नाम भी रख दिये गये थे, जिसे उस दौर में गॉसिप में शामिल किया जाता था. शेफाली जरीवाला अगर कांटा गर्ल थी तो आशा पारेख साठ और सत्तर के दशक में ही टॉम बॉय और जुबली गर्ल कही जाती थीं. तीसरी मंजिल फिल्म में शम्मी कपूर के साथ आईं और आर. डी. बर्मन के संगीत में उनको ओ हसीना जुल्फों वाली करार दिया.
आशा पारेख इस मामले में काफी खुशकिस्मत रहीं कि उनको काफी पॉपुलर गाने मिले. मसलन आजा पिया तोहे प्यार दूं… परदे में रहने दो पर्दा न उठाओ… अच्छा तो हम चलते है… सायोनारा वादा निभाउंगी सायोनारा… मैं तुमसे मिलने आई मंदिर के जाने के बहाने… सोना लेई जा रे चांदी लेई जा रे… वगैरह… आशा पारेख के इन सभी गानों ने अपने दौर में लोकप्रियता का इतिहास रचा. उनके कई गानों पर रीमिक्स बने लेकिन सबके सब बाजार में तात्कालिक सुर्खियां हासिल करके काफूर हो गए. गोल्डेन क्लासिक का अपना सदाबहार महत्व आज भी बना हुआ है. सिनेमा के क्षेत्र में आजीवन योगदान के लिए आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के सम्मान भी प्रदान किया गया है.
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