सरकारी कर्मचारियों को मिली बड़ी सौगात – दोबारा शुरू हुई पुरानी पेंशन स्कीम Old Pension Scheme
Rahul Mishra (CEO) July 01, 2025 05:33 PM

पुरानी पेंशन योजना – शिक्षक वो नींव होते हैं, जिन पर एक मजबूत समाज की इमारत खड़ी होती है। लेकिन जब इन्हीं शिक्षकों को उनके हक और सम्मान से वंचित किया जाता है, तो समाज के इस सबसे अहम स्तंभ की नींव ही डगमगाने लगती है। उत्तर प्रदेश के सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में तदर्थ रूप से कार्यरत शिक्षकों ने वर्षों तक इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और अब आखिरकार, उन्हें सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिला है।

इस फैसले का असर सिर्फ यूपी के हजारों शिक्षकों तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देशभर के उन शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए भी यह उम्मीद की किरण बन सकता है, जो लंबे समय से अपने हक के लिए लड़ रहे हैं।

क्या था मामला?

उत्तर प्रदेश में ऐसे कई शिक्षक हैं जिन्होंने 30 सितंबर 2000 से पहले तदर्थ (अस्थायी) रूप में अपनी सेवा शुरू की थी। इन्होंने पूरी निष्ठा से शिक्षण कार्य किया, लेकिन चूंकि इनकी नियुक्ति नियमित नहीं थी, इसलिए न तो इन्हें पुरानी पेंशन योजना (OPS) का लाभ मिला और न ही अन्य वित्तीय लाभ जैसे चयन वेतनमान या प्रोन्नति वेतनमान।

इन शिक्षकों की मांग थी कि चूंकि वे भी नियमित शिक्षकों की तरह पढ़ाते रहे हैं, तो उन्हें भी वही सुविधाएं मिलनी चाहिए। लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें हर बार निराशा ही मिली।

कोर्ट का रुख क्यों लेना पड़ा?

जब हर सरकारी दफ्तर से जवाब नहीं मिला, तब इन शिक्षकों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनकी दलील थी कि तदर्थ सेवा भी सेवा ही होती है, और वे वर्षों से बिना रुके, बिना शिकायत के अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। उनका कहना था कि जब उनसे काम पूरा लिया गया, तो सुविधाएं क्यों नहीं दी गईं?

इन शिक्षकों ने ये भी बताया कि रिटायरमेंट के बाद जब कोई पेंशन नहीं मिलती, तो वो आर्थिक और मानसिक रूप से टूट जाते हैं। ऐसे में उनके लिए पुरानी पेंशन योजना सिर्फ एक आर्थिक सुरक्षा नहीं, बल्कि सम्मान की बहाली भी है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

22 मार्च 2016 को हाई कोर्ट ने शिक्षकों के पक्ष में एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि:

  • तदर्थ शिक्षकों की सेवा को नियमित माना जाए।
  • उन्हें पुरानी पेंशन योजना के तहत लाभ दिया जाए।
  • चयन वेतनमान, प्रोन्नत वेतनमान और अन्य सुविधाएं भी मिलें।

कोर्ट ने इस फैसले को न केवल कानूनी दृष्टिकोण से सही ठहराया, बल्कि इसे नैतिक रूप से भी न्यायोचित बताया।

सरकार का विरोध और सुप्रीम कोर्ट में अपील

इस फैसले से असहमति जताते हुए यूपी सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सरकार का कहना था कि:

  • तदर्थ सेवा को पेंशन के दायरे में लाना नियमों के खिलाफ है।
  • इससे सरकारी खजाने पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा।
  • नए संशोधित नियमों के अनुसार तदर्थ सेवाएं पेंशन के योग्य नहीं हैं।

इस कानूनी लड़ाई के दौरान कई शिक्षक रिटायर हो गए, कुछ की मृत्यु भी हो गई, लेकिन संघर्ष जारी रहा।

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम और मजबूत फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार शिक्षकों के पक्ष में निर्णय दिया और सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

  • तदर्थ सेवा को नजरअंदाज करना अन्यायपूर्ण है।
  • जब काम लिया गया है, तो उसका उचित पारिश्रमिक और लाभ भी मिलना चाहिए।
  • इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला बरकरार रहेगा।

इस फैसले के अनुसार अब 30 सितंबर 2000 से पहले नियुक्त तदर्थ शिक्षकों को पुरानी पेंशन योजना का पूरा लाभ मिलेगा।

इस फैसले के क्या मायने हैं?

  1. सम्मान की बहाली: यह केवल एक वित्तीय फैसला नहीं, बल्कि उन शिक्षकों को फिर से वह सम्मान देने की पहल है, जो सालों से उन्हें नहीं मिला।
  2. सुरक्षित भविष्य: अब सेवानिवृत्त शिक्षक अपनी बुढ़ापे की जिंदगी सुरक्षित और आत्मनिर्भर तरीके से जी सकेंगे।
  3. मिसाल बनेगा ये केस: यह फैसला देशभर के उन कर्मचारियों के लिए प्रेरणा है जो अस्थायी सेवाओं में रहकर सालों से न्याय की उम्मीद में हैं।
  4. सरकारी जवाबदेही: सरकार को अब यह दिखाना होगा कि वह कोर्ट के आदेशों का पालन कर रही है और शिक्षकों को उनका हक समय पर दे रही है।

आगे की राह: शिक्षकों के लिए जरूरी कदम

  • अब शिक्षकों को चाहिए कि वे अपने सभी सेवा संबंधी दस्तावेजों को संभाल कर रखें।
  • संबंधित विभागों से पुरानी पेंशन का आवेदन फॉर्म भरवाएं।
  • यदि कहीं भी अड़चन आए, तो कोर्ट के आदेश की कॉपी साथ रखें और अधिकारियों को दिखाएं।
  • अन्य तदर्थ कर्मचारी भी इस फैसले के आधार पर अपने अधिकारों की मांग कर सकते हैं।

यह फैसला एक संघर्ष, धैर्य और भरोसे की जीत है। दशकों तक अनदेखा किए गए शिक्षकों को अब वह हक मिला है, जो उन्हें बहुत पहले मिल जाना चाहिए था। यह निर्णय केवल पेंशन नहीं, बल्कि एक सम्मान की गारंटी है।

अब जरूरत है कि सरकार बिना किसी देरी के कोर्ट के आदेश को लागू करे और हर उस शिक्षक को, जिसने तदर्थ रूप में भी पूरी निष्ठा से काम किया है, उसका पूरा हक दे।

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