रात गहरी हो चुकी थी। दीवार घड़ी की सुइयाँ दो के अंक पर ठहरी थीं, लेकिन अस्पताल के सन्नाटे में सिर्फ मशीनों की धीमी बीप और कहीं दूर नर्सों की धीमी फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी
sabkuchgyan July 03, 2025 10:30 AM

रात गहरी हो चुकी थी। दीवार घड़ी की सुइयाँ दो के अंक पर ठहरी थीं, लेकिन अस्पताल के सन्नाटे में सिर्फ मशीनों की धीमी बीप और कहीं दूर नर्सों की धीमी फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी। बाहर हल्की बारिश हो रही थी, पानी की बूँदें खिड़की के शीशों पर ठहरकर यूँ बह रही थीं, जैसे आयुषी की आँखों से आँसू।

वह अस्पताल के बिस्तर पर लेटी थी, एक हाथ में मोबाइल थामे, दूसरी ओर ड्रिप लगी हुई थी। मोबाइल की स्क्रीन बार-बार अनलॉक करती, फिर उतनी ही मायूसी से बंद कर देती। कोई मैसेज नहीं, कोई कॉल नहीं।

कुछ दिनों पहले तक सब ठीक था। वह ऑफिस से लौट रही थी, जब अचानक एक तेज़ रफ्तार गाड़ी उसकी ओर लपकी। एक पल की चीख, फिर अंधेरा… जब होश आया, तो अस्पताल की सफ़ेद छत थी, सिर पर पट्टी बंधी थी, पैर में प्लास्टर चढ़ा था, और दिल… दिल पूरी तरह से टूट चुका था।

सबसे पहला ख्याल विवान का आया था। वही विवान, जो हर खुशी में सबसे आगे रहता। बर्थडे हो, प्रमोशन हो, कोई छोटी-सी भी पार्टी—वह हमेशा सबसे पहला मेहमान होता। “आयुषी मेरी सबसे अच्छी दोस्त है!” यह लाइन उसके मुँह से न जाने कितनी बार निकली थी। लेकिन अब, जब वह सबसे कमजोर थी, उसे विवान की जरूरत थी तो विवान कहीं नहीं था।

उसने काँपते हाथों से पहली बार कॉल किया—कोई जवाब नहीं।
दूसरी बार—फोन कट गया।
तीसरी बार—विवान की आवाज़ आई, मगर ठंडी और अजनबी-सी।
“आयुषी, मैं अभी बहुत बिजी हूँ, बाद में बात करता हूँ।”

वह बस मोबाइल को ताकती रह गई। बिजी? क्या दोस्ती का मतलब सिर्फ साथ हँसना था? क्या दर्द में कोई साथ नहीं देता?

तभी दरवाजा खुला।
आयुषी की साँसें थम गईं। क्या विवान आ गया? शायद उसे एहसास हो गया हो?

लेकिन नहीं… यह रिया थी।

रिया—जिससे उसकी ज्यादा बात नहीं होती थी। जो उसकी पार्टीज़ में कभी आगे नहीं आती थी, जो उसकी सेल्फी ग्रुप का हिस्सा नहीं थी। फिर भी, आज वही थी, हाथ में गर्म सूप का कटोरा और फलो से भरा जूट का बैग लिए, रिया के आँखों में चिंता आयुषी के लिए चिंता थी।

“आयुषी, तुम ठीक हो?” उसकी आवाज़ में हल्की बेचैनी थी, मगर सच्ची थी।
“मैंने सुना तो भागी चली आई।”

आयुषी को कुछ समझ नहीं आया। उसकी आँखें और गला दोनों भर आए।

रिया चुपचाप पास बैठ गई, अपने कोट की आस्तीन से उसकी नम आँखों को पोंछते हुए बोली,
“कभी-कभी दर्द ही बताता है कि असली अपना कौन है।”

उस पल आयुषी को समझ आ गया—रिश्ते वे नहीं होते जो सिर्फ हँसी-ठिठोली में साथ हों, बल्कि वे होते हैं जो आँसू भी चुपचाप पोंछ दें। और उस रात, आयुषी ने विवान को अपने दिल से हमेशा के लिए निकाल दिया।

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