बायोमास ईंधन नियम: वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने हरियाणा के गैर-एनसीआर जिलों में ईंट-भट्टों में धान की पराली से बने बायोमास पेलेट के उपयोग को अनिवार्य कर दिया है. इस संबंध में खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग ने सभी संबंधित जिलों को आधिकारिक पत्र जारी कर निर्देश दिए हैं.
गौरतलब है कि एनसीआर क्षेत्रों में यह नियम पहले से ही लागू है, लेकिन अब इसे राज्य के सभी जिलों में विस्तार दिया गया है ताकि पराली जलाने से फैलने वाले प्रदूषण को रोका जा सके.
मंत्री राजेश नागर ने बताया कि हरियाणा के गैर-एनसीआर क्षेत्रों के ईंट-भट्टों में धान की पराली से बने बायोमास पेलेट के 50% सम्मिश्रण का लक्ष्य तय किया गया है. इसके लिए न्यूनतम उपयोग की चरणबद्ध योजना निम्नानुसार बनाई गई है:
इस योजना के तहत धीरे-धीरे पराली आधारित ईंधन के उपयोग को अनिवार्य रूप दिया जाएगा, जिससे पर्यावरणीय प्रदूषण में कमी लाई जा सके.
इस आदेश के बाद हरियाणा के गैर-एनसीआर जिलों जैसे अम्बाला, फतेहाबाद, हिसार, कैथल, कुरुक्षेत्र, पंचकूला, सिरसा और यमुनानगर में यह नियम प्राथमिकता के साथ लागू किया जा रहा है. इन जिलों में स्थित सभी ईंट-भट्ठों को नए दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा.
बायोमास पेलेट एक प्रकार का ठोस ईंधन है, जिसे लकड़ी, कृषि अवशेष, और अन्य कार्बनिक पदार्थों को बेलनाकार छोटे छर्रों के रूप में तैयार किया जाता है.
इसका उपयोग कोयले या परंपरागत ईंधनों की जगह किया जा सकता है. यह न केवल स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत है, बल्कि पराली जलाने जैसी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों का भी समाधान प्रस्तुत करता है.
हर साल धान की कटाई के बाद पराली जलाने से वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर हो जाता है. खासकर अक्टूबर-नवंबर के महीनों में दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत की हवा जहरीली हो जाती है. ऐसे में यह फैसला पराली को जलाने के बजाय उसे उपयोगी ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है.
राज्य सरकार का मुख्य उद्देश्य है कि:
पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए यह फैसला हरियाणा को ग्रीन स्टेट की दिशा में ले जा सकता है. इससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश की छवि बेहतर होगी और निवेशकों का भरोसा भी बढ़ेगा.