बॉलीवुड के इतिहास में अगर किसी अभिनेता की संघर्ष गाथा सबसे प्रेरणादायक मानी जाती है, तो वह हैं अमिताभ बच्चन। जिन्हें आज दुनिया सदी के महानायक के रूप में जानती है, उनका करियर एक समय ऐसा भी था जब वे लगातार 16 फिल्मों में असफल हो चुके थे। इंडस्ट्री उन्हें रिजेक्ट करने लगी थी, प्रोड्यूसर मिलने से कतराते थे, और एक फिल्म ‘दुनिया का मेला’ से उन्हें निकाल भी दिया गया था। लेकिन फिर आई एक फिल्म— ‘जंजीर’, जिसने उनकी तकदीर ही बदल डाली।
‘जंजीर’ सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, यह एक युग की शुरुआत थी—एंग्री यंग मैन की। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह फिल्म सबसे पहले अमिताभ बच्चन को नहीं, बल्कि बॉलीवुड के तीन बड़े सितारों—धर्मेंद्र, देव आनंद और राज कुमार—को ऑफर की गई थी? और तीनों ने इस फिल्म को ठुकरा दिया था। अगर ऐसा न होता, तो शायद अमिताभ बच्चन कभी सदी के महानायक नहीं बनते।
संघर्ष का लंबा दौर और एक के बाद एक फ्लॉप
अमिताभ बच्चन का शुरुआती करियर सपनों से भरा था, लेकिन असलियत में उन्हें लगातार निराशा मिली। उनकी शुरुआती 16 फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हो गई थीं। उस दौर में जब निर्माता–निर्देशक नए चेहरों को मौका देने से घबराते थे, अमिताभ को न केवल फिल्में मिलनी बंद हो गई थीं, बल्कि उन्हें ‘असफल अभिनेता’ का तमगा भी दिया जाने लगा था।
‘जंजीर’ से बदली किस्मत
1973 में आई ‘जंजीर’ फिल्म वह मोड़ थी, जिसने अमिताभ के जीवन और बॉलीवुड की धारा—दोनों को बदल डाला। इस फिल्म के लिए निर्देशक प्रकाश मेहरा ने पहले धर्मेंद्र, देव आनंद और राजकुमार जैसे स्थापित सितारों से संपर्क किया, लेकिन सभी ने फिल्म को ठुकरा दिया। सलीम जावेद की लिखी कथा पटकथा पूरी तरह से एक ही व्यक्ति पर केन्द्रित होने के कारण स्क्रिप्ट से बड़े सितारे डर गए।
चरित्र अभिनेता राम सेठी ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था क जंजीर की मूल स्क्रिप्ट सलीम-जावेद ने पहले अभिनेता धर्मेंद्र को बेची थी। लेकिन धर्मेंद्र उस वक्त इतने व्यस्त थे कि फिल्म को समय नहीं दे पा रहे थे। महीनों तक स्क्रिप्ट उनके पास पड़ी रही, लेकिन कोई ठोस शुरुआत नहीं हो सकी। ऐसे में सलीम-जावेद ने वह स्क्रिप्ट निर्माता-निर्देशक प्रकाश मेहरा को सुनाई।
देव आनंद बोले: "गाने नहीं हैं!"
प्रकाश मेहरा को स्क्रिप्ट बेहद पसंद आई, लेकिन जब वे इसे लेकर देव आनंद के पास गए, तो देव ने एक चौंकाने वाली प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा—“स्क्रिप्ट अच्छी है, लेकिन इसमें गाने नहीं हैं।” प्रकाश मेहरा ने जवाब दिया कि "इस कहानी के हीरो पर गाने जचेंगे नहीं।" देव आनंद ने इसलिए फिल्म को नकार दिया।
राज कुमार ने भी मना कर दिया
इसके बाद प्रकाश मेहरा ने दिग्गज अभिनेता राज कुमार से संपर्क किया। राज कुमार ने पूरी स्क्रिप्ट ध्यान से सुनी, लेकिन कहा कि प्राण साहब द्वारा निभाए गए किरदार (शेर खान) को ज़रूरत से ज्यादा खींचा गया है। इसके बाद मेहरा को अंदाजा हो गया कि राज कुमार यह फिल्म नहीं करेंगे।
तब आया अमिताभ बच्चन का नाम
अब मेहरा नए चेहरे की तलाश में थे। तभी किसी ने सुझाव दिया कि एक नया अभिनेता है—अमिताभ बच्चन, जिसने ‘बॉम्बे टू गोवा’ में बेहतरीन अभिनय किया है। प्रकाश मेहरा ने वह फिल्म देखी और अमिताभ की स्क्रीन प्रेजेंस से प्रभावित होकर जंजीर के लिए उन्हें साइन कर लिया। यहीं से शुरू हुआ बॉलीवुड के सबसे बड़े सुपरस्टार का सफर।
‘जंजीर’ ने पलट दी अमिताभ की तकदीर
अमिताभ बच्चन की उस समय तक 16 फिल्में फ्लॉप हो चुकी थीं। वे लगभग इंडस्ट्री से बाहर हो चुके थे। लेकिन ‘जंजीर’ ने उन्हें ‘एंग्री यंग मैन’ की नई पहचान दी, जिससे वे रातोंरात स्टार बन गए। यह फिल्म न केवल उनकी बल्कि हिंदी सिनेमा की शैली को भी हमेशा के लिए बदल गई।
एंग्री यंग मैन की नई परिभाषा
‘जंजीर’ में इंस्पेक्टर विजय खन्ना के किरदार में अमिताभ ने जो गुस्सा, गंभीरता और दर्द दिखाया, उसने हिंदी सिनेमा में एक नए नायक की परिभाषा तय कर दी। वह पारंपरिक प्रेमी नायक नहीं थे, बल्कि एक विद्रोही, व्यवस्था से लड़ने वाला आम आदमी थे, जो दर्शकों को कहीं ज्यादा अपने जैसा लगा। यही वजह थी कि अमिताभ बच्चन रातों-रात घर-घर की पहचान बन गए।
रजा मुराद का बयान: 90% किस्मत का खेल
हाल ही में अभिनेता रजा मुराद ने एक इंटरव्यू में कहा, “सिर्फ मेहनत काफी नहीं होती, इंडस्ट्री में कामयाब होने के लिए किस्मत की भी जरूरत होती है। अमिताभ जी का उदाहरण सबके सामने है। 16 फ्लॉप फिल्मों के बाद कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन जब किस्मत साथ आई तो सब कुछ बदल गया।”
सुपरस्टार से ‘महानायक’ तक का सफर
‘जंजीर’ के बाद अमिताभ ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। शोले, दीवार, मुकद्दर का सिकंदर, डॉन, अमर अकबर एंथनी जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों ने उन्हें ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि दी और उन्हें 70–80 के दशक का सबसे बड़ा सुपरस्टार बना दिया। आज, अमिताभ बच्चन सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक संस्था हैं।
उम्मीद कभी न छोड़ें
‘जंजीर’ की कहानी सिर्फ एक फिल्म की सफलता नहीं, बल्कि उस आशा की मिसाल है जो निराशा के बीच भी उम्मीद बनाए रखती है। अमिताभ बच्चन का करियर हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो असफलताओं से जूझ रहा है—कि एक मौका, एक सही समय, एक सही भूमिका आपका भाग्य बदल सकती है।
‘जंजीर’ के पीछे की यह अस्वीकृतियों की श्रृंखला एक अनोखी बात सिखाती है—जो अवसर दूसरों ने ठुकराया, वही किसी के जीवन का सबसे बड़ा मोड़ बन सकता है। अगर धर्मेंद्र को डेट्स मिल जातीं, देव आनंद को गानों की जरूरत महसूस न होती या राज कुमार को शेर खान का रोल ज़्यादा लंबा न लगता, तो शायद ‘जंजीर’ की किस्मत और अमिताभ बच्चन का भाग्य कुछ और होता।