हिंदू धर्म में चातुर्मास का समय बेहद खास और पवित्र माना गया है. इस दौरान मांगलिक कार्य जैसे शादी-ब्याह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, नामकरण या किसी भी नए काम की शुरुआत को करना अशुभ माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास के इन चार महीनों में श्रीहरि विष्णु योग-निद्रा में होते हैं. चातुर्मास हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक रहता है. आइए जानें कि इस दौरान शादी-विवाह क्यों नहीं किए जाते हैं.
चातुर्मास में शादी क्यों नहीं करते?धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु निद्रा योग में होते हैं और विवाह आदि काम करने के लिए उनका निद्रा योग से बाहर होना आवश्यक माना जाता है. चातुर्मास में मांगलिक कार्य करने से उनका आशीर्वाद नहीं प्राप्त हो पाता है. ऐसा कहते हैं कि विवाह करने से नवविवाहितों को दुर्भाग्य और नकारात्मक परिणाम झेलने पड़ सकते हैं. यही कारण है कि इस समय को सिर्फ पूजा-पाठ, व्रत और भक्ति के लिए सबसे उत्तम माना गया है.
भगवान विष्णु की योग निद्राधर्म शास्त्रों के अनुसार, चातुर्मास के इन 4 महीनों में भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग-निद्रा में चले जाते हैं. जब भगवान विष्णु निद्रा में होते हैं तो उनकी अनुपस्थिति में शुभ या मांगलिक कार्य करना फलदायी नहीं होता है. यही वजह है कि चातुर्मास में शादी, गृह प्रवेश जैसे कार्य नहीं किए जाते हैं.
प्रकृति में बदलावचातुर्मास का समय पूजा-पाठ और व्रत करने का समय होता है. साथ ही, यह समय वर्षा ऋतु और शरद ऋतु का होता है. मौसम में नमी होने के कारण बीमारियां भी तेजी से फैलती हैं. इस समय को आध्यात्मिक समय माना जाता है और समारोहों से लोगों को बचाया जा सके, इसलिए इस दौरान शादी-विवाह आदि नहीं किए जाते हैं.
चातुर्मास के बाद शुरू होते हैं सभी कार्यकार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव उठनी एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं और इसके बाद ही शादी, गृह प्रवेश, सगाई और मुंडन आदि मांगलिक कार्य किए जाते हैं. इसी वजह से दीवाली के बाद शादियों का सीजन शुरू हो जाता है.
(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.)