World Population Day 2025: गिरती आबादी चीन-रूस जैसे देशों की नींद क्यों उड़ा रही? जानिए 5 बड़ी वजह
TV9 Bharatvarsh July 11, 2025 03:42 PM

दुनिया के कई बड़े देश घटती आबादी से परेशान हैं. चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस, जर्मनी समेत कई देश घटती आबादी से जूझ रहते हैं. इन्हें बढ़ाने की तमाम कोशिशें भी नाकाफी साबित हो रही हैं. बढ़ती आबादी के खतरों को बताने के लिए 1990 से विश्व जनसंख्या मनाने की शुरुआत हुई थी, लेकिन अब ज्यादातर देशों में हालात उलट हैं. देश जनसंख्या बढ़ाने की जद्दोजहद में परेशान हैं.

आबादी बढ़ाने के लिए नागरिकों को पैसों का लालच दिया जा रहा है. सरकारी योजनाओं में भागीदारी बढ़ाई जा रही है. सरकार इन्हें जनसंख्या बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. कर में छूट दी जा रही है. प्रवासियों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

अब सवाल उठता है कि चीन, रूस, जर्मनी और जापान जैसे कई देश जनसंख्या को बढ़ाने पर क्यों तुले हैं. घटती जनसंख्या के आंकड़े उन देशों की सरकारों को क्यों डरा रहे हैं. विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर जानिए, इनके जवाब.

आबादी घटी क्यों, पहले इसे समझें?

आबादी घटने के लिए कोई एक कारण नहीं है. महंगा लाइफस्टाइल अपनाने की चाहत, बढ़ती महंगाई, बच्चों के खर्च को संभालने के लिए महिलाओं का कॅरियर की तरफ झुकाव, नौकरी पर फोकस करते हुए शादी में होने वाली देरी इसकी वजह हैं. इसके अलावाकम बच्चे करके उनको बेहतर और शिक्षा देने की कोशिश, काम का दबाव और बिगड़ती जीवनशैली ने आबादी को घटाने का काम किया है.

यही नहीं कई देशों में एक या अधिकतम दो बच्चों की पाॅलिसी और युवाओं का विदेश की तरफ पलायन भी इसकी वजह बना. चीन जैसे देश में एक दशक तक सिंगल चाइल्ड की पॉलिसी ने भी आबादी को घटाने का काम किया है. जापान में बच्चों के जन्म दर में होने वाली बड़ी गिरावट और बुजुर्गों की बढ़ी आबादी के कारण इसे बुजुर्गों का देश कहा जाने लगा है. ऐसे हालात चीन और जापान के अलावा दक्षिण कोरिया, इटली, जर्मनी, रूस, स्पेन, पुर्तगाल और हंगरी में भी हैं. आज चीन और रूस जैसे देश सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में भले ही शामिल हों, लेकिन गिरती जन्मदर के खतरों को ये देश अच्छी तरह से समझ रहे हैं.

5 बड़ी वजह, आबादी घटने क्यों परेशान हैं देश?
  • बुजुर्ग आबादी का बोझ: जब देश में जन्म दर घटती है तो बुजुर्गों की आबादी अधिक होने लगती है. नतीजा, सरकार पर इनकी पेंशन, स्वास्थ्य सेवाओं और देखभाल पर बोझ बढ़ता है. इससे देश पर आर्थिक बोझ बढ़ता है. जापान में इनकी देखभाल के रोबोट तक तैनात किए जा रहे हैं.
  • कामकाजी लोगों की कमी: ज्यादा युवा यानी ज्यादा कामकाजी लोग. जन्म दर घटने से ऐसे युवाओं की संख्या घटती है. नतीजा देश में कामकाजी लोगों की कमी होती है. देश की प्रोडक्टिविटी घटती है. कंपनियों को श्रमिक नहीं मिलते. नतीजा, सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है.
  • टैक्स कम तो सरकार की आमदनी भी कम: आबादी का घटना यूं ही नहीं देशों को परेशान कर रहा है. जब खासकर युवाओं की आबादी घटती है तो उस देश में किसी भी चीज की मांग घटती है. यानी कारोबार पर सीधा असर पड़ता है. टैक्सपेयर की संख्या घटती है. नतीजा सरकार की आमदनी भी कम हो जाती है.
  • बढ़ता खर्च: आबादी की कमी से जूझने पर श्रमिकों को दूसरे देशों से बुलाना भी पड़ सकता है. इनको मिलने वाली कमाई उस देश में खर्च न होकर इनके देश में पहुंचती है. सरकार की कमाई घटती है और देश पर होने वाला खर्च बढ़ता है. इससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटती है.
  • जनसंख्या में असंतुलन: अब ज्यादातर देशों में महिलाएं बच्चों को जन्म देने की तुलना में अपने कॅरियर पर ज्यादा फोकस कर रही हैं. जनसंख्या का असंतुलन भी देश को परेशान कर रहा है.
  • कैसे हुई विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत?

    11 जुलाई 1987 को दुनिया की आबादी 5 अरब तक पहुंच गई थी. यह एक गंभीर मुद्दा बन गया था. जनसंख्या बढ़ने पर कैसे विकास पर असर पड़ेगा और पर्यावरण इससे कैसे प्रभावित होगा. ऐसे तमाम मुद्दों के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिए 1989 में युनाइटेड नेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) ने वर्ल्ड पॉपुलेशन डे मनाने का फैसला लिया था. इसके अगले साल यानी 1990 से दुनिया में 90 देशों ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया और यह क्रम जारी है.

    वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स 2019 में कहा गया था कि चीन सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और साल 2027 में आबादी के मामले में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा. लेकिन भारत 2027 से पहले चीन को पीछे छोड़कर सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया.

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