Election Commission Of India: पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले एक महत्वपूर्ण चुनावी कदम उठाया जा रहा है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) अब बंगाल में वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू करने की योजना बना रहा है। बिहार में इस प्रक्रिया के सफल कार्यान्वयन के बाद, अब बंगाल के साथ-साथ असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी इसी मॉडल पर कार्य प्रारंभ होगा। चुनाव आयोग का कहना है कि इसका उद्देश्य फर्जी या दोहरे मतदाताओं को हटाना और लिस्ट को साफ करना है। हालांकि, विपक्षी दलों को इस पर संदेह है।
बिहार में पहले से ही वोटर लिस्ट की जांच चल रही है, जहां घर-घर जाकर मतदाताओं की पुष्टि की जा रही है। अब इसी मॉडल को बंगाल में लागू करने की तैयारी की जा रही है। इस बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे चुनाव से पहले की चाल बताते हुए चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि इससे वोटर लिस्ट में बड़े बदलाव हो सकते हैं, जो चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकते हैं।
सूत्रों के अनुसार, 1 अगस्त 2025 से बंगाल में SIR की प्रक्रिया शुरू हो सकती है, जो अक्टूबर के अंत तक चलेगी। यदि आवश्यक हुआ, तो नवंबर-दिसंबर में एक और संशोधन किया जा सकता है। चुनाव आयोग की आधिकारिक अधिसूचना अभी जारी नहीं हुई है, लेकिन बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज अग्रवाल ने बताया कि सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
बूथ स्तर पर अधिकारियों की नियुक्ति और नए मतदान केंद्रों के चयन की प्रक्रिया को तेज किया गया है। बताया जा रहा है कि 70% जिलों में EROs और पुलिस स्टेशनों के साथ बैठकें हो चुकी हैं और 15 जुलाई तक यह कार्य पूरा हो जाएगा।
TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि यह प्रक्रिया गरीब, युवा और दस्तावेज न रखने वाले लोगों को वोट देने से वंचित करने की योजना है। उनका कहना है कि बिहार के बाद अब बंगाल को निशाना बनाया जा रहा है। BJP और TMC ने एक-दूसरे पर फर्जी वोट जोड़ने का आरोप लगाया है।
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि क्या आपके पास यह प्रक्रिया चलाने का कानूनी अधिकार है? कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि चुनाव से ठीक पहले यह कवायद क्यों हो रही है? और आधार कार्ड जैसे दस्तावेज को क्यों स्वीकार नहीं किया जा रहा?
बंगाल के सीमावर्ती और ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रक्रिया एक बड़ी चुनौती बन सकती है। बिहार के अनुभव बताते हैं कि गांवों में लोगों के पास आवश्यक दस्तावेज नहीं होते, जिससे उनके नाम हटने का खतरा है। महिलाओं और कमजोर वर्गों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ सकता है।