Premanand Ji Maharaj Satsang Motivation
प्रेमानंद जी महाराज का प्रवचन: जब जीवन में कठिनाइयाँ आने लगें, जब अपने ही विश्वास तोड़ने लगें और जब धैर्य जवाब देने लगे, तब आध्यात्मिक गुरु की आवाज़ ही हमें सहारा दे सकती है। प्रेमानंद जी की शिक्षाएँ न केवल धार्मिक ज्ञान को सरल बनाती हैं, बल्कि जीवन की जटिलताओं को भी सहजता से सुलझाती हैं। उनका प्रवचन शास्त्रों की बातें करने के साथ-साथ वर्तमान समय की संवेदनाओं, बढ़ते तनाव और रिश्तों में दरारों का व्यावहारिक समाधान भी प्रस्तुत करता है। उनके हर शब्द, हर उदाहरण, भक्तों के मन की गांठें खोलता है और एक नए दृष्टिकोण की ओर ले जाता है। उन्होंने जीवन के तीन चरणों—ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और पुनः ब्रह्मचर्य—को केवल धार्मिक अनुशासन नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और आत्मिक विकास की यात्रा के रूप में समझाया। यह प्रवचन हर आयु वर्ग के लिए एक दर्पण है, जो आत्म-निरीक्षण कराता है और सही दिशा दिखाता है।
प्रेमानंद जी ने अपने प्रवचन में समाज में नैतिक पतन की चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज का समाज केवल युवाओं में ही नहीं, बल्कि पचास वर्ष तक के लोगों में भी नैतिकता की कमी का शिकार हो चुका है। जब परिवार के स्तंभ माता-पिता ही भटक जाते हैं, तो नई पीढ़ी किस आधार पर सही मार्ग पर चलेगी? उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवनशैली में क्षणिक सुखों की खोज ने लोगों को आत्मा और धर्म से दूर कर दिया है, जो दीर्घकालिक विनाश का संकेत है। यह स्थिति समाज की जड़ों को कमजोर कर रही है और इस दिशा में सामूहिक आत्मनिरीक्षण अनिवार्य हो गया है।
प्रेमानंद जी ने बताया कि जीवन में सच्चा आत्मबल केवल अनुशासन और साधना से प्राप्त होता है। उन्होंने मौन को ‘आत्मिक ऊर्जा’ का स्रोत बताया और कहा कि मौन में हम भीतर की आवाज़ सुन सकते हैं। भजन और कीर्तन को आत्मा की खुराक मानते हुए, उन्होंने कहा कि नियमित साधना से मनुष्य विकारों से ऊपर उठता है और उसका मन स्थिर होता है। संयम से अर्जित शक्ति ही उसे संसार में विचलित हुए बिना कर्मपथ पर चलने की ताकत देती है।
आज समाज में परिवारिक विघटन और मानसिक अवसाद तेजी से बढ़ रहे हैं। प्रेमानंद जी ने इन समस्याओं को आध्यात्मिक दृष्टि से देखने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि संबंधों में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन संवादहीनता उन्हें विषैला बना देती है। हर परिस्थिति का उत्तर प्रतिरोध नहीं, बल्कि समझदारी और आत्मसंयम है। मानसिक शांति पाने के लिए नियमित ध्यान और सकारात्मक संगति को प्रभावी औषधि बताया।
प्रेमानंद जी ने आधुनिक जीवनशैली पर चिंता जताते हुए कहा कि यदि समय पर नींद, आहार और ध्यान न हो, तो जीवन असंतुलित हो जाता है। उन्होंने अनुशासित दिनचर्या का सुझाव दिया, जिसमें सुबह जल्दी उठकर प्रार्थना, दिन में पढ़ाई या काम और शाम को आत्म-समीक्षा अनिवार्य हो। जीवन में सफलता का मतलब केवल धन या प्रसिद्धि नहीं, बल्कि संतोष, आत्म-संयम और सेवा है। एक साधारण जीवन जीने वाला व्यक्ति, जो सच्चे मन से सेवा करता है, वह अधिक शांत और परिपूर्ण होता है।
आज का युग तात्कालिक सुखों और प्रतिस्पर्धा से भरा है। प्रेमानंद जी ने चेताया कि यह तात्कालिक आकर्षण धीरे-धीरे आत्मा को थका देता है और अंततः व्यक्ति को खालीपन की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि जितनी तेजी से हम भौतिक जीवन में भाग रहे हैं, उतना ही आत्मिक जीवन को भी बल देना चाहिए। आध्यात्मिकता को धर्म के संकीर्ण चश्मे से नहीं, बल्कि जीवन की आंतरिक आवश्यकता समझें।
प्रेमानंद जी के प्रवचन का मुख्य संदेश यह था कि जीवन की तीन अवस्थाओं को सही क्रम में जीकर ही मोक्ष संभव है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और पुनः ब्रह्मचर्य ये केवल चरण नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विकास की सीढ़ियां हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि जीवन में शांति, सफलता और संतोष पाने के लिए संयम, सेवा और साधना का मार्ग ही सर्वोत्तम है। यह प्रवचन आज के समाज में टूटते संबंधों और दिशाहीन युवाओं के लिए एक गहन मार्गदर्शन है।