बिहार में सम्राट-विजय नहीं, सुशील मोदी के चेले को CM बनाएगी BJP, तेजस्वी यादव ने लीक किया NDA का प्लान
Samachar Nama Hindi July 29, 2025 05:42 PM

बिहार विधानसभा चुनाव की राजनीतिक गहमागहमी के बीच नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक बड़ी भविष्यवाणी की है। तेजस्वी ने साफ कहा है कि इस बार की विधानसभा चुनाव के बाद वह हर हाल में मुख्यमंत्री बनेंगे और एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) सत्ता में वापस नहीं आएगा। उनके इस दावे ने राज्य की सियासत में नया हलचल पैदा कर दी है। तेजस्वी यादव ने खासतौर पर एनडीए के संभावित मुख्यमंत्री चेहरे के बारे में भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा को मुख्यमंत्री बनाना होगा तो वे मंगल पांडेय को ही मुख्यमंत्री बनाएंगे। तेजस्वी ने मंगल पांडेय की छवि को शांत और समझदार नेता के रूप में पेश किया, जो सदन में चुपचाप रहते हैं और किसी विवाद में नहीं पड़ते।

मंगल पांडेय का राजनीतिक सफर भी खास है। वे बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के शागिर्द माने जाते हैं। सुशील मोदी की देखरेख में मंगल पांडेय को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। इसके अलावा उन्हें हिमाचल प्रदेश का प्रभारी बनने जैसी जिम्मेदारियां भी मिली हैं। बिहार की राजनीति में मंगल पांडेय हमेशा से भाजपा के प्रमुख चेहरे रहे हैं और वे लंबे समय से स्वास्थ्य मंत्रालय संभाल रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी यादव ने इस बार चुनावी रणनीति के तहत जानबूझकर मंगल पांडेय का नाम मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर उछाला है। यह इसलिए क्योंकि बिहार की राजनीति में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग हमेशा से एक मजबूत वोट बैंक रहा है। चाहे वह नीतीश कुमार हों या राबड़ी देवी-लालू प्रसाद यादव, सभी इसी सामाजिक पृष्ठभूमि से आते रहे हैं। वहीं कांग्रेस की तरफ से जगन्नाथ मिश्रा आखिरी ब्राह्मण मुख्यमंत्री थे।

तेजस्वी यादव खुद भी 'A टू Z' और 'BAAP' (बहुजन, आधी आबादी, अगड़ा और पिछड़ा) जैसे सशक्त चुनावी नारों पर जोर देते हैं, लेकिन उनका मुख्य फोकस पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलित समुदाय पर रहता है। वे भली-भांति जानते हैं कि अगर यह मैसेज गया कि एनडीए की ओर से ब्राह्मण समुदाय के मंगल पांडेय को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा तो पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलित वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है, जिससे महागठबंधन को फायदा होगा।

यहाँ पर तेजस्वी यादव के पिता और राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव का चुनावी रणनीति में कंफ्यूजन पैदा करने का स्टाइल याद आ जाता है। लालू हमेशा ही ऐसी रणनीति अपनाते रहे हैं जिससे विपक्षी गठबंधन को फायदा पहुंचे। उदाहरण के तौर पर, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा के बयान को लेकर लालू यादव ने पूरे चुनाव अभियान में बीजेपी पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाया था। इसी तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में भी लालू ने बीजेपी के 400 सीटें जीतने के नारे को लेकर संविधान परिवर्तन का डर फैलाया था।

तेजस्वी यादव का मंगल पांडेय का नाम लेकर यह दांव इसलिए भी राजनीतिक महत्व रखता है क्योंकि भाजपा पिछले समय से बिहार में अति पिछड़ा वर्ग के नेता सम्राट चौधरी को आगे कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे के दौरान रोड शो में सम्राट चौधरी की प्रमुखता देखी गई। राज्य सरकार के कार्यक्रमों में भी नीतीश कुमार के साथ सम्राट चौधरी की मौजूदगी बढ़ी है। इसके साथ ही भाजपा पीएम मोदी को भी ओबीसी समुदाय से आने वाला नेता बताकर प्रचार करती है, हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस दावे को हमेशा खारिज करते रहे हैं और मोदी को जन्मजात ओबीसी नहीं मानते।

अतः तेजस्वी यादव का ब्राह्मण चेहरे मंगल पांडेय को मुख्यमंत्री पद के लिए लेकर प्रचार करना एक सशक्त चुनावी रणनीति हो सकती है, जिससे एनडीए के अंदर संभावित मत बंटवारे को बढ़ावा मिले और महागठबंधन को मजबूती मिले। बिहार की इस राजनीति में आने वाले दिनों में यह दांव किस हद तक कारगर साबित होता है, यह चुनाव के परिणामों से ही स्पष्ट होगा।

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