अनिल अंबानी कभी एक ट्रिलियन रुपये के व्यापार साम्राज्य के मालिक थे. आज, उनके समूह पर प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की जांच चल रही है, 35 से अधिक स्थानों पर छापेमारी हो चुकी है और बड़ी रकम जांच के दायरे में है.
अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मंगलवार को अपने दिल्ली स्थित मुख्यालय तलब किया. आरोप है कि अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनियों ने हज़ारों करोड़ रुपये के कथित बैंक लोन को शेल कंपनियों के ज़रिये ट्रांसफर किया.
ईडी प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए के तहत अनिल अंबानी का बयान रिकॉर्ड करेगा.
अनिल अंबानी ग्रुप ने फंड्स में अनियमितता के सभी आरोपों से इनकार किया है. एक बयान में कहा गया है कि कंपनी और इसके अधिकारी जांच एजेंसी के साथ पूरा सहयोग कर रहे हैं.
अनिल अंबानी से ये पूछताछ दो हफ्ते पहले अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनियों और अधिकारियों के ठिकानों पर ईडी के व्यापक छापों के बाद हो रही है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक ईडी ने 24 जुलाई को मुंबई में 35 से ज़्यादा ठिकानों, 50 कंपनियों और 25 से अधिक लोगों के यहां तीन दिन तक छापेमारी की थी.
ईडी की जाँच के दायरे में 17 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक के वो लेन-देन शामिल हैं जिसमें अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनियां शामिल हैं और आरोप है इन कंपनियों ने बैंकों से मिले लोन को फर्जी कंपनियों के ज़रिये ट्रांसफर कराया.
क्या यस बैंक से थी सांठ-गांठ?इसके अलावा आरोप ये भी है कि साल 2017 से 2019 के बीच यस बैंक से अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनियों को करीब 3,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ मिला.
आरोप है कि अनिल अंबानी समूह ने इसके बदले में यस बैंक के प्रमोटर्स को आर्थिक फ़ायदा पहुँचाया.
आरोप है कि लोन मंजूर होने से पहले ही बैंक प्रमोटरों को सीधे पैसे भेजे गए. ईडी को अंदेशा है कि यस बैंक से लोन मंज़ूरी में भारी अनियमितताएं बरती गई हैं.
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का मामला कम से कम दो एफ़आईआर पर आधारित है, जो सीबीआई ने दर्ज की थीं. इसके अलावा, कई रेगुलेटरी संस्थाओं ने भी अनिल अंबानी ग्रुप के ख़िलाफ़ जाँच रिपोर्ट दी थी.
इन संस्थाओं में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी, नेशनल हाउसिंग बैंक, नेशनल फ़ाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी और बैंक ऑफ़ बड़ौदा शामिल हैं.
अनिल अंबानी समूह ने क्या कहा?मार्केट रेगुलेटर संस्था सेबी ने साल 2024 में अपने आदेश में अनिल अंबानी को फंड्स को दूसरी कंपनियों में खपाने का 'मास्टरमाइंड' बताते हुए कहा था कि रिलायंस होम फ़ाइनेंस लिमिटेड (आरएचएफएल) के निदेशक मंडल ने अयोग्य व्यक्तियों या संस्थाओं को कर्ज़ देने को लेकर चेतावनी दी थी.
इस आदेश के मुताबिक, असल में आरएचएफएल की कर्ज़ मंजूरी प्रक्रिया में कई अनियमितताएं पाई गई हैं, जिसमें नीति का उल्लंघन और अधूरे दस्तावेज भी शामिल हैं.
इससे पहले, ईडी की छापेमारी पर अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनी रिलायंस पावर ने एक बयान जारी किया था. बयान में कहा गया था, "सभी जगहों पर ईडी की कार्रवाई खत्म हो गई है. कंपनी और इसके सभी अधिकारी एजेंसी के साथ पूरा सहयोग कर रहे हैं और आगे भी सहयोग जारी रखेंगे. ईडी की कार्रवाई का कंपनी के औद्योगिक कामकाज,फ़ाइनेंशियल परफॉर्मेंस, शेयरहोल्डर्स और कर्मचारियों पर कोई असर नहीं होगा."
बयान में कहा गया है, "रिलायंस पावर स्वतंत्र सूचीबद्ध कंपनी है और अनिल अंबानी तो रिलायंस पावर के बोर्ड में भी नहीं हैं. इसका रिलायंस कम्युनिकेशंस से कोई वित्तीय संबंध नहीं है. रिलायंस कम्युनिकेशंस साल 2016 से दिवालिया प्रक्रिया से गुज़र रही है."
ये मामला पहले-पहले जून 2019 में तब सामने आया था, जब रिलायंस कैपिटल की ऑडिटिंग का काम देख रही पीडब्ल्यूसी ने खुद को इस काम से अलग कर लिया था.
पीडब्ल्यूसी ने तब कई लेन-देन पर सवाल उठाए थे और कहा था कि अगर कुछ ट्रांजेक्शंस पर ध्यान नहीं दिया गया और उन्हें सुलझाया नहीं गया तो इसका कंपनी की वित्तीय स्थिति पर बड़ा असर हो सकता है.
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए पीडब्ल्यूसी के त्यागपत्र में रिलायंस कैपिटल के फ़ाइनेंस को लेकर कई सवाल उठाए गए थे.
लेकिन तब अनिल अंबानी समूह ने एक सार्वजनिक बयान जारी कर ऑडिटिंग संस्था की इस 'चिंता' को सिरे से ख़ारिज कर दिया था. साथ ही अपने शेयरहोल्डर्स को जानकारी दी कि पाठक एचडी एंड एसोसिएट्स कंपनी की नई ऑडिटर होगी.
ये वो वक़्त था जब भारत के फाइनेंशियल मार्केट में काफी उथल-पुथल चल रही थी और आईएलएंडएफएस और दीवान हाउसिंग फ़ाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफ़एल) जैसी कंपनियों ने डिफॉल्ट कर दिया था.
इकोनॉमिक टाइम्स की बैंकिंग एडिटर संगीता मेहता ने एक पॉडकास्ट में बताया कि ऐसे माहौल (2017 से 2019 के बीच) में बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों का भरोसा डिगा हुआ था. ऐसे में यस बैंक ने रिलायंस कैपिटल को लोन दे दिया.
आरोप है कि रिलायंस कैपिटल ने यस बैंक के प्रमोटर राणा कपूर की पारिवारिक कंपनियों में निवेश किया. जब रिलायंस कैपिटल को कर्ज़ मंज़ूर किया जा रहा था तो राणा कपूर ने इसकी जानकारी बैंक के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स को नहीं दी.
अनिल अंबानी समूह की कंपनियों पर बैंक ऑफ़ बड़ौदा का भी भारी कर्ज़ था. ऐसे में उसने भी कंपनी के वित्तीय लेन-देन पर सवाल उठाते हुए इसकी जाँच कराई.
ग्रांट थॉर्नटन को क्रेडिटर बैंक ऑफ़ बड़ौदा ने फॉरेंसिक ऑडिट के लिए नियुक्त किया था. उसने भी अपनी रिपोर्ट में अनिल अंबानी की ग्रुप कंपनियों के वित्तीय लेन-देन में अनियमितताओं का ज़िक्र किया.
इसके बाद से इस मामले की जांच में केंद्रीय एजेंसियां शामिल हुईं और अब बात अनिल अंबानी की ईडी में पेशी तक पहुँच गई है.
पीएमएलए (ईडी प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) कब लागू होता है?बैंक अनियमितताओं की पहचान करता है और फोरेंसिक ऑडिट कराता है.
ऑडिट में फंड डायवर्जन या गलत तरीके से लेन-देन सामने आता है.
बैंक एफ़आईआर दर्ज करता है और कर्ज़ को 'धोखाधड़ी' घोषित करता है.
ईडी या सीबीआई की जांच तब शुरू होती है जब आपराधिक गतिविधि स्पष्ट हो.
पीएमएलए की धारा तीन के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपराध की आय से जुड़ी गतिविधियों में जान-बूझकर शामिल है, तो वह 'मनी लॉन्ड्रिंग' का दोषी है.
अनिल अंबानी से जुड़ा मामला इसमें कैसे फिट बैठता है?ईडी उन ₹3,000 करोड़ के लोन की जांच कर रहा है जो रिलायंस एडीए समूह से जुड़ी इकाइयों ने लिए थे.
आरोप है कि ये धनराशि शेल कंपनियों के माध्यम से ट्रांसफर की गई ताकि कर्ज़ चुकाने से बचा जा सके और यहीं से पीएमएलए की धाराएं लागू होती हैं.
पूर्व में कई हाई-प्रोफाइल घोटालों का तरीका लगभग एक जैसा रहा है:
दीवान हाउसिंह फ़ाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफ़एल)- वाधवान (₹34,000 करोड़): फर्जी हाउसिंग लोन और फंड डायवर्जन
एबीजी शिपयार्ड (₹22,842 करोड़): संपत्तियों की वैल्यूएशन बढ़ा-चढ़ाकर दिखाई और विदेशी फंड ट्रांसफर
रोटोमैक पेन (₹3,695 करोड़): एक्सपोर्ट क्रेडिट्स का दुरुपयोग
आईएलएंडएफ़एस (IL&FS): इंटर-कंपनी लोन के माध्यम से एसेट बुक्स को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित