पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि गुजारा भत्ता "उचित और यथार्थवादी" होना चाहिए। यह न तो इतना कम हो कि आश्रित पति/पत्नी गरीबी में डूब जाएँ और न ही इतना अधिक हो कि उसे अत्यधिक भत्ता मिले। साथ ही, पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि पति इस आधार पर दायित्व से बच नहीं सकता कि उसकी पत्नी सोशल मीडिया पर सक्रिय है या अपने मायके में अच्छा जीवन जी रही है।
नूंह पारिवारिक न्यायालय के आदेश के विरुद्ध एक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति कीर्ति सिंह ने कहा कि न्यायालय ने उचित रूप से यह टिप्पणी की है कि "केवल इसलिए कि पत्नी सोशल मीडिया पर सक्रिय है और अपने मायके में अच्छा जीवन जी रही है, इसका अर्थ यह नहीं है कि पति अपनी पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण करने की ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाएगा।"
सम-स्थिति के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुए, न्यायमूर्ति कीर्ति सिंह ने कहा कि भरण-पोषण विवादों में प्रतिद्वंदी दावेदार अपनी वास्तविक कमाई क्षमता का पूर्ण और निष्पक्ष खुलासा करने के लिए बाध्य हैं। पीठ ने कहा, "प्रतिद्वंद्वी दावेदारों को ईमानदारी से अपनी वास्तविक कमाई की क्षमता को रिकॉर्ड में लाना होगा ताकि न्यायालय भरण-पोषण की राशि तय कर सके, जो सम-स्थिति के सिद्धांत के संदर्भ में उचित और न्यायसंगत हो।"