प्रयागराज, 27 अगस्त (Udaipur Kiran) । ईसीसी अर्थशास्त्र विभाग में ट्रंप द्वारा भारत के निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने के प्रभाव पर एक परिचर्चा की गई। अर्थशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विवेक कुमार निगम ने कहा कि ट्रंप की नीतियों का प्रभाव भारत पर तो पड़ेगा ही लेकिन अमेरिका पर इसका असर अपेक्षाकृत अधिक देखने को मिल सकता है। अमेरिका के लिए भारत से होने वाले निर्यात को पूरी तरह प्रतिस्थापित करना आसान नहीं होगा।
प्रो. निगम ने सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए कहा कि इससे आने वाले समय में घरेलू अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी, घरेलू बाजार का विस्तार होगा। दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मांग कम होने से देश में महंगाई पर सकारात्मक असर देखने को मिलेगा।
अर्थशास्त्र विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ भारतेंदु चतुर्वेदी ने कहा कि अमेरिका का उद्देश्य रूस के तेल के निर्यात को रोकने से अधिक अपनी डेयरी उत्पादों और अन्य कृषि उत्पादों के लिए भारत के बाजार को खुलवाना है। भारत को बिना दबाव में आए अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के लिए अवसर है नई संभावनाओं को तलाशने का। भारत के पास युवा जनसंख्या है जिनकी शिक्षा और योग्यता में निवेश करके भारत एक प्रमुख वैश्विक ताकत के रूप में उभर सकता है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वरिष्ठ असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रदीप कुमार सिंह ने कहा कि अमेरिका द्वारा 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने से भारत की जीडीपी में 0.3 से 1.1 प्रतिशत तक और निर्यात में 8 से 40 बिलियन डॉलर तक की कमी हो सकती है। सबसे अधिक कपड़ा, जेम्स ज्वेलरी, समुद्री उत्पाद और चमड़ा उद्योग प्रभावित होगा, जिससे 10 से 20 लाख तक लोग बेरोजगार हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि सरकार अधिक प्रभावित होने वाले निर्यातकों को तत्काल आर्थिक सहायता उपलब्ध कराए और दीर्घकाल में नए बाजार खोजने में निर्यातकों की मदद करे।
अर्थ शास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर उमेश प्रताप सिंह ने कहा कि वास्तविक नुकसान जीडीपी के नुकसान के रूप में नहीं, बल्कि आजीविका और रोजगार के नुकसान के रूप में है। एमएसएमई क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होगा, क्योंकि उसकी वित्तीय क्षमता बहुत कम होती है। बने कपड़े के वस्त्रों, हीरा, झींगा और कालीन की बिक्री में कमी आ सकती है क्योंकि इन क्षेत्रों की अमेरिका के साथ व्यापार पर निर्भरता अधिक है। कपड़ा और रत्न जैसे श्रम-प्रधान निर्यातों पर उच्च टैरिफ बेरोजगारी को बढ़ाएगा। ऐसे क्षेत्रों में सकल घरेलू उत्पाद में आधा प्रतिशत की गिरावट से आजीविका में और अधिक नुकसान हो सकता है।
प्रो. सिंह ने कहा कि कालीन निर्माण में अग्रणी मिर्जापुर में 60 प्रतिशत से अधिक निर्यात अमेरिका के लिए होते हैं। केरल के पथनमथिट्टा जिला हल्दी तेल का 60 प्रतिशत से अधिक निर्यात अमेरिका को करता है। इसी प्रकार भदोही (49 प्रतिशत), वाराणसी (45 प्रतिशत) और कालीन तथा हस्तशिल्प केंद्रों के बड़े समूहों में भी अमेरिकी खरीदार पर भारी निर्भरता है। प्रो सिंह ने कहा कि यह अवसर है सरकार के लिए बड़े सुधारो को लागू करने का, जिसका संकेत सरकार दे चुकी है और उसकी शुरुआत जीएसटी दरों के सरलीकरण से शुरू हो चुका है। टैरिफ का यह संकट अस्थाई है, देर सवेर इसका निराकरण हो ही जाएगा। लेकिन इसके कारण देश में जो सुधार शुरू होंगे, अर्थव्यवस्था को जो आंतरिक मजबूती मिलेगी वह स्थाई होगी।
ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज के डॉ वेद प्रकाश मिश्रा ने कहा कि अमेरिका द्वारा भारत के निर्यातित उत्पादों पर टैरिफ लगाने से दोनों देशों के बीच व्यापारिक सम्बंधों पर गहरा असर पड़ेगा। भारतीय उत्पाद की अमेरिका में प्रतिस्पर्धा घटेगी और भारत के उद्योगों, विशेषकर छोटे एवं मध्यम उद्यमों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। निर्यात घटने से उत्पादन और रोजगार में कमी की आशंका बढ़ जाती है। डॉ वेद ने कहा कि दीर्घकाल में यह भारत को अपने निर्यात बाजार को विविध बनाने, घरेलू उद्योग को सशक्त करने और “आत्मनिर्भर भारत” जैसी नीतियों को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करती है।
सीएमपी महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ रविंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि भारत के उत्पाद अब वियतनाम, इंडोनेशिया, जापान जैसे अन्य एशियाई देशों की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी होंगे। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अग्रणी ‘चीन प्लस वन’ विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को खतरा उत्पन्न हो सकता है। इससे भविष्य के समझौतों में भी अनिश्चितता पैदा हो सकती है। डॉ सिंह ने कहा कि भारत को टैरिफ के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए निर्यात बाजारों में विविधता और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। जिससे कि भारतीय उद्योगों की उत्पादकता में वृद्धि हो और भारतीय उत्पाद वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकेंगे। सरकार की ओर से लक्षित सब्सिडी, निर्यात शुल्क की वापसी, निर्यात ऋण और विपणन के माध्यम से भी टैरिफ के तत्काल प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र